जब कोई पत्रकार पूछता है कि आपके अस्पताल में मरीजों के लिए ब्लड का बोतल टांगने के लिए स्टैंड तक नहीं है तो संबंधित अफसर जवाब देता है कि ‘अच्छा तो देखता हूं।प्रबंध करा दूंगा।’
जब कोई मीडिया मैन पूछता है कि मैन होल का ढक्कन क्यों नहीं है तो अफसर कहता है कि ‘जानकारी देने के लिए धन्यवाद ।ढक्कन लगवा दूंगा।’
इसी तरह जब संबंधित अफसर को यह बताने के लिए कोई पत्रकार उसके पास जाता है कि ‘आप के आॅफिस के ठीक बाहर ड्राइविंग लाइसेंस बनाने के लिए खुलेआम रिश्वत ली जा रही है’ तो अफसर अपनी अनभिज्ञता प्रकट कर देता है।
ऐसे अनेक उदाहरण आपको कहीं न कहीं मिल जाएंगे।
ऐसा इसलिए है क्योंकि सरकारी सेवा व विकास के कार्यों की आम तौर पर मोनिटरिंग ठीक से नहीं होती।यदि कोई अफसर निगरानी करने के लिए तैनात भी है तो वह शुकराना-नजराना लेकर सब कुछ ठीकठाक होने की कागजी खानापूत्र्ति करता रहता है।
मुजफ्फर पुर शेल्टर होम कांड इसका ताजा उदाहरण है।
यदि राज्य सरकार ने टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान,मुम्बई के लड़कों से उसकी जांच नहीं करवाई होती तो वहां अब तक वही सब अमानवीय कुकर्म होता रहता।
ईमानदार निगरानी से किस तरह भ्रष्टाचार पकड़े जा सकते हैं,उसका एक नमूना हाल में सामने आया है।
मुख्य सचिव ने विकास आयुक्त को स्थल निरीक्षण के लिए हाल में सारण भेजा था।
विकास आयुक्त सुभाष शर्मा छपरा पहुंच कर सरकारी सहायता से खोले गए बकरी पालन केंद्र का स्थल निरीक्षण करना चाहते थे।
चूंकि सब कुछ कागज पर चल रहा था,इसलिए सारण जिला पशु पालन पदाधिकारी शर्मा की टीम को स्थल निरीक्षण से रोकने के लिए बहाने बनाने लगा।
पर सुभाष शर्मा कुछ दूसरे ढंग के अफसर हैं।उन्होंने स्थल निरीक्षण किया ।उन्होंने पाया कि जिस बकरी पालन केंद्र के लिए लाखों रुपए सरकार ने दिए हैं ,स्थल पर उसका कोई नामो निशान तक नहीं था।
शर्मा ने जिलाधिकारी से कहा कि संबंधित दोषियों के खिलाफ एफ.आई.आर.दर्ज करिए।
अब इस बात की भी निगरानी करनी पड़ेगी कि प्राथमिकी दर्ज हुई या नहीं।हुई तो उस केस की प्रगति क्या है।स्वाभाविक है कि दोषी लोगों को बचाने में कुछ शक्तियां लग गई होंगी।
सुभाष शर्मा जैसे अफसरों से निरंतर स्थल निरीक्षण नहीं करवाया जा सकता ?इसके लिए कोई तंत्र विकसित नहीं किया जा सकता ?
ऐसा नहीं है कि सुभाष शर्मा जैसे कत्र्तव्यनिष्ठ अफसर उपलब्ध हैं ही नहीं।मौजूद हैं। यह और बात है कि कम संख्या में हैं।
पर उतने ही अफसर सरकारी धन के लुटेरों पर भारी पड़ेंगे।
--प्रस्तावित शेर पुर-दिघवारा गंगा पुल--
हाल में मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने घोषणा की कि शेर पुर-दिघवारा गंगा पुल बन कर तैयार हो जाने के बाद दिघवारा से नया गांव तक ‘नया पटना’ बन जाएगा।
ताजा खबर यह है कि छह लेन के प्रस्तावित शेर पुर-दिघवारा पुल के लिए डी.पी.आर.तो बनवाई जा रही है।पर
साथ ही यह भी सूचना है कि
इसके बन कर तैयार होने में दस साल लग सकते हैं।
प्रस्तावित ‘नया पटना’ जितना जल्द बस जाता,उतनी ही जल्दी पटना महानगर से आबादी का बोझ घट जाता।
या फिर बोझ बढ़ने की रफ्तार काफी कम हो जाती।
यदि दस साल में पुल ही बनेगा तो नया पटना बसेगा कब ?
इस बीच भूजल और पर्यावरण की दृष्टि से प्रादेशिक राजधानी की स्थिति और भी खराब हो जा सकती है।
--जमीन पर विरोध तो आसमान में सड़क--
दाना पुर से बिहटा तक अब एलिवेटेड सड़क बनेगी।
पहले इसकी जगह कोइलवर और पटना के बीच सतह पर
नेशनल हाईवे प्रस्तावित था।वह पटना-बक्सर रोड का हिस्सा था।
पहले के प्रस्ताव के अनुसार कोइलवर -पटना रोड को एम्स होते हुए बेऊर की ओर जाना था।
अब एम्स-बेऊर की ओर जाने वाले हिस्से को रद करने के लिए बिहार सरकार ने नेशनल हाईवे आॅथोरिटी को पत्र लिख दिया है।
दानापुर -बिहटा सड़क को ऊपर उठा कर बनाने की जरूरत क्यों पड़ी ?
दरअसल बिहटा के आसपास भूमि अधिग्रहण को लेकर किसानों के साथ सरकार सहमति नहीं बना पा रही थी।
संरेखन यानी एलाइनमेंट को लेकर भी जमीन वालों की ओर से विरोध के स्वर उठ रहे थे।मुआवजे को लेकर भी परेशानियां थीं।
अब जब एलिवेटेड सड़क बनने जा रही है तो किसानों व सड़क के किनारे के लोगों को अपना नुकसान नजर आ रहा है।
एक तो आम तौर से जो भी मुआवजा मिल रहा था,वह बाजार दर से अधिक था।
साथ ही एलिवेटेड बनने के बाद सड़क के आसपास के विकास की संभावना कम हो जाएगी।
चार लेन एन.एच.होता तो सड़क के दोनों तरफ के इलाके विकसित होते।नए -नए उद्योग,स्कूल और अस्पताल आदि
खुलते।उनसे किसानों को भी अधिक लाभ होता।
खबर है कि एलिवेटेड बनाने के निर्णय से अनेक किसानों को अफसोस हो रहा है।
पर अब क्या हो सकता है ?
अन्य स्थानों के लिए भी यह चेतावनी है।
अब तो लगता है कि जमीन अधिग्रहण को लेकर जहां भी विवाद होगा,सरकार एलिवेटेड सड़क बनवा देगी।
--‘आप’ से दोस्ती को तैयार नहीं कांग्रेस--
मुख्य मंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि हम कांग्रेस से कह -कह कर थक गए,पर वह हमसे चुनावी तालमेल करने को तैयार ही नहीं है।
आश्चर्य है ! कांग्रेस अन्य राज्यों में इस काम के लिए बेेचैन है ।पर दिल्ली में क्यों नहीं ?
क्या कांग्रेस को लगता है कि वह इतनी ताकतवर हो चुकी है कि दिल्ली की सभी लोस सीटें अकेले ही जीत लेगी ?
या क्या कांग्रेस यह मानती है कि जेएनयू राष्ट्रद्रोह केस में अभियोजन की अनुमति नहीं देकर दिल्ली सरकार ने गलत काम किया है और उसका खामियाजा ‘आप’ को चुनाव में भुगतना पड़ेगा ? पता नहीं।
--भूली बिसरी याद--
पटना हाईकोर्ट के ताजा आदेश से जिन पूर्व मुख्य मंत्रियों को सरकारी बंगले छोड़ने पड़ेंगे,उनमें एक ऐसे नेता भी हैं जिन्हें कुछ दशक पहले भी जबरन निकाला गया था।वे अनधिकृत रूप से सरकारी बंगले में रह रहे थे।
उन्हें एक बार पटना के सरकारी बंगले से तो दूसरी बार दिल्ली के बंगले से निकाला गया।
इस बार तो खैर कानून के तहत उन्हें पटना में बंगला मिला था।हाईकोर्ट के आदेश के बाद उसे खाली करना पड़ेगा।
पर, पिछली बार तो वे अवैध ढंग से रह रहे थे।
हालांकि वैसे नेता देश भर में भरे पड़े हैं।
बहुत पहले सुप्रीम कोर्ट ऐसे अवैध कब्जादारों के खिलाफ जनहित याचिका पर विचार कर रहा था।देश भर के कब्जादारों के मामले सुप्रीम कोर्ट के सामने थे।
निष्कासन के लिए सुप्रीम कोर्ट बार-बार विभिन्न सरकारों को आदेश दे रहा था,पर उन्हें मकानों से हटाया नहीं जा रहा था।
एक बार तो क्षुब्ध होकर सुप्रीम कोर्ट ने यहां तक कह दिया था कि जब सरकारें हमारी बात ही नहीं मान रही है तो इस मामले की सुनवाई से क्या फायदा ?
1994 में पटना के 768 सरकारी आवासों पर अनधिकृत कब्जा था।उनमें 60 नेता व शीर्ष अफसर शामिल थे।
अब तो उतनी खराब स्थिति नहीं है।पर कोई आदर्श स्थिति भी नहीं है।
--और अंत में-
बिहार विधान परिषद में बुधवार को स्कूटर पर सांड ढोने की एक पुरानी घटना की चर्चा हुई।
भाजपा सदस्य ने राजद पर तंज कसते हुए कहा कि ‘स्कूटर पर सांड ढोने का जमाना अब नहीं रहा।’
भाजपा सदस्य जरा अपनी जानकारी बढ़ा लें।
स्कूटर पर सांड ढोने की घटना 6 दिसंबर, 1985 को हुई थी।
सी.ए.जी.की रपट के अनुसार रांची से घाघरा 4 सांड एक ही स्कूटर पर ‘चढ़ कर’ गए थे।वाहन का बिल बना था --1285 रुपए। 1985 में बिहार में राजद की सरकार नहीं थी ।
कांग्रेस की सरकार थी।
मेहरबानी करके राजद पर इतना मामूली आरोप तो मत लगाइए !!
--kanokan --22 Feb 19--Prabhat khaba
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