5 अगस्त, 2018 के प्रभात खबर-पटना-में एक अच्छी खबर
छपी है--‘सावधान ! संभालिए अपने लाड़लों को,छोटी उम्र में बड़े शौक हो रहे है आत्मघाती ’
प्रभात खबर ने यह लिख कर बड़ा काम किया है।यह समस्या व्यापक बनती जा रही है।
उस अनुपात में बातें बाहर नहीं आतीं।
दरअसल इसमें अधिक कसूर हम अभिभावकों का है।हम अपने काम और परिवार के बीच संतुलन बनाकर नहीं चलते।
यश,तरक्की और पैसे बनाने की आपाधापी में हम अपने बाल -बच्चों की उपेक्षा करते हैं।
राजनीतिक कर्मियों व नेताओं के पास तो और भी कम समय होता है।इसलिए आम तौर पर देखा जा रहा है कि ईमानदार नेता के बाल -बच्चे ईमानदार बनें या नहीं,पर आम तौर से भ्रष्ट नेताओं की संतान भ्रष्ट और अपराधी नेताओं के बेटे अपराधी जरूर बन रहे हैं।अपवादों की बात और है।
डा.राम मनोहर लोहिया कहा करते थे कि राजनीति में रहने का निर्णय करने वालों को अपना परिवार खड़ा नहीं करना चाहिए।
हाई प्रोफाइल लोग अपने बाल -बच्चों को भरपूर पैसे देकर
ही अपने कत्र्तव्यों की इतिश्री कर लेते हैं।
आपाधापी का हाल देखिए।इसे आप कहावत मानिए या सच्चाई ,पर सच्चाई के करीब तो जरूर ही लगेगा।
एक डाक्टर ने अपनी पत्नी से कहा कि मैं अपनी बेटी के लिए एक डाक्टर वर ढूंढ़ रहा हूं।
पत्नी डाक्टर से शादी के सख्त खिलाफ थी।खुद झेल चुकी थी।
पत्नी ने कहा कि मैं डाक्टर को दामाद बनाने के लिए तैयार हूं।पर एक शत्र्त है।आप सिर्फ इतना बता दीजिए कि आपका सबसे छोटा बेटा किस क्लास में पढ़ता है।डाक्टर साहब नहीं बता सके।
छपी है--‘सावधान ! संभालिए अपने लाड़लों को,छोटी उम्र में बड़े शौक हो रहे है आत्मघाती ’
प्रभात खबर ने यह लिख कर बड़ा काम किया है।यह समस्या व्यापक बनती जा रही है।
उस अनुपात में बातें बाहर नहीं आतीं।
दरअसल इसमें अधिक कसूर हम अभिभावकों का है।हम अपने काम और परिवार के बीच संतुलन बनाकर नहीं चलते।
यश,तरक्की और पैसे बनाने की आपाधापी में हम अपने बाल -बच्चों की उपेक्षा करते हैं।
राजनीतिक कर्मियों व नेताओं के पास तो और भी कम समय होता है।इसलिए आम तौर पर देखा जा रहा है कि ईमानदार नेता के बाल -बच्चे ईमानदार बनें या नहीं,पर आम तौर से भ्रष्ट नेताओं की संतान भ्रष्ट और अपराधी नेताओं के बेटे अपराधी जरूर बन रहे हैं।अपवादों की बात और है।
डा.राम मनोहर लोहिया कहा करते थे कि राजनीति में रहने का निर्णय करने वालों को अपना परिवार खड़ा नहीं करना चाहिए।
हाई प्रोफाइल लोग अपने बाल -बच्चों को भरपूर पैसे देकर
ही अपने कत्र्तव्यों की इतिश्री कर लेते हैं।
आपाधापी का हाल देखिए।इसे आप कहावत मानिए या सच्चाई ,पर सच्चाई के करीब तो जरूर ही लगेगा।
एक डाक्टर ने अपनी पत्नी से कहा कि मैं अपनी बेटी के लिए एक डाक्टर वर ढूंढ़ रहा हूं।
पत्नी डाक्टर से शादी के सख्त खिलाफ थी।खुद झेल चुकी थी।
पत्नी ने कहा कि मैं डाक्टर को दामाद बनाने के लिए तैयार हूं।पर एक शत्र्त है।आप सिर्फ इतना बता दीजिए कि आपका सबसे छोटा बेटा किस क्लास में पढ़ता है।डाक्टर साहब नहीं बता सके।
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