शनिवार, 11 अगस्त 2018

खबर है कि ओडिशा विधान सभा की अगली बैठक 
में राज्य में विधान परिषद की स्थापना के लिए प्रस्ताव 
पास कराया जाएगा।  
 देश की राजनीति के बदलते स्वरूप के बीच नेताओं व दलों को यह जरूरी लगता है कि उच्च सदन का प्रावधान हर राज्य में हो।
अभी विधान परिषद सात ही राज्यों में  है।
अन्य कई राज्यों से केंद्र को मिले ऐसे प्रस्ताव कुछ कारणवश अभी लंबित हैं।
 1967 में जब आदर्शवादी  गैर कांग्रेसी दल राज्यों में सता में आने लगे तो उन्होंने खर्च घटाने के लिए कुछ राज्यों से विधान परिषदें  समाप्त करवा दीं।
 बिहार में भी सत्तर के दशक में सी.पी.आई.के राज कुमार पूर्वे के प्रस्ताव पर बिहार विधान सभा ने विधान परिषद को समाप्त करने का प्रस्ताव पास कर दिया था।
पर वह प्रस्ताव  तार्किक परिणति तक नहीं पहुंच सका।
अगले विधान सभा चुनाव में जब पूर्वे जी अपनी सीट  हार गए तो वे विधान परिषद के सदस्य बन गए।
अब तो दलों के बीच का अंतर समाप्त होता जा रहा है।
  दरअसल अन्य राज्यों में भी विधान परिषद की जरूरत इसलिए महसूस की जा रही है क्योंकि वंशवाद की आंधी में 
कई राजनीतिक नेता टिकट से वंचित हो जा रहे।सीटें पुश्तैनी बनती जा रही हैं।
कुछ अन्य कारण भी हैं।
ओडिशा में तो ऐसे विधायकों को अगली बार विधान सभा के टिकट से वंचित करना है जिनसे जनता खुश नहीं है।
वे विधान परिषद में जाएंगे ताकि उन्हें कोई अन्य दल लपक न ले।
 वैसे इस मुद्दे पर एक बुद्धिजीवी ने कहा कि अब नेताओं को चाहिए कि वे निचले सदनों को बड़े नेताओं के बाल -बच्चों के लिए अघोषित तौर पर लगभग रिजर्व ही कर दें।उच्च सदनों को  राजपाट चलाने लायक लोगों से भरें।
  यहां में यह नहीं कहा जा  रहा है  कि नेताओं के सारे वंशज अयोग्य ही होते हैं।    

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