बुधवार, 13 फ़रवरी 2019

सत्तर के दशक की बात है।
एक व्यक्ति ने इस देश के एक बड़े औद्योगिक घराने 
की एक खास बात बताई थी।
 उस घराने के किसी पदाधिकारी  पर जब मालिक नाराज होते थे तो वे उसे तत्काल नौकरी से नहीं निकालते थे।
उसे इतने ऊंचे पद पर बैठा देते थे जिस लायक वह नहीं होता था।
काम बहुत कम ,वेतन बहुत ज्यादा।
बैठने के लिए ठंडा-गरम स्थान !
कुछ महीनों के बाद उसकी छुट्टी कर दी जाती थी।
 अब उसे उतने ऊंचे पद वाली  नौकरी भला कौन देगा ?
उससे नीचे और उससे कम वेतन पर काम करना वह अपनी तौहीन मानने लगता था।
अब उसकी हालत का अंदाज लगा लीजिए।वह न घर का रहता था और न घाट का।
बिहार में दो नेता ऐसे नेता हुए जो पूर्व मुख्य मंत्री होने के बावजूद बाद में राज्य में कैबिनेट मंत्री बने थे।पर सिर्फ दो ही।
उनमें से एक से किसी ने तब पूछा कि आपने ऐसा क्यों किया ?
उन्होंने कहा कि मुझे तुरंत दिल्ली जाना है । अभी कोई एक्सप्रेस ट्रेन नहीं है तो क्या मैं साधारण ट्रेन से नहीं चला जाऊंगा ?
  इन दिनों चुनावी तालमेल व टिकटों के बंटवारे का दौर चल रहा है।कतिपय नेता ऐसे हैं जिनका मन -मिजाज  अब भी सातवें आसमान पर है।इस बीच राजनीति के बाजार में डिमांड और सप्लाई के बीच भारी अंतर आ चुका है।
 देखना है कि वे उन पूर्व मुख्य मंत्रियों  की ‘गति’ को प्राप्त होते हैं या उद्योगपति के पदाधिकारी  की नियति को !

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