1.-आज के दैनिक ‘हिन्दुस्तान’ में बिहार के सारण जिले से एक दर्दनाक खबर छपी है। इसुआ पुर प्रखंड के फेनहरा गांव की एक महिला ने आर्थिक तंगी से परेशान होकर बेटी के साथ जहर खा लिया।महिला की मौत हो गयी।बेटी मौत से जूझ रही है।
2.-हाल ही में आई ‘कैग’ की रपट के अनुसार
राजकीय उपक्रमों का सालाना घाटा 30 हजार करोड़ रुपए है।सवाल है कि ये पैसे यदि लूट में चले जाने से बच गए होते तो न जाने इस गरीब देश के कितने गरीबों को आत्म हत्या करने से बचाया जा सकता था !
3.-आज के ही अखबारों में यह खबर भी छपी है कि महाराष्ट्र पुलिस ने छह राज्यों में छापे मार कर कल पांच माओवाद समर्थकों को गिरफ्तार किया।
याद रहे कि इस देश में माओवादियों का घोषित उद्देश्य यह है कि हथियार के बल पर राजसत्ता पर कब्जा किया जाए ताकि समतामूलक समाज बने ।यानी कोई भूख से न मरे।
पर सवाल है कि क्या उनके इस उद्देश्य की पूत्र्ति उस तरीके से संभव है ?
उनकी मंशा को सही मान भी लिया जाए तो सवाल है कि क्या भारत 1917 का रूस और 1949 का चीन है ?
4.-अराजकता फैला कर माओवादी इस देश में शायद ही कुछ हासिल कर सकते हैं।
उन्हें सलाह दी जा रही है कि वे नेपाल के कम्युनिस्ट दलों से सीख कर चुनाव लड़ें ।यदि जीत जाएं तो ईमानदारी से सरकार चलाएं।शायद यह संभव भी हो जाए !
क्योंकि इस देश में चुनाव लड़ने वाले अधिकतर राजनीतिक
नेता व कार्यकत्र्ता भटक चुके हैं।राजनीति में जो अच्छे लोग हैं वे भ्रष्टाचार के दानवों के सामने खुद को लाचार महसूस कर रहे हैं।यानी अच्छे व अहिंसक राजनीतिक कार्यकत्र्ताओं के लिए जगह खाली है।
5.-माओवादी बनना तो चाहते हैं भगत सिंह ,पर जब पकड़े जाते हैं तो स्वीकार ही नहीं करते कि वे कर क्या रहे थे।क्या भगत सिंह ने कभी कहा कि मैंने वह काम नहीं किया जिसके लिए मुझे फांसी दी जा रही है ?
यहां तक कि महात्मा गांधी भी जब कानून तोड़ते थे तो उसकी सजा भुगतने के लिए भी तैयार रहते थे।
पर आज के माओवादी और उनके समर्थक ?
यदि स्वीकार करोगे तो सच्चा माने जाओगे।अन्यथा.........।
2.-हाल ही में आई ‘कैग’ की रपट के अनुसार
राजकीय उपक्रमों का सालाना घाटा 30 हजार करोड़ रुपए है।सवाल है कि ये पैसे यदि लूट में चले जाने से बच गए होते तो न जाने इस गरीब देश के कितने गरीबों को आत्म हत्या करने से बचाया जा सकता था !
3.-आज के ही अखबारों में यह खबर भी छपी है कि महाराष्ट्र पुलिस ने छह राज्यों में छापे मार कर कल पांच माओवाद समर्थकों को गिरफ्तार किया।
याद रहे कि इस देश में माओवादियों का घोषित उद्देश्य यह है कि हथियार के बल पर राजसत्ता पर कब्जा किया जाए ताकि समतामूलक समाज बने ।यानी कोई भूख से न मरे।
पर सवाल है कि क्या उनके इस उद्देश्य की पूत्र्ति उस तरीके से संभव है ?
उनकी मंशा को सही मान भी लिया जाए तो सवाल है कि क्या भारत 1917 का रूस और 1949 का चीन है ?
4.-अराजकता फैला कर माओवादी इस देश में शायद ही कुछ हासिल कर सकते हैं।
उन्हें सलाह दी जा रही है कि वे नेपाल के कम्युनिस्ट दलों से सीख कर चुनाव लड़ें ।यदि जीत जाएं तो ईमानदारी से सरकार चलाएं।शायद यह संभव भी हो जाए !
क्योंकि इस देश में चुनाव लड़ने वाले अधिकतर राजनीतिक
नेता व कार्यकत्र्ता भटक चुके हैं।राजनीति में जो अच्छे लोग हैं वे भ्रष्टाचार के दानवों के सामने खुद को लाचार महसूस कर रहे हैं।यानी अच्छे व अहिंसक राजनीतिक कार्यकत्र्ताओं के लिए जगह खाली है।
5.-माओवादी बनना तो चाहते हैं भगत सिंह ,पर जब पकड़े जाते हैं तो स्वीकार ही नहीं करते कि वे कर क्या रहे थे।क्या भगत सिंह ने कभी कहा कि मैंने वह काम नहीं किया जिसके लिए मुझे फांसी दी जा रही है ?
यहां तक कि महात्मा गांधी भी जब कानून तोड़ते थे तो उसकी सजा भुगतने के लिए भी तैयार रहते थे।
पर आज के माओवादी और उनके समर्थक ?
यदि स्वीकार करोगे तो सच्चा माने जाओगे।अन्यथा.........।
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