सोमवार, 27 अगस्त 2018


उच्च शिक्षा में सुधार हुआ तो राज्यपाल का उपकार मानेगा  बिहार 
निवत्र्तमान राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने बिहार की अस्त- व्यस्त उच्च शिक्षा में सुधार की ठोस पहल शुरू कर दी थी।
इसी बीच उनका तबादला हो गया।उम्मीद है कि मौजूदा राज्यपाल सह विश्व विद्यालयों के चांसलर लाल जी टंडन उस काम को आगे बढ़ाएंगे। 
काम तो जरा कठिन है,पर यदि महामहिम उच्च शिक्षा को पटरी पर ला सके तो यह बिहार पर उनका  एक बड़ा उपकार माना जाएगा।
   उत्तर प्रदेश मूल के किसी हस्ती  के लिए इस बिहार राज्य की उच्च शिक्षा की दुर्दशा को समझना आसान है ।क्योंकि मिल रही सूचनाओं के अनुसार लगभग ऐसे ही हालात उत्तर प्रदेश के भी हैं।
 बिहार में भी  शिक्षण  और परीक्षा में  प्रामाणिकता कायम करने की सख्त जरूरत है।
 अनेक स्तरों पर शिक्षा माफिया सक्रिय हैं।उनको सही मुकाम पर पहुंचाने का काम कठिन है।हालांकि यह काम असंभव नहीं है।पर जो भी हो,उसे तो करना ही पड़ेगा ताकि अगली पीढि़यां 
हमंे दोष न दें।
चूंकि उच्च शिक्षा के मामले में चांसलर को अधिक अधिकार मिले हुए हैं,इसलिए उनका इस्तेमाल करके ही इसे सुधारा जा सकेगा।
 नये महा महिम से यह उम्मीद  की  जा रही है।
बिहार की उच्च शिक्षा की बर्बादी का एक पिछला नमूना पेश है। सन 2009 से 2013 तक देवानंद कुंवर बिहार के राज्यपाल सह चांसलर थे।
एक बार जब राज्यपाल कुंवर विधान मंडल  की संयुक्त बैठक को संबांधित करने पहुंचे तो कांग्रेस की एम.एल.सी.ज्योति ने उनसे सवाल कर दिया,‘आजकल वी.सी.की बहाली का क्या रेट चल रहा है आपके यहां ?’
  खैर, उस हालात से तो बिहार अब उबर चुका है,पर अभी बहुत कुछ करना बाकी है।    
--शिक्षा माफिया की ताकत--
यह पक्की खबर है कि सत्यपाल मलिक को कश्मीर का राज्यपाल इसलिए बनाया गया क्योंकि वह इस पद के लिए 
सर्वाधिक योग्य व्यक्ति माने गये।
पूर्व राज्यपाल विद्या सागर राव,पूर्व केंद्रीय गृह सचिव राजीव महर्षि,सत्यपाल मलिक ,एडमिरल शेखर सिन्हा और भाजपा नेता अविनाश राय खन्ना में से किन्हीं एक को चुनना था।
उस कठिन तैनाती के लिए सबसे योग्य बिहार के राज्यपाल को माना गया।
 पर बिहार से उनके हटने को लेकर यहां एक अफवाह उड़ चली।वह यह कि शिक्षा माफिया ने उन्हें यहां से हटवा दिया।
यह बेसिरपैर की अफवाह है।
  पर,इस अफवाह के पीछे भी एक खबर है।वह यह कि लोगों में यह धारणा बनी हुई है कि शिक्षा माफिया इतने अधिक ताकतवर हैं कि वे अपने स्वार्थ में आकर किसी राज्यपाल का भी तबादला करवा सकते हैं।
 ऐसे में तो उन माफियाओं को उनके असली मुकाम तक पहुंचाने का काम और भी जरूरी है ताकि इस गरीब राज्य के छात्र-छात्राओं के लिए बेहतर शिक्षा की व्यवस्था की जा सके।
 अब तक जो खबरें मिलती रही हैं ,उनके अनुसार शिक्षा माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई में मुख्य मंत्री नीतीश कुमार हमेशा चांसलर  का सहयोग करते आए हैं।इसलिए लगता है कि नये महा महिम को शिक्षा में सुधार का श्रेय मिलने ही वाला है।
वैसे भी जो माफिया तत्व आम जन का जितना अधिक नुकसान पहुंचा रहे हैं,उनसे लड़ने की जरूरत उतनी अधिक महसूस की जानी चाहिए।
--वी.आर.एस.जरूरी या मरीजों की सेवा--
गरीब मरीजों की सेवा अधिक जरूरी है या डाक्टरों की स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति ?
हाल में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह सवाल उठा था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि सभी चिकित्सकों को स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति की सुविधा दे दी जाए तो सरकारी स्वास्थ्य सेवा ध्वस्त हो जाएगी।
  इससे पहले उत्तर प्रदेश के कुछ सरकारी डाक्टरों ने 
स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति के लिए आवेदन पत्र दिए थे।राज्य सरकार ने उन्हें नामंजूर कर दिया।
डाक्टर इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचे।अदालत ने सन 2017 में डाक्टरों के पक्ष में निर्णय किया।पर जब राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट गयी तो सबसे बड़ी अदालत ने राज्य सरकार के कदम को सही बताया।
दरअसल इस मामले में डाक्टरों की भी कुछ बातें सही हैं।
सरकार  अपने  डाक्टरों को भरपूर ढांचागत
सुविधा नहीं देती।न तो काम करने का उचित माहौल रहता है और न ही समुचित मात्रा में मेडिकल औजार की आपूत्र्ति होती है।नतीजतन कई बार इलाज मंे किसी तरह की कमी का खामियाजा स्थल पर मौजूद डाक्टरों को भुगतना पड़ता है।
हालांकि डाक्टरों के खिलाफ जन रोष  के सिर्फ यही कारण नहीं हैं।पर इन्हें तो हल होने ही चाहिए।
यह समस्या सिर्फ उत्तर प्रदेश की ही नहीं है।यह समस्या बिहार सहित अन्य राज्यों की भी है।इसकी ओर ध्यान दिया जाना चाहिए।  
--तमिलनाडु की जेलों में भेजे जाएं बिहार के अपराधी-- 
क्या बिहार के  कुख्यात अपराधियों को तमिलनाडु या केरल 
की  जेलों में स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है ?
उनके बदले उन राज्यों के कुख्यात अपराधी बिहार की  जेलों में लाए जा सकते हैं।
  बिहार के अपराधी जेल से ही अपराध करवा रहे हैं।
मोबाइल के जरिए या फिर मुलाकातियों की मदद से।
यदि वे तमिलनाडु में रहेंगे तो उन्हें भाषा की दिक्कत आएगी।
वहां के जेल सुरक्षाकर्मियों से बातचीत कर अपने लिए अवैध सुविधाएं हासिल नहीं कर पाएंगे।
अवैध सुविधाओं में मोबाइल की सुविधा प्रमुख है।
यदि मोबाइल की सुविधा मिल भी जाए तो वे यहां की जेलों में जिस तरह ऐश करते हैं,वहां न कर सकेंगे।
यही हाल केरल-तमलिनाडु के अपराधियों का बिहार के जेलों में होगा।वे बिहार के जेल कर्मियों की भाषा नहीं समझ सकेंगे।
विडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए इनकी अदालती सुनवाई तो हो ही सकती है।
यह प्रयोग किया जा सकता है।
---भूली बिसरी याद--
सन् 1934 में बिहार के भूकम्प के असर के बारे में जवाहर लाल नेहरू ने लिखा था कि ‘ दैत्य ने जैसे बिहार को मरोड़ दिया हो !’
अपनी बिहार यात्रा के बारे में नेहरू ने लिखा कि लौटते हुए ‘हम राजेंद्र बाबू के साथ भूकम्प पीडि़तों की सहायता के सवाल पर विचार के लिए पटना ठहरे।
वह अभी जेल से छूट कर ही आए थे और लाजिमी तौर पर उन्होंने पीडि़तों की सहायता के गैर सरकारी काम में सबसे आगे कदम रखा।
कमला के भाई के जिस मकान में हम ठहरना चाहते थे,वह खंडहर हो गया था।हम लोग खुले में ठहरे।
दूसरे दिन मुजफ्फर पुर गया।
इमारतों के खंडहरों का दृश्य बड़ा मार्मिक और रोमांचकारी था।जो लोग बच गए थे,वे अपने दिल दहलाने वाले अनुभवों के कारण बिलकुल घबराए हुए और भयभीत हो रहे थे।
ऐन भूकम्प के मौके पर एक बच्ची पैदा हुई।उनके अनुभवहीन माता -पिता को यह न सूझा कि क्या करना चाहिए और वे पागल से हो गए।
मगर मैंने सुना कि मां और बच्ची दोनों की जान बच गयी।भूकम्प की यादगार में बच्ची का नाम ‘कंपो देवी’ रखा गया।
जब हमने मुंगेर की अत्यंत विनाशपूर्ण हालत देखी तो 
उसकी भयंकरता से हमारा दम बैठ गया।
हमें कंपकपी आने लगी।मैं उस महा भयंकर दृश्य को कभी भूल नहीं सकता। ’
  ---और अंत मंें--
अटल बिहारी वाजपेयी 1977-79 में मोरारजी देसाई मंत्रिमंडल के सदस्य थे।
विदेश मंत्री थे।
पर सत्ताधारी जनता पार्टी यह चाहती थी कि अटल जी सरकार को छोड़कर पार्टी का काम करें।
उनके सौम्य स्वभाव और बेजोड़ वक्ता होने का लाभ पार्टी उठाना चाहती थी।
पर 1978 की  जुलाई में जनता पार्टी संसदीय दल के महा सचिव दिग्विजय नारायण सिंह ने घोषणा कर दी कि प्रधान मंत्री, अटल जी को पार्टी के काम के लिए मुक्त करने के पक्ष में नहीं हैं।
 दरअसल विदेश मंत्री के रूप में भी अटल जी इतने व्यस्त रहते थे कि उन दिनों एक बार किसी प्रतिपक्षी नेता ने विनोद पूर्ण ढंग से कहा था कि ‘अटल बिहारी वाजपेयी इन दिनों भारत के दौरे पर आए हैं ।’ 
@24 अगस्त, 2018 को प्रभात खबर-बिहार मंे प्रकाशित मेरा काॅलम कानोंकान से@ 


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