अस्सी के दशक की बात है।
कुलदीप नैयर इंडियन एक्सप्रेस के पटना ब्यूरो आॅफिस आए थे।
वे ब्यूरो प्रमुख कृपाकरण से बातचीत कर रहे थे।
जनसत्ता संवाददाता के रूप में मैं तब तक एक्सप्रेस ग्रूप ज्वाइन कर चुका था।
वहां बातचीत में मैं भी शामिल था।
नैयर साहब का जेपी से विशेष लगाव रहा था।
कुलदीप नैयर को आपातकाल में गिरफ्तार भी किया गया था।
1979 में जेपी का निधन हो चुका था।1980 में कांग्रेस की बिहार की सत्ता में भी वापसी हो चुकी थी।
कुलदीप नैयर बिहार की स्थिति से खिन्न लग रहे थे।वे कह रहे थे कि क्या इसी दिन के लिए जेपी ने यहां इतना बड़ा आंदोलन किया था ?
नैयर साहब चाहते थे कि आंदोलन की उर्वर भूमि बिहार से एक बार फिर जन आंदोलन शुरू हो।
उनकी बातों से लगा कि वे बिहार आकर खुद उस आंदोलन को नेतृत्व देने को तैयार थे।
जन सरोकारों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता देख कर मुझे तब सुखद आश्चर्य हुआ था।
उनकी एक किताब है ‘एक जिन्दगी काफी नहीं।’
पर उनके कामों को देख कर लगता है कि उन्होंने जितने काम किए,उतने शायद कई जिन्दगियां मिल कर भी न कर सकें।
कुलदीप नैयर इंडियन एक्सप्रेस के पटना ब्यूरो आॅफिस आए थे।
वे ब्यूरो प्रमुख कृपाकरण से बातचीत कर रहे थे।
जनसत्ता संवाददाता के रूप में मैं तब तक एक्सप्रेस ग्रूप ज्वाइन कर चुका था।
वहां बातचीत में मैं भी शामिल था।
नैयर साहब का जेपी से विशेष लगाव रहा था।
कुलदीप नैयर को आपातकाल में गिरफ्तार भी किया गया था।
1979 में जेपी का निधन हो चुका था।1980 में कांग्रेस की बिहार की सत्ता में भी वापसी हो चुकी थी।
कुलदीप नैयर बिहार की स्थिति से खिन्न लग रहे थे।वे कह रहे थे कि क्या इसी दिन के लिए जेपी ने यहां इतना बड़ा आंदोलन किया था ?
नैयर साहब चाहते थे कि आंदोलन की उर्वर भूमि बिहार से एक बार फिर जन आंदोलन शुरू हो।
उनकी बातों से लगा कि वे बिहार आकर खुद उस आंदोलन को नेतृत्व देने को तैयार थे।
जन सरोकारों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता देख कर मुझे तब सुखद आश्चर्य हुआ था।
उनकी एक किताब है ‘एक जिन्दगी काफी नहीं।’
पर उनके कामों को देख कर लगता है कि उन्होंने जितने काम किए,उतने शायद कई जिन्दगियां मिल कर भी न कर सकें।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें