शुक्रवार, 31 अगस्त 2018

जिला न्यायाधीशों के निदेशन वाली निगरानी समिति से ही अतिक्रमण मुक्ति



गया से लेकर दरभंगा तक प्रशासन ने शहर से अतिक्रमण मुक्ति अभियान चला रखा है।
यह पटना हाई कोर्ट की पहल का सुपरिणाम है जिसके आदेश से  पटना की सड़कों पर अब परिवत्र्तन नजर आ रहा है।
पर इस अतिक्रमण विरोधी अभियान को लेकर मुख्यतः दो सवाल लोगों के दिल- ओ -दिमाग में उठ रहे हैं।
एक  यह कि क्या पहले की तरह अतिक्रमणकारी दुबारा अतिक्रमण नहीं कर लेंगे ?
दूसरा सवाल यह है कि क्या पटना की तरह ही राज्य के अन्य शहरों के लोगों को  भी अतिक्रमण मुक्त माहौल में जीने का अवसर मिल सकेगा ?
 इस समस्या को लेकर एक पिछला उदाहरण मौजूं होगा।पटना हाई कोर्ट ने 1996 में बिहार बोर्ड की परीक्षा से कदाचार समाप्त करने का  ठोस उपाय किया था।
हाई कोर्ट ने जिलों में कदाचारमुक्त परीक्षा सुनिश्चित कराने के लिए जिला न्यायाधीशों को जिम्मेदारी सौंपी थी।
  उसका चमत्कारिक असर हुआ था।
उस साल की परीक्षा से कदाचार गायब था।
क्योंकि डी.एम.और एस.पी. जिला जज की सतर्कता के कारण कत्र्तव्यनिष्ठ बन जाने को मजबूर  थे।उन्होंने कदाचार नहीं होने दिया।
 नतीजतन उस साल मैट्रिक  बोर्ड परीक्षा में सिर्फ 12 दशमलव 61 प्रतिशत परीक्षार्थी ही पास हो सके थे।
इंटर परीक्षा का रिजल्ट भी 20 प्रतिशत से कम ही हुआ था।
यह और बात है कि स्वार्थी नेताओं और शिक्षा माफियाओं ने मिलकर अगले ही साल से दुबारा कदाचार शुरू करवा दिए।
नतीजतन 2001 में मैट्रिक में 76 दशमलव 59 प्रतिशत परीक्षार्थी पास हो गए।
उस अनुभव से लाभ उठाकर अतिक्रमण से लोगों को मुक्ति दिलाई जा सकती है।
यदि जिला जज की सदारत या निदेशन में हर जिले में निगरानी समिति बनाने का हाईकोर्ट आदेश दे और उसे स्थायी रूप दिया जा सके तो  अतिक्रमण मुक्ति का सुख स्थायी हो सकता है।
इसके लिए हाई कोर्ट से ऐसा करने की गुहार की जा सकती है। 
--पटना के विस्तार में अब होगी सुविधा--
जिस सड़क के निर्माण के लिए कम से कम 70 प्रतिशत जमीन का भी अधिग्रहण हो चुका है ,उस सड़क के निर्माण का काम अब शुरू हो सकेगा।
मुख्य मंत्री नीतीश कुमार की पहल पर संबंधित केंद्रीय मंत्री
नितिन गडकरी ने इस पर अपनी सहमति दे दी है।
इससे पहले 90 प्रतिशत अधिग्रहण की बाध्यता थी।
अब इस कारण बिहार में कई रुकी हुई एन.एच. पर काम शुरू हो सकेगा।
उन सड़कों में पटना-कोइलवर एन.एच.महत्वपूर्ण है।
यह पटना जिले में पड़ता है।इसके लिए  जमीन अधिग्रहण की समस्या थी।
पर,अब इस पर काम शुरू हो सकेगा।
इस राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण हो जाने के बाद इसके किनारे उप नगर व उद्योग विकसित हो सकेंगे।
इससे पटना को महा नगर बनाने के काम में तेजी आएगी।
--अतिक्रमण हटाओ अभियान की तारीफ--
पटना में अतिक्रमण हटाओ अभियान चल रहा है।
लोगबाग इससे खुश हैं। पर अभी एक कमी देखी जा रही है।
पटना के कमिश्नर ने गत 18 अगस्त को ही एक खास आदेश दिया था।उनका आदेश था कि जहां से अतिक्रमण हटा दिए गए हैं,वहां दुबारा अतिक्रमण नहीं हो,इसके लिए ठोस उपाय किए जाएं।
यानी एक टीम गठित हो जो शाम पांच बजे से रात दस बजे तक पूरे शहर में घूम कर इस बात की निगरानी करे कि जहां से अतिक्रमण हटा दिए गए हैं,वहां दुबारा अतिक्रमण न हो।
 पर ऐसा कोई ‘धावा दल’ अभी नजर नहीं आ रहा है।नतीजतन इन पंक्तियों के लेखक ने देखा कि कई जगह दुबारा अतिक्रमण हो रहे हैं।हालंाकि वहां इक्के -दुक्के दुकानदार ही दुबारा अतिक्रमण  
कर रहे हैं।पर इक्के- दुक्के अतिक्रमण भी क्यों हो ?
 --ऐसे दी जाती है श्रद्धांजलि--
बुधवार को बिहार वाणिज्य व उद्योग मंडल के परिसर में  पूर्व अध्यक्ष युगेश्वर पांडेय की याद में श्रद्धांजलि सभा हुई।
वाणिज्य व उद्योग जगत के अनेक गणमान्य लोगों ने दिवंगत पांडेय जी को भावभीनी श्रद्धांजलि दी।
उनके गुणों और उपलब्धियों को याद किया।
यह भी कि किस तरह वे व्यक्तिगत व्यवहार में शालीन व स्नेहिल थे।
वे  वाणिज्य-उद्योग के विकास के लिए चिंतित रहते थे।किसी पर कोई संकट आ जाए तो आधी रात में भी वे मदद के लिए पहुंच जाते थे।
और उन्होंने  क्या- क्या किए।इस तरह की बातों से नई पीढ़ी को भी कुछ अच्छा करने की प्रेरणा मिल सकती है।
अब जरा कल्पना  कीजिए कि कहीं किसी दिवंगत राजनीतिक नेता को उनके जन्म दिन या पुण्य तिथि पर याद किया जा रहा हो।उस सभा में आज के अधिकतर मौजूदा नेता क्या -क्या बोलेंगे ?
 उस अवसर का इस्तेमाल वे अपना जातीय वोट बैंक बढ़ाने के लिए करेंगे।
वे जरूर बताएंगे कि आज उनकी जाति के लोगों को मान -सम्मान नहीं मिल रहा है।ऐसा कह कर वे उस जाति के लोगों की सहानुभूति हासिल करने की कोशिश करंेगे।
इतना ही नहीं ,यदि जयंती डा.राजेंद्र प्रसाद की मनाई जा रही हो,तो खुद खैनी यानी तम्बाकू खाने वाला कोई नेता यह कह देगा कि ‘राजेन्द्र बाबू भी खैनी खाते थे।’
शायद ही यह कहेगा कि परीक्षार्थी राजेन्द्र बाबू के बारे में उनके परीक्षक ने लिखा था कि ‘परीक्षार्थी परीक्षक से अधिक जानता है।’किस तरह उन्होंने आजादी की लड़ाई में शामिल होने के लिए अपना अच्छा- खासा कैरियर छोड़ दिया।
 खैनी खाने का मामला एक बार उठा भी था।बाद में राजेन्द्र बाबू की पोती ने कहा कि राजेन्द्र बाबू ने जीवन में कभी खैनी  को छुआ भी नहीं। 
  --भूली बिसरी याद-- 
सत्तर के दशक की बात है।केंद्र और बिहार में जनता पार्टी की सरकारें थीं।
पटना में भोजपुरी सम्मेलन हो रहा था।
केंद्रीय मंत्री जग जीवन राम और बिहार के मुख्य मंत्री कर्पूरी ठाकुर मंच पर थे।
जग जीवन बाबू भोजपुरी में भी बहुत अच्छा भाषण करते थे।
उनके पास भोजपुरी शब्दों का अपार खजाना था।जगजीवन बाबू भोज पुरी भाषी जिले से आते थे। 
उस अवसर पर जग जीवन बाबू ने भोजपुरी इलाके की बोली में मर्दानगी और मिजाज में बहादुरी की विस्तार से चर्चा की।
 साथ ही, उन्होंने बिहार की कुछ अन्य बोलियों से भोजपुरी की तुलना भी  कर दी।
खुद कर्पूरी ठाकुर मैथिली भाषी क्षेत्र से आते थे।
मैथिली  मीठी भाषा है।
 कर्पूरी ठाकुर को ऐसी तुलना पसंद नहीं आई।
जब उनकी बारी आई तो उन्होंने कहा कि ‘यदि भोजपुरी लोगों में इतना ही दमखम है तो भोज पुरी भाषी ‘बाबू जी’ दिल्ली की सरकार में अपना थोड़ा दमखम दिखा कर इस गरीब इलाके को इसका वाजिब हक क्यों नहीं दिलवाते ?
जग जीवन राम को ‘बाबू जी’ कहा जाता था।
कर्पूरी ठाकुर मानते थे कि  बिहार के प्रति केंद्र के सौतेला व्यवहार के कारण ही बिहार पिछड़ा प्रदेश रहा गया है।
रेल भाड़ा समानीकरण नीति इसका सबसे बड़ा उदाहरण था।       --और अंत मंे--
2019 के लोक सभा चुनाव से पहले राजनीति के कौन मौसमी पक्षी कब कहां जाएंगे,यह कहना अभी कठिन है।
 क्योंकि  चुनाव की हवा अभी पूरी तरह बनी नहीं है।
दो- तीन महीनों में  बनेगी।
मौसमी पक्षी हवा का रुख तो तभी देख-पहचान सकेंगे जब हवा बने।
हालांकि  लोगों में उत्सुकता अभी से बहुत है।
उस उत्सुकता को शांत करने के लिए मीडिया उन पक्षियों के बारे में कुछ न कुछ सूचना देता  रहता  है।
पर अभी कई बार इस मामले में पूर्वानुमान गलत निकल जा रहा है।
इसलिए बेहतर है कि हवा बनने का इंतजार कीजिए।
पहले देखना होगा कि अगले महीनों में केंद्र सरकार के
कैसे - कैसे वोट खींचू निर्णय होते हैं।साथ ही, यह भी देखना होगा कि प्रतिपक्षी महा गठबंधन का अगला स्वरूप कैसा बनता है। कितना मजबूत या कमजोर बनता है।

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