कमला पति त्रिपाठी ने एक बार कहा था कि ’मेरा तजुर्बा है कि राजीव गांधी साफ बात कहने वालों से ,इंदिरा गांधी के मुकाबले में,
बहुत कम नाराज होते थे।’
कमलापति जी ने एक दिन प्रधान मंत्री राजीव गांधी से कहा कि ‘मैं तो केवल कड़ी बातें कहने आया हूं।’
इस पर मुस्कराते हुए राजीव जी ने कहा कि ‘जरूर कहिए, शुरू कीजिए।मैं कड़वी बातों से बिगड़ता नहीं।’
कमलापति जी ने बाद में बताया कि ‘मैं राजीव जी की इस बात से प्रभावित हुआ था।’
पर बाद में पता नहीं ,क्या बात हुई कि कमलापति त्रिपाठी ने राजीव गांधी को मई, 1986 में एक लंबा और कड़ा पत्र लिख दिया।
दरअसल कमलापति जी इस बात से दुःखी रहते थे कि इंदिरा भक्तों की उपेक्षा हो रही है।
हालांकि खुद इंदिरा गांधी ने कमलापति त्रिपाठी को 1980 के नवंबर में रेल मंत्री पद छोड़ने को मजबूर कर दिया था।
जब 1980 में त्रिपाठी जी रेल मंत्री थे तो प्रधान मंत्री ने प्रेस को कह दिया कि मैं रेल मंत्री के काम से संतुष्ट नहीं हूं।उसके बाद रेल मंत्री ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।
बाद में जब किसी ने इंदिरा जी के यहां त्रिपाठी जी के लिए पैरवी की तो इंदिरा जी ने कहा कि ‘मंत्री बनाऊंगी भी तो उन्हें रेल मंत्रालय नहीं मिलेगा।क्योंकि तब लोग कहेंगे कि मैं दबाव में आ गयी।’हालांकि वे बाद में मंत्री नहीं बनाए गए।
याद रहे कि वे 1975 से 1977 तक रेल मंत्री रह चुके थे।
1970 में उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री बने थे।
खैर ,मई 1986 में जब कमलापति जी ने राजीव जी को ऐतिहासिक पत्र लिखा तो उसकी व्यापक प्रतिक्रिया हुई।
हालांकि राजीव जी के समर्थन नेता केरल के प्रमुख कांग्रेसी नेता करूणाकरण ने उस पत्र के बारे में कहा था कि
‘इंदिरा जी के नाम पर सत्ता हथियाने की यह कोशिश है।’
त्रिपाठी की चिट्ठी के तीन साल के बाद ही कांग्रेस की चुनाव में ऐसी हार हुई कि फिर वह कभी उबर नहीं सकी।उसके बाद आज तक कांग्रेस को लोक सभा में अपना बहुमत नहीं मिल सका।
क्या कांग्रेस की अधोगति के वही कारण थे जो काशी के धर्मनिष्ठ स्वतंत्रता सेनानी कमलापति त्रिपाठी ने अपने पत्र में गिनाए थे ?इस पर एक मत नहीं है।
त्रिपाठी ने लिखा था कि ‘मैं देख रहा हूं कि जो लोग इंंदिरा गांधी के साथ थे,उनके लिए लड़े -मरे,उनकी लगातार उपेक्षा हो रही है,।दूसरी ओर जिन लोगों ने उनके साथ धोखा किया ,उन्हें परेशानी में डाला,आज वे लोग सत्ता सुख भोग रहे हैं।
आप पावर ब्रोकर की बात कर रहे हैं।कौन लोग पावर ब्रोकर हैं ?बंबई अधिवेशन के बाद आपने प्रणव मुखर्जी और गुंडू राव को पावर ब्रोकर समझ कर वर्किंग कमेटी से निकाल दिया।आपको मालूम हैं कि ये दानों इंदिरा गांधी समर्थक थे।पावर ब्रोकर तो वे हैं जो मंत्री बन कर बैठे हैं।इंदिरा जी के खिलाफ गवाही देकर लोग मुख्य मंत्री बन बैठे हैं।इधर कांग्रेस से पुराने लोग कटते जा रहे हैं।अंग्रेजों का साथ देने वाले राजाओं का असर बढ़ता जा रहा है।’
उन्होंने यह भी लिखा कि इस बार कांग्रेस में जबरदस्त ढंग से बोगस सदस्यता हुई है।
इसके अलावा भी त्रिपाठी जी ने कई कड़वी बातें लिखी थीं।
पर राजनीतिक विश्लेषक उदयन शर्मा ने इस पर लिखा कि ‘इंदिरावादियों ने किसी सैद्धांतिक मुददे को लेकर नहीं बल्कि निहित स्वार्थों की खातिर विद्रोह की मुद्रा अख्तियार की है।इसलिए इनकी लड़ाई बहुत दूर तक नहीं जा सकेगी।’
खैर जो हो,पंडित कमलापति त्रिपाठी अपने ढंग के स्वाभिमानी नेता थे।
1905 में काशी के कुलीन ब्राह्मण परिवार में जन्मे कमलापति जी का 1990 में निधन हुआ।
कम उम्र में ही आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे।
लंबी जेल यातना सही।वे 1932 से 1946 तक दैनिक ‘आज’ के संपादक रहे।
1946 से 1952 तक दैनिक ‘संसार’ के संपादक रहे।
बाद में विधायक,सांसद,मुख्य मंत्री और केंद्रीय मंत्री भी रहे।
कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष भी।
एक स्वाभिमानी व योग्य संपादक , एक स्वाभिमानी राजनेता भी बने रहे।
इलाहाबाद के पत्रकार पी.डी.टंडन के अनुसार,त्रिपाठी जी ने मुझसे 1972 में एक बार कहा था कि उनकी एक बड़ी कमजोरी है।जब उनके स्वाभिमान पर धक्का लगता है तो वह बरदाश्त नहीं कर पाते।
एक बार इंदिरा जी के मुंहलगे प्यादे ने कांग्रेस संसदीय बोर्ड की मीटिंग के बाद उनकी उत्तर प्रदेश सरकार के बारे में कुछ अशोभनीय बातें कह दीं।
तब उन्होंने मुझे बुला कर कहा कि ‘टंडन ,तुम पहली गाड़ी से दिल्ली जाओ।और इंदिरा जी से कह दो कि अब अगर कभी किसी आदमी ने, जो उनके नजदीकी हों,ऐसी बातें कहीं तो मैं तुरंत इस्तीफा दे दूंगा।’
वरिष्ठ पत्रकार के.विक्रम राव के अनुसार ,एक बार कमलापति त्रिपाठी के खिलाफ समाजवादी नेता राज नारायण चुनाव लड़ रहे थे।
कहीं मिले तो राजनारायण जी ने त्रिपाठी जी के पाॅकेट से सौ रुपए निकाल लिए।त्रिपाठी जी ने पूछा कि ऐसा क्यों किया ?राजनारायण जी ने कहा कि मेरी गाड़ी में पेट्रोल नहींे है।इसलिए पैसे निकाल लिये।
त्रिपाठी जी हंस कर रह गए।
@फस्र्टपोस्टहिन्दी में 30 जून, 2018 को प्रकाशित मेरे साप्ताहिक काॅलम ‘दास्तान ए सियासत’ से@
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