बिहार सरकार के पास आज न तो विकास के लिए पैसों की पहले जैसी कमी है और न ही कल्याण के लिए।
राज्य के बजट और सरकारी घोषणाओं से तो यही लगता है।
इस राज्य में एक समय ऐसा भी था जब सरकारी कर्मचारियों को समय पर वेतन भी नहीं मिल पा रहे थे।
2004 में केंद्र सरकार ने बिहार सरकार से कहा था कि केंद्रीय मदद के पैसों का इस्तेमाल वेतन बांटने के काम में नहीं होना चाहिए।
टैक्स वसूली के काम में ईमानदारी इसी तरह बढ़ती जाए तो आगे बिहार की आर्थिक स्थिति और भी अच्छी हो सकती है।
हालांकि अब भी कर वसूली में कोताही है।भ्रष्टाचार है।उसका कारण भी सब जानते हैं।उसे दूर किया जाना चाहिए।
वैसे बीस साल पहले वाली स्थिति से राज्य काफी आगे निकल चुका है।
1999-2000 वित्तीय वर्ष में वाणिज्य कर से बिहार सरकार की आय मात्र 1982 करोड़ रुपए थी।जबकि, उसी अवधि में इस मद में आंध्र प्रदेश को करीब 6 हजार करोड़ रुपए मिले थे।
अब इस राज्य में इस मद में करीब 25 हजार करोड़ रुपए की आय है।
इसमें और भी वृद्धि की गुंजाइश बनी हुई है।
विकास व कल्याण की अन्य कई योजनाओं के साथ- साथ बिहार सरकार इसी अप्रैल से मुख्य मंत्री वृद्धजन पेंशन योजना लागू करने का निर्णय किया है।
पहले की इस योजना में कुछ लोग छूट जाते थे।अब इसका लाभ सभी वर्गों के लोगों को मिलेगा।
हमारे यहां प्राचीन काल में ही एक विवेकपूर्ण बात कह दी गई थी।वह यह कि जमीन की सतह का पानी वाष्प बन कर ऊपर जाता है।वही बाद में तपती धरती पर बरसात के रूप में राहत देता है।
किसी अच्छी सरकार का भी यही काम है कि वह ईमानदारी से टैक्स वसूले और बाद में जनता के लिए राहत की बरसात करे ।
--कब सुधरेगी बिजली आपूत्र्ति व्यवस्था--
इस देश में जितनी बिजली का उत्पादन होता है,उसमें से
27 प्रतिशत बिजली चोरी और ‘लाइन लाॅस’ में चली जाती है।
नतीजतन हर साल करीब एक लाख करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान होता है।यह दशकों से हो रहा है।
जाड़े की सुबह जब मोटर से टंकी में पानी चढ़ाने के लिए पर्याप्त वोल्टेज नहीं मिलता तो अनेक लोगों को बिजली चोरों पर गुस्सा आता है।
सुबह -सुबह कुछ लोग हीटर पर खाना पकाने लगते हैं तो कुछ अन्य ब्लोअर चलाने लगते हैं।कई जगह धान उबालने का काम भी उसी पर होता है।
खैर, ऐसे लोगों पर नकेल कसने का उपाय सरकार कर रही है।
मोटे -मोटे केबुल बिजली के खम्भों पर टांगे जा रहे हैं।हर घर में स्मार्ट मीटर लगाने का निर्णय हुआ है।
साथ ही पीक आवर में इस्तेमाल करने पर उपभोक्ताओं को अधिक पैसे देने होंगे।
पीक आवर में खपत का रिकाॅर्ड दर्ज हो जाएगा और उसी के हिसाब से चार्ज वसूला जाएगा।
कल्पना कीजिए उस दिन की।जब हमारे देश की सरकार के पास अतिरिक्त एक लाख करोड़ रुपए उपलब्ध हो जाएंगे। उससे अधिक स्कूल और अस्पताल खोले जा सकेंगे।
--मेढक तौलने का करतब--
1967 से 1972 तक बिहार में कई मिलीजुली सरकारें बनीं और बिगड़ीं।
तब राजनीतिक हलकों में यह चर्चा होती थी कि मिली जुली सरकार चलाना यानी मेढ़क तौलना।
एक मेढ़क को तराजू पर रखिए तो दूसरा उछल पड़ेगा।तीसरे को रखिए तो चैथा छलांग लगा देगा।
उन दिनों कुछ अन्य राज्यों में भी यही हो रहा था।
1967 में हरियाणा में गया लाल नाम के विधायक ने जब एक ही पखवाड़े में तीन बार दल बदला तो दलबदलुओं के लिए ‘आया राम, गया राम’ की कहावत प्रचलित हो गई।
बाद के वर्षों में तो इस देश में राज्यों व केंद्र में ऐसी कई मिलीजुली सरकारें बनीं।
अब 2019 का लोक सभा चुनाव सामने है । कहा जा रहा है कि इस बार मिलीजुली सरकार ही बनेगी।
अनेक लोग यह कह रहे हैं कि यह देश के लिए ठीक नहीं होगा।
इसलिए मतदाता किसी भी एक दल को पूर्ण बहुमत दे दे।
देखना है कि यह सदिच्छा पूरी होती है या नहीं।
पर एक बात तय है।
अपवादों को छोड़कर इस देश के अधिकतर मतदाता सयाने हो चुके है।
वे राजनीतिक दलों को बाहर -भीतर से अच्छी तरह पहचानने लगे हैं।
वे यह भी जानते हैं कि कौन सा दल सत्ता में आकर देश की आम जनता को अधिक लाभ पहुंचाएगा और कौन कम।
फिर क्या है ?
आपके अनुसार आम जन को जो अधिक लाभ पहुंचाने वाला हो,उसे ही वोट दीजिए।
--कर्पूरी ठाकुर की विनम्रता--
17 फरवरी को कर्पूरी ठाकुर की पुण्यतिथि मनाई जाएगी।
उस अवसर पर उनके व्यक्तित्व के खास पक्ष की याद आती है।
कर्पूरी ठाकुर की लोकप्रियता में पचास प्रतिशत योगदान उनकी कठोर ईमानदारी और उनके अत्यंत शिष्ट व्यवहार का था।पचास प्रतिशत योगदान अन्य तत्वों का था।
राजनीति में इन दिनों ये दोनों बातें विरल हैं।
अब तो गुस्सा,अशिष्टता,गाली गलौज और कभी कभी हिंसा भी।
--भूली बिसरी याद--
चुनाव के इस मौसम में टी.एन.शेषण को एक बार फिर याद करना मौजूं होगा।
मुख्य चुनाव आयुक्त शेषण ने चुनाव नियमों की किताब पर से धूल झाड़ कर उन्हें लागू करने की कारगर कोशिश की थी।
उन्होंने अपने कुछ ठोस कदमों के जरिए कानून तोड़कों में भय पैदा तो कर ही दिया था।
व्यापक पैमाने पर धांधली का उदाहरण देते हुए शेषण ने बिहार और उत्तर प्रदेश के 5 चुनाव क्षेत्रों के चुनाव रद कर दिए।
नेशनल फ्रंट ने इस कार्रवाई को पक्षपात पूर्ण करार दिया।
तब केंद्रीय मंत्री गैस और फोन कनेक्शन मनमाने ढंग से जारी कर रहे थे।शेषण ने उस पर आपत्ति की।मंत्री नाराज हुए।प्रधान मंत्री को बीच -बिचाव करना पड़ा।
शेषण ने बिहार में चुनाव टालना चाहा।शेषन को काूनन -व्यवस्था को लेकर भी शिकायत थी।पर यह काम वे नहीं कर सके।
पहले तो लालू प्रसाद शेषन के खिलाफ थे।पर जब शेषन ने निष्पक्ष चुनाव करा दिया और लालू फिर सत्ता में आ गए तो लालू ने शेषण की तारीफ की।
शेषण ने कुछ अन्य कड़े कदम उठाए।केंद्र सरकार ने शेषण पर नकेल कसने के लिए चुनाव आयोग को एक सदस्यीय से तीन सदस्यीय बना दिया।जो हो,शेषण अपने ढंग के अफसर थे।
शेषन 1990 से 1996 तक मुख्य चुनाव आयुक्त रहे।
--और अंत में --
बिहार के नए डी.जी.पी. प्रो-एक्टिव रोल में लग रहे हैं।
संभव है कि यह शुरुआती उत्साह हो।यह भी संभव है कि यह उनका स्थायी भाव साबित हो।
इस अवसर पर एक बात कही जा सकती है ।वह यह कि यदि स्थायी भाव है तो ऐसे अफसर को किसी आशंकित विभागीय साजिश व राजनीति से बचाया जाना चाहिए।
पुलिस ही क्यों,हर क्षेत्र में ईष्यालु और विघ्नसंतोषी लोगों की कभी कोई कमी नहीं रही है।
--kanokan--15 Feb.19
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