बिहार के सारण जिले के एक किसान परिवार को जानता हूं जिसके घर के एक व्यक्ति को
1976 में 125 रुपए महीने पर सरकारी शिक्षक की नौकरी मिली थी।उस परिवार के लिए बाहरी आय का वह पहला जरिया था।
उस मध्यम किसान के घर कुछ अनाज तो थे,पर नकदी नहीं।
फलस्वरूप 125 रुपए की मासिक आय रेगिस्तान में वर्षा की फुहार की तरह साबित हुई थी।
क्योंकि नमक, तेल, दियासलाई, लेमचूस तथा इस तरह के छोटे -मोटे सामान के लिए अनाज लेकर दुकान पर जाना बंद हो गया था।
आज भी उस किसान की हालत यह है कि उसकी सारी जमीन में फसल नहीं लगायी जाती ।क्योंकि अधिक ‘खेती’ यानी अधिक घाटा।
दरअसल आजादी के बाद से ही सरकारों ने अधिकतर किसानों को अपने पैरों पर खड़ा होने ही नहीं दिया।
आज सीमांत किसान के लिए 6000 रुपए सालाना का कितना महत्व है,यह बात इस देश के अधिकतर नेता व बुद्धिजीवी -विश्लेषक नहीं समझ पाते क्योंकि वे सरजमीन से कटे हुए हैं या पूर्वाग्रहग्रस्त हैं।
छह हजार तो शुरूआत है।इसे समय के साथ बढ़ना ही है।
यदि सरकार कठोर ईमानदारी से टैक्स वसूले तो किसानों तथा समाज के दूसरे कमजोर वर्ग को राहत देने के लिए पैसों की कमी नहीं रहेगी।
पहले से स्थिति सुधरी है,फिर आज भी
टैक्स चोरी खूब हो रही है।
यदि सरकार देश के बाजारों में अपने आर्थिक खुफिया दस्ता भेजे तो भारी टैक्स चोरी का उद्भेदन किया जा सकता है।
खैर इस बीच कांग्रेस कह रही है कि हम सत्ता में आएंगे तो अपनी न्यूनत्तम आय योजना के तहत हर साल 3 लाख करोड़ रुपए खर्च करेंगे।
यदि कांग्रेस अगली बार सत्ता में आए तो फुहारों की जगह राहत की बरसात कर दे।लोग खुशी से झूम उठेंगे।
पर उसके लिए उसे टूजी,कोल घोटाला,काॅमनवेल्थ तथा इस तरह के अन्य घोटालों को रोक कर ईमानदारी से टैक्स वसूलने और सरकारी खजाने की रक्षा का काम करना होगा।
फिलहाल मौजूदा सरकार के ‘वोट बटोरू बजट’ देख कर
जलने की जगह वह आत्म मंथन करे।उधर मोदी सरकार कह रही है कि अगले महीने के अंत तक सीमांत किसानों के खातों में 2000 रुपए चले जाएंगे।
ऐसी सरकारी राहतों से किस तरह गरीब लोग खुश होते हैं,उसका एक उदाहरण 2010 में बेगूसराय से मिला मिला था।
बिहार विधान सभा का चुनाव होने वाला था।
नीतीश कुमार के गत पांच साल के काम कसौटी पर थे।
बेगूसराय के एक पत्रकार ने मुझे एक दिलचस्प प्रकरण सुनाया।
लालू प्रसाद के वोट बैंक के दायरे के एक परिवार की महिला एक दिन रो रही थी।
पत्रकार ने कारण पूछा।महिला ने बताया कि मेरे पति ने पंजाब से फोन किया है कि तुम लालू जी की पार्टी को ही वोट देना।
मैंने उनसे कहा कि इस सरकार ने हमारे बच्चों को साइकिल,पोशाक छात्रवृत्ति दी है।लालू जी की सरकार ने तो हमारे बच्चे को एक टाॅफी भी नहीं दी थी।
इस पर पति ने डांटते हुए कहा कि लालू जी ने हमें सीना तान कर चलना सिखाया।सम्मान से जीने का रास्ता बताया और उन्हें वोट नहीं दोगी ?
इस पर पत्नी चुप हो गयी।
पर वह द्विविधा में थी।उसने पत्रकार से कहा कि हमारी आत्मा हमें माफ नहीं करेगी यदि हम लालू जी को वोट देंगे।पर पति की बात भी माननी है।
यह है छोटी सी भौतिक उपलब्धि का असर !
याद रहे कि राजग 2010 में भी बिहार में विजयी रहा था।
यदि कांग्रेस कभी केंद्र में सत्ता में आए और 3 लाख करोड़ रुपए वाली योजना को लागू करे तो उसे आगे के चुनाव में उसका भारी लाभ मिलेगा।पर अभी तो उसे तमाशा ही देखना पड़ेगा !!!
1976 में 125 रुपए महीने पर सरकारी शिक्षक की नौकरी मिली थी।उस परिवार के लिए बाहरी आय का वह पहला जरिया था।
उस मध्यम किसान के घर कुछ अनाज तो थे,पर नकदी नहीं।
फलस्वरूप 125 रुपए की मासिक आय रेगिस्तान में वर्षा की फुहार की तरह साबित हुई थी।
क्योंकि नमक, तेल, दियासलाई, लेमचूस तथा इस तरह के छोटे -मोटे सामान के लिए अनाज लेकर दुकान पर जाना बंद हो गया था।
आज भी उस किसान की हालत यह है कि उसकी सारी जमीन में फसल नहीं लगायी जाती ।क्योंकि अधिक ‘खेती’ यानी अधिक घाटा।
दरअसल आजादी के बाद से ही सरकारों ने अधिकतर किसानों को अपने पैरों पर खड़ा होने ही नहीं दिया।
आज सीमांत किसान के लिए 6000 रुपए सालाना का कितना महत्व है,यह बात इस देश के अधिकतर नेता व बुद्धिजीवी -विश्लेषक नहीं समझ पाते क्योंकि वे सरजमीन से कटे हुए हैं या पूर्वाग्रहग्रस्त हैं।
छह हजार तो शुरूआत है।इसे समय के साथ बढ़ना ही है।
यदि सरकार कठोर ईमानदारी से टैक्स वसूले तो किसानों तथा समाज के दूसरे कमजोर वर्ग को राहत देने के लिए पैसों की कमी नहीं रहेगी।
पहले से स्थिति सुधरी है,फिर आज भी
टैक्स चोरी खूब हो रही है।
यदि सरकार देश के बाजारों में अपने आर्थिक खुफिया दस्ता भेजे तो भारी टैक्स चोरी का उद्भेदन किया जा सकता है।
खैर इस बीच कांग्रेस कह रही है कि हम सत्ता में आएंगे तो अपनी न्यूनत्तम आय योजना के तहत हर साल 3 लाख करोड़ रुपए खर्च करेंगे।
यदि कांग्रेस अगली बार सत्ता में आए तो फुहारों की जगह राहत की बरसात कर दे।लोग खुशी से झूम उठेंगे।
पर उसके लिए उसे टूजी,कोल घोटाला,काॅमनवेल्थ तथा इस तरह के अन्य घोटालों को रोक कर ईमानदारी से टैक्स वसूलने और सरकारी खजाने की रक्षा का काम करना होगा।
फिलहाल मौजूदा सरकार के ‘वोट बटोरू बजट’ देख कर
जलने की जगह वह आत्म मंथन करे।उधर मोदी सरकार कह रही है कि अगले महीने के अंत तक सीमांत किसानों के खातों में 2000 रुपए चले जाएंगे।
ऐसी सरकारी राहतों से किस तरह गरीब लोग खुश होते हैं,उसका एक उदाहरण 2010 में बेगूसराय से मिला मिला था।
बिहार विधान सभा का चुनाव होने वाला था।
नीतीश कुमार के गत पांच साल के काम कसौटी पर थे।
बेगूसराय के एक पत्रकार ने मुझे एक दिलचस्प प्रकरण सुनाया।
लालू प्रसाद के वोट बैंक के दायरे के एक परिवार की महिला एक दिन रो रही थी।
पत्रकार ने कारण पूछा।महिला ने बताया कि मेरे पति ने पंजाब से फोन किया है कि तुम लालू जी की पार्टी को ही वोट देना।
मैंने उनसे कहा कि इस सरकार ने हमारे बच्चों को साइकिल,पोशाक छात्रवृत्ति दी है।लालू जी की सरकार ने तो हमारे बच्चे को एक टाॅफी भी नहीं दी थी।
इस पर पति ने डांटते हुए कहा कि लालू जी ने हमें सीना तान कर चलना सिखाया।सम्मान से जीने का रास्ता बताया और उन्हें वोट नहीं दोगी ?
इस पर पत्नी चुप हो गयी।
पर वह द्विविधा में थी।उसने पत्रकार से कहा कि हमारी आत्मा हमें माफ नहीं करेगी यदि हम लालू जी को वोट देंगे।पर पति की बात भी माननी है।
यह है छोटी सी भौतिक उपलब्धि का असर !
याद रहे कि राजग 2010 में भी बिहार में विजयी रहा था।
यदि कांग्रेस कभी केंद्र में सत्ता में आए और 3 लाख करोड़ रुपए वाली योजना को लागू करे तो उसे आगे के चुनाव में उसका भारी लाभ मिलेगा।पर अभी तो उसे तमाशा ही देखना पड़ेगा !!!
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