सोमवार, 25 फ़रवरी 2019

बिहार की  प्राथमिक शिक्षा-स्वास्थ्य सेवा को 
सुधारने के लिए सर्जिकल स्ट्राइक जरूरी
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केंद्रीय मंत्री आर.के.सिंह ने कहा है कि ‘स्कूलों में मास्टर नहीं आते हैं और डी.एस.ई.आंखें मूंदे रहते हैं।
यह व्यवस्था सिर्फ बिहार में है।
सरकार को इस संबंध में विचार करना चाहिए।
बिहार में स्वास्थ्य विभाग का भी बुरा हाल है।प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर डाक्टर नहीं जाते।वे आरा और पटना में बैठकर प्रैक्टिस करते हैं।भागे रहने के एवज में सारे डाक्टर, सिविल सर्जन को कमाई का एक हिस्सा दे देते हैं।
आगे सिविल सर्जन क्या करते हैं, सबों को पता है।’
 बिहार काॅडर के आई.ए.एस. रहे आर.के. सिंह ने वही कहा है जिसकी जानकारी सरकार को ‘छोड़कर’ पूरे बिहार को है।
 आर.के.सिंह उन थोड़े से जन प्रतिनिधियों में शामिल हैं जो सांसद फंड से  कमीशन नहीं लेते।
जो जन प्रतिनिधि लेते हैं,वे अफसरों के सामने लज्जित रहते हैं।वे भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ इस तरह आवाज नहीं उठाते ।
   दरअसल गरीब व पिछड़े वर्ग के लोग शिक्षा व स्वास्थ्य के लिए सरकारी स्कूलों व अस्पतालों पर ही निर्भर रहने को मजबूर होते हैंं।पर उसकी भी ऐसी उपेक्षा ?
  आर.के.सिंह की इस आवाज को कुछ अन्य विक्षुब्ध सत्ताधारी सांसदों की आवाजों से अलग करके देखना चाहिए।
 आर.के. अपनी सेवा के प्रारंभिक काल से ही ऐसे ही हैं।
 मैं उसका गवाह हूं।
बात तब की है जब आर.के. सिंह पटना के डी.एम. थे।
डी.एम. ही प्राथमिक शिक्षा की जिला स्थापना समिति के प्रधान हुआ करते थे।
हम लोग लोहिया नगर में रहते थे।मेरी पत्नी पटना में ही पर आवास से  दूर स्थित एक सरकारी मिडिल स्कूल में पढ़ाने जाती थी।
अल्प वेतन का आधा पैसा रिक्शा भाड़े मेें चला जाता था।
लोहिया नगर के एक ‘बाबू साहब’ कभी- कभी  मेरे घर आया करते थे।
एक दिन जब उन्हें चाय नहीं मिली तो पता चला कि मेरी पत्नी तो स्कूल जा चुकी हैं।
उन्होंने पूछा,‘इतनी जल्दी ?अभी तो नौ ही बजे हैं ?’
मैंने कहा कि ‘दूर जाना होता है,इसलिए जल्दी चली गयी।’
उन्होंने कहा कि आर.के. मेरे परिचित हैं,उनसे मैं बात करूंगा।मैंने उन्हें मना नहीं किया।
  एक दिन वे डी.एम.साहब से मिले।
उनसे कहा कि ‘सुरेंद्र किशोर को जानते हैं न ! जनसत्ता का रिपोर्टर है।
अपना जात-भाई है।उसकी पत्नी कष्ट में है।उसे नजदीक के किसी स्कूल में ट्रांसफर कर दीजिए।’
इस पर आर.के. ने अनिच्छा दिखाते हुए कहा कि
 ‘पटना से पटना में बदली होती है ?
यह संभव नहीं है।’
वे ऐसे कडि़यल अफसर थे कि कोई उनसे बहस नहीं कर सकता था।
बेचारे उदास ‘बाबू साहब’ दूसरे दिन मेरे पास आए।कहा कि गजब आदमी है आर.के. ! ऐसे -ऐसे कह दिया। 
मैं तो मन ही मन खुश हुआ।
एक ऐसा अफसर जो न जात के प्रभाव में आया और न ही जनसत्ता जैसे अखबार से सहमा ।जरूर राज्य का भला करेगा।
याद रहे कि उन दिनों जनसत्ता की 18 हजार प्रतियां पटना आती थीं।
कई विवादास्पद हस्तियों को यह आशंका रहती थी कि पता नहीं कल के जनसत्ता में किसके बारे में क्या छपा होगा !
आर.के.कभी विवादास्पद रहे नहीं।उन्हें किसी अखबार से भला क्यों डरना !
 मैं कभी आर.के.सिंह से मिला नहीं।न अब कोई वैसा अवसर आने की उम्मीद है।क्योंकि मैंने कहीं आना-जाना काफी कम कर दिया है।
  पर, राज्य सरकार खास कर मुख्य मंत्री नीतीश कुमार को
चाहिए कि वे गरीबों व पिछड़ों के भले के लिए प्राथमिक शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा को पटरी पर लाने के लिए  यथाशीघ्र सर्जिकल स्ट्राइक करें । 
   
  


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