मंगलवार, 19 फ़रवरी 2019

मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने ठीक ही कहा है कि ‘सवर्ण आरक्षण का जो विरोध करेगा,वह बुरी तरह झेलेगा।’
  नीतीश कुमार की बात अनुभव जनित है।
1990 में जिन लोगों ने ओबीसी आरक्षण का विरोध किया था,उन्होंने झेला।
बाद में उनमें से कुछ आरक्षण विरोधियों को पछतावा भी हुआ।
 पर तब तक तो चिडि़या खेत चुग चुकी थी।
पता नहीं, राजद ने सवर्ण आरक्षण का विरोध करने की गलती क्यों की ?
मुझे लगता है कि अगले लोस चुनाव को अगड़ा-पिछड़ा जंग में बदलने की कोशिश में उसने ऐसा किया है।
क्योंकि राजद सुप्रीमो को लगता होगा कि सिर्फ एम.वाई.से काम नहीं चलेगा।उतने से तो उतनी ही सफलता मिलेगी जितनी 2014 के लोक सभा व 2010 के बिहार विधान सभा चुनाव में मिली थी।
2015 के बिहार विधान सभा चुनाव में एक हद तक ऐसा इसलिए हो पाया था क्यांेंकि संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण की समीक्षा की जरूरत बता दी थी।एक बार नहीं, तीन -तीन बार।
साथ ही, तब जदयू भी राजद के साथ था।
2015 में लालू प्रसाद ने कहा था कि यह चुनाव अगड़ा और पिछड़ा के बीच है।
पर आज तो  ओबीसी आरक्षण पर कहीं कोई सवाल नहीं उठा रहा है।
 उठा भी नहीं सकता।कोई उठाएगा भी तो अदालत उसका साथ नहीं देगी।
 कुल मिला कर स्थिति यह है कि उपेंद्र कुशवाहा के साथ आने से राजद ने जो थोड़ा बहुत अर्जित किया था,उससे अधिक 10 प्रतिशत आरक्षण का विरोध करके गंवा दिया।कम से कम उन चुनाव क्षेत्रों में तो उसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा जहां महा गठबंधन के उम्मीदवार सवर्ण होंगे।
जिलों -जिलों से तो ऐसी ही खबरें आ रही  हैं। 

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