रविवार, 24 फ़रवरी 2019

चुनाव के दिनों अनेक नेतागण एक दूसरे के खिलाफ जातिवाद 
के आरोप कुछ ज्यादा ही लगाने लगते हैं।
 ऐसा करने का नैतिक अधिकार किसको है ? किसको नहीं है ? 
1.-उसे तो बिलकुल नहीं है जिसके निजी सचिव और बाॅडी गार्ड दोनों उस नेता की ही जाति के हैं।
2.-कल्पना कीजिए कि किसी सत्ताधारी नेता या अफसर को 
कहीं किसी संस्थान में 100 कर्मचारियों की बहाली का अधिकार मिला ।यदि उस नेता या अफसर की जाति के 20 प्रतिशत से अधिक लोग वहां बहाल हो गए तो उसे दूसरे पर जातिवादी होने का आरोप लगाने का  अधिकार नहीं है।
3.-यदि कोई नेता अपने दल के चुनावी टिकट के लिए अपनी जाति से दस  प्रतिशत से अधिक लोगों का चयन करता है तो उसे भी दूसरे को जातिवादी कहने का अधिकार नहीं है।
 4.-यही बात दलीय पदाधिकारियों की संख्या पर भी लागू होती है।
5.-किसी व्यक्ति की निजी फोन डायरी में उसकी अपनी जाति के कितने प्रतिशत लोगों के नंबर हैं।रिश्तेदारों को छोड़कर।
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सत्तर के दशक में एक समाजवादी नेता के साथ एक दिन मैं 
पटना में घूमा ।नेता जी छह या सात व्यक्तियों के घर गए।
  दिन का भोजन एक डाक्टर के यहां हुआ।
दूसरे दिन सुबह मैं उसी नेता के यहां बैठा हुआ था।
नये जोश में मेरे मुंह से निकल गया,‘बिहार की राजनीति में बहुत जातिवाद है।’
नेता जी समझ गए।उन्होंने कहा कि ‘ दुर बुरबक ,जब तक जाति में शादी होती रहेगी ,तब तक तो जातिवाद  
रहेगा ही !’
  


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