सुप्रीम कोर्ट ने कल ठीक ही कहा है कि ‘लेफ्ट ,राइट और सेंटर हर तरफ हो रहा है बलात्कार ! इसे रोका क्यों नहीं जा रहा है ?’
वैसे इस देश मंे सिर्फ बलात्कार ही हर जगह नहीं हो रहा है,
बल्कि हर तरह के अपराध हो रहे हैं।
शासन ‘कानून का राज’ कायम करने में आंशिक रूप से ही सफल हो पा रहा है।
नतीजतन अधिकतर अपराधियों के मन से कानून का खौफ गायब है।इनमें सफेदपोश अपराधी तरह -तरह के घोटालेबाज,दलाल व भ्रष्ट अफसर भी शामिल हैं।
अनेक मामलों में पुलिस, चैकीदार के बदले भागीदार है।
रक्षक ही भक्षक बन रहे हैं।शुक सागर में लिखा गया है कि कलियुग में राजा ही प्रजा को लूटेगा।
अधिकतर बड़े अफसरों ने भी प्रधान मंत्री मोदी की 2014 की इस चेतावनी को भी नजरअंदाज कर दिया कि ‘न खाऊंगा और न खाने दूंगा।’
2016 में इस देश में हर तरह के अपराधों में अदालती सजाओं का औसत प्रतिशत 46 दशमलव 8 रहा।
जबकि, अमेरिका व जापान में हुए कुल अपराधों में से 99 प्रतिशत अपराधों में आरोपितों को सजा मिल ही जाती है।
बहाना है कि भारत में पुलिस और कचहरियों की संख्या बढ़ाने के लिए सरकार के पास पैसे नहीं हैं।
भले भ्रष्टाचार में लूट लिए जाने के लिए अरबों रुपए उपलब्ध हैं।
अपराधों के वैज्ञानिक अनुसंधान
के लिए सरकार के पास समुचित साधन नहीं है।यहां तक कि फोरेंसिक साइंस लेबोटरीज की भी भारी कमी है।
अधिकतर गवाहों को खरीद लिया जाता है या धमका कर चुप करा दिया जाता है।
सरकार कुछ ठोस काम करे तो स्थिति बदल सकती है।
1.-पूर्व डी.जी.पी.प्रकाश सिंह के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निदेश का कार्यान्वयन किया जाए ताकि पुलिस निष्पक्ष हो सके।
2.- पुलिस बल और अदालतों की संख्या जरूरत के अनुसार बढ़ायी जाए।
3.-गवाहों की सुरक्षा के लिए अलग से ‘गवाह सुरक्षा फोर्स’ बने।
4.- मोहल्ला व गांव स्तर पर चैकीदारी व पुलिस व्यवस्था के साथ -साथ अतिरिक्त खुफिया तंत्र विकसित किया जाए ताकि अपराधों व अपराधियों के बारे में सूचनाएं मिलती रहे।
पुलिस थानों की संख्या बढ़ायी जाए।
अनेक अपराधों के मामलों में डर के कारण प्राथमिकियां दर्ज नहीं करायी जातीं।या फिर पुलिस रिपोर्ट नहीं लिखती।ऐसे मामलों की सूचनाएं खुफिया तंत्र दे सकता है।
5.-कुछ खास तरह के अपराधों के लिए त्वरित अदालतों की संख्या बढ़ायी जाए।
6.-थाना स्तर पर अनुसंधान को कानून -व्यवस्था से अलग किया जाए।थानों का भी सोशल आॅडिट कराया जाए।
7.-हत्या व बलात्कार जैसे अपराधों के आरोपियों के पक्ष में पैरवी करने वाले नेताओं के नाम सार्वजनिक किए जाएंं।
8.-जिन अफसरों के पास जायज आय से कम से कम पांच करोड रुपए़ अधिक अवैध धन पाया जाए,उस अफसर के ऊपर-नीचे तैनात अफसरों व कर्मियों की संपत्ति की भी जांच हो।
9.- इन सब कामों के लिए काफी धन की जरूरत होगी।
इसके लिए केंद्र व राज्य सरकारें ‘सुशासन टैक्स’ लगाएं।
पहले तो यह टैक्स जनता को भार लगेगा।पर उसका जब लाभ दिखायी पड़ने लगेगा तो लोग खुशी -खुशी टैक्स देंगे।
क्योंकि शांति -व्यवस्था ठीक रहने पर सबकी तरक्की होगी।
10.- भ्रष्ट पुलिसकर्मियों का सेना की तरह ‘कोर्ट मार्शल’ हो।
वैसे इस देश मंे सिर्फ बलात्कार ही हर जगह नहीं हो रहा है,
बल्कि हर तरह के अपराध हो रहे हैं।
शासन ‘कानून का राज’ कायम करने में आंशिक रूप से ही सफल हो पा रहा है।
नतीजतन अधिकतर अपराधियों के मन से कानून का खौफ गायब है।इनमें सफेदपोश अपराधी तरह -तरह के घोटालेबाज,दलाल व भ्रष्ट अफसर भी शामिल हैं।
अनेक मामलों में पुलिस, चैकीदार के बदले भागीदार है।
रक्षक ही भक्षक बन रहे हैं।शुक सागर में लिखा गया है कि कलियुग में राजा ही प्रजा को लूटेगा।
अधिकतर बड़े अफसरों ने भी प्रधान मंत्री मोदी की 2014 की इस चेतावनी को भी नजरअंदाज कर दिया कि ‘न खाऊंगा और न खाने दूंगा।’
2016 में इस देश में हर तरह के अपराधों में अदालती सजाओं का औसत प्रतिशत 46 दशमलव 8 रहा।
जबकि, अमेरिका व जापान में हुए कुल अपराधों में से 99 प्रतिशत अपराधों में आरोपितों को सजा मिल ही जाती है।
बहाना है कि भारत में पुलिस और कचहरियों की संख्या बढ़ाने के लिए सरकार के पास पैसे नहीं हैं।
भले भ्रष्टाचार में लूट लिए जाने के लिए अरबों रुपए उपलब्ध हैं।
अपराधों के वैज्ञानिक अनुसंधान
के लिए सरकार के पास समुचित साधन नहीं है।यहां तक कि फोरेंसिक साइंस लेबोटरीज की भी भारी कमी है।
अधिकतर गवाहों को खरीद लिया जाता है या धमका कर चुप करा दिया जाता है।
सरकार कुछ ठोस काम करे तो स्थिति बदल सकती है।
1.-पूर्व डी.जी.पी.प्रकाश सिंह के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निदेश का कार्यान्वयन किया जाए ताकि पुलिस निष्पक्ष हो सके।
2.- पुलिस बल और अदालतों की संख्या जरूरत के अनुसार बढ़ायी जाए।
3.-गवाहों की सुरक्षा के लिए अलग से ‘गवाह सुरक्षा फोर्स’ बने।
4.- मोहल्ला व गांव स्तर पर चैकीदारी व पुलिस व्यवस्था के साथ -साथ अतिरिक्त खुफिया तंत्र विकसित किया जाए ताकि अपराधों व अपराधियों के बारे में सूचनाएं मिलती रहे।
पुलिस थानों की संख्या बढ़ायी जाए।
अनेक अपराधों के मामलों में डर के कारण प्राथमिकियां दर्ज नहीं करायी जातीं।या फिर पुलिस रिपोर्ट नहीं लिखती।ऐसे मामलों की सूचनाएं खुफिया तंत्र दे सकता है।
5.-कुछ खास तरह के अपराधों के लिए त्वरित अदालतों की संख्या बढ़ायी जाए।
6.-थाना स्तर पर अनुसंधान को कानून -व्यवस्था से अलग किया जाए।थानों का भी सोशल आॅडिट कराया जाए।
7.-हत्या व बलात्कार जैसे अपराधों के आरोपियों के पक्ष में पैरवी करने वाले नेताओं के नाम सार्वजनिक किए जाएंं।
8.-जिन अफसरों के पास जायज आय से कम से कम पांच करोड रुपए़ अधिक अवैध धन पाया जाए,उस अफसर के ऊपर-नीचे तैनात अफसरों व कर्मियों की संपत्ति की भी जांच हो।
9.- इन सब कामों के लिए काफी धन की जरूरत होगी।
इसके लिए केंद्र व राज्य सरकारें ‘सुशासन टैक्स’ लगाएं।
पहले तो यह टैक्स जनता को भार लगेगा।पर उसका जब लाभ दिखायी पड़ने लगेगा तो लोग खुशी -खुशी टैक्स देंगे।
क्योंकि शांति -व्यवस्था ठीक रहने पर सबकी तरक्की होगी।
10.- भ्रष्ट पुलिसकर्मियों का सेना की तरह ‘कोर्ट मार्शल’ हो।
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