सोमवार, 11 फ़रवरी 2019

बिहार के नए पुलिस प्रमुख गुप्तेश्वर पांडेय के काम के
प्रति पेशेवर उत्साह को देख कर शांतिप्रिय लोगों में खुशी देखी जा रही है।
  कभी एक कत्र्तव्यनिष्ठ थानेदार के भय से उस क्षेत्र के अपराधी पूरा इलाका छोड़ देते थे।
 बहुत दिन नहीं हुए जब कुछ चर्चित जिला एस.पी. की कड़ाई से अपराधी जिला छोड़ देते थे।
 फिर डी.जी.पी. कुछ ठान लें तो बहुत कुछ  हो सकता है ।
 पर, नए डी.जी.पी.को चाहिए कि वे साथ-साथ यह भी  सुनिश्चित करें कि कोई  एस.पी. थानों की नीलामी न करे।
थानों के जरूरी खर्चे के लिए गैर सरकारी निर्भरता समाप्त हो।
इस तरह की कुछ अन्य बातें भी हैं।
थोड़ा लिखना, बहुत समझना !
  कुछ जिलों  के कुछ पुराने लोग कुछ एस.पी.को आज भी  याद करते हैं।
अस्सी के दशक में  सारण से एक कत्र्तव्निष्ठ एस.पी.को भ्रष्ट व अपराधी नेताओं ने समय से पहले बदलवा दिया था।
मैंने सुना था कि जब स्थानांतरित एस.पी.पटना के रास्ते में सड़क मार्ग  से छपरा
 से सोन पुर की ओर जा रहे थे तो बीच के अनेक स्थानों में सड़क के किनारे  खड़ी जनता उसी तरह रो रही थी जिस तरह राम के वनवास के समय अयोध्या की प्रजा रो रही थी।
ऐसी उम्मीदें रहती हैं जनता को पुलिस तंत्र से ! !
 डी.जी.पी.साहब, आप भी कुछ ऐसा कर के जाइए ताकि लोग आपको दशकों तक याद रखंे।
मानुष जन्म बार-बार नहीं मिलता !
  कल क्या होगा, मैं नहीं जानता, पर मैं आपके प्रारंभिक अभियानों  को सकात्मक रूप से ही देखने के लिए खुद को बाध्य पाता हूंं । क्योंकि न तो मैं पूर्वाग्रहग्रस्त हूं और न ही विघ्नसंतोषी !
  इसीलिए कभी भी इस देश के किसी सत्ताधारी नेता या अफसर में कत्र्तव्य परायणता जैसा विरल गुण देखता हूंं तो मेरी उम्मीदें जग जाती हैं।
भले बाद में जो हो !  

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