गुरुवार, 16 अगस्त 2018

इस महीने पटना एम्स में जब इमरजेंसी सेवा और ट्रोमा सेंटर की शुरूआत हो गयी तो मुझे पटना हाई कोर्ट के दिवंगत वकील एम.पी.गुप्त याद आए।
 उनकी ही लोकहित याचिका के कारण ही यह एम्स बन सका अन्यथा मन मोहन सरकार ने तो इसे ठंडे बस्ते में ही डाल दिया था।
 लगता है कि मन मोहन सरकार को इस बात से चिढ़ थी अटल सरकार ने प्रस्तावित पटना एम्स के साथ  जय प्रकाश नारायण का नाम जोड़ने का निर्णय क्यों किया ?  
अदालती दबाव में भले बाद में मन मोहन सरकार ने एम्स का निर्माण शुरू कराया,पर जंेपी का नाम उससे निकाल ही दिया।
हालांकि शिलान्यास के बाद स्थल पर उनके नाम का बोर्ड लग चुका था।
खैर जो हो ,अब पटना एम्स बेहतर ढंग से  काम करने लगा।हालांकि अभी इसका विस्तार जारी है।फिलहाल बेड की संख्या 600 है। आपरेशन थियेटर की संख्या 13 हो गयी है।ट्रामा सेंटर में 60 और इमरजेंसी में 24 बेड हैं।
37 विभाग शुरू हो चुके हैं। 117 चिकित्सक कार्यरत हैं।
यहां 2016 से ही ओपीडी कार्यरत है।लाखों मरीज हर साल चिकित्सा का लाभ उठा रहे हैं।पर अब इमरजेंसी और ट्रामा सेंटर की कमी भी पूरी हो गयी।
 दिल्ली एम्स के  करीब आधे मरीज बिहार से ही होते हैं।उम्मीद है कि पटना एम्स के कारण दिल्ली एम्स पर अब बोझ थोड़ा घटेगा।
        
    एम.पी.गुप्त की याचिका के कारण न सिर्फ पटना के एम्स कव निर्माण शुरू हो गया बल्कि गुप्त  एम्स भवन के 
निर्माण की गुणवत्ता को लेकर अदालत के बाहर और भीतर आवाज 
उठाते रहते थे।
  केंद्र की राजग सरकार ने पटना सहित देश के छह स्थानों में एम्स की तर्ज पर अस्पताल स्थापित करने की योजना बनाई थी।जनवरी, 2004 में तत्कालीन उप राष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत ने पटना में उसका शिलान्यास भी कर दिया।पर उसी साल सरकार बदल गई।केंद्र की नई सरकार ने पिछली सरकार के इस फैसले को ठंडे बस्ते में डाल दिया।इसको लेकर एम.पी.गुप्त ने पटना हाई कोर्ट में लोकहित याचिका दायर कर दी।
अदालत ने इसे गंभीरता से लिया,संबंधित पक्षों को समय -समय पर कड़े निदेश दिये ।उन्हीं निदेशों के कारण आज पटना में एम्स का निर्माण हो रहा है ।कड़े निदेश इसलिए देने पड़े क्योंकि मन मोहन सरकार की रूचि कम थी।

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