अखिलेश जी, मैं आपका आभारी हूं कि आपने मुझे ‘सीधा’ कहा।हालांकि ‘सरल’ कहते तो और भी खुशी होती।
सीधा का ढीला -ढाला अर्थ थोड़ा- थोड़ा मूर्ख और कुछ -कुछ अनजान भी होता है।
खैर, मैंने भारत सहित दुनिया भर के कई बड़े नेताओं के दोहरे चरित्र के बारे में जाना-पढ़ा है।
महात्मा गांधी पर दया शंकर शुक्ल सागर की आप किताब पढ़ेंगे तो अटल जी इस मामले में आपको बहुत अच्छे लगेंगे।
एक चीनी कहावत है-‘हर महा पुरूष एक सामाजिक संकट है।’
खुद माओ भी ऐसे ही थे जिन पर मैंने बी.बी.सी.की डाक्युमेंटरी देखी थी।पर माओ सिर्फ वही नहीं थे।वे चीन के मुक्तिदाता भी थे।
इस देश के अनेक बड़े नेताओं के विवादास्पद ‘निजी जीवन’ के बारे में मैं जानता हूं।आपने जिस बेटी -दामाद की चर्चा की है,उस पर इंडियन एक्सप्रेस पूरा एक पेज छाप चुका है।
दरअसल नेताओं को मैं इस कसौटी पर कसता हूं कि किस नेता ने इस देश का अपेक्षाकृत कम नुकसान किया।
अधिकतर जनता भी इसी बात को ध्यान में रख कर वोट देती है।इसीलिए तो आज भाजपा पावर में है।
कुछ लोग विचार धारा को मुख्य आधार मानते हैं चाहे उस विचारधारा का नेता कितना बड़ा लुटेरा और देशद्रोही क्यों न हो ।मैं इससे सहमत नहीं हूं।
किसी भी पार्टी का राजनीतिक कार्यकत्र्ता बन कर दसियों साल तक कष्ट झेलना कोई आसान काम नहीं है।
खुद मैं दस साल तक राजनीतिक कार्यकत्र्ता था।
पर, उसमें रह नहीं सका।मैं भाग चला।
सामान्यतः कोई पिता नहीं चाहता कि उसका बेटा राजनीतिक कार्यकत्र्ता बने।
ऐसे में राजनीति मंे तरह -तरह के लोग पहुंच जाते हैं।लोकतंत्र के जरिए ही इस देश को चलाना है तो उन्हीं में से किसी को प्रधान मंत्री और मुख्य मंत्री बनना है।उससे पहले चुनाव में भी कई अच्छे -बुरे तत्व काम करते हैं।
हालांकि बहुत सारी चीजों को देखने और अनुभव करने के बाद अधिकतर लोगों की यह राय बनती है कि राजनीति में जो अपेक्षाकृत बेहतर हैं,उन्हें स्वीकार कर लिया जाए ताकि देश के खजानों और सीमाओं की रक्षा हो सके।
हमारी भारतीय संस्कृति के अनुसार किसी के निधन के कुछ महीनों तक उसके बारे में अच्छी -अच्छी बातें ही कही जाती हैं।
बाद में तो चीर फाड़ होती रहती है।
आजादी की लड़ाई के अनेक शीर्ष
नेताओं के सेक्स संबंधों और अन्य तरह के भ्रष्टाचारों के बारे में अनेक किताबें छप चुकी हैं।पर उनका यह श्रेय तो है कि उन्होंने हमें आजादी दिलाई।
ऐसी बुराइयां सिर्फ किसी एक जाति व विचारधारा वाले नेताओं तक ही सीमित नहीं है।
अपवादों की बात अलग है।
सीधा का ढीला -ढाला अर्थ थोड़ा- थोड़ा मूर्ख और कुछ -कुछ अनजान भी होता है।
खैर, मैंने भारत सहित दुनिया भर के कई बड़े नेताओं के दोहरे चरित्र के बारे में जाना-पढ़ा है।
महात्मा गांधी पर दया शंकर शुक्ल सागर की आप किताब पढ़ेंगे तो अटल जी इस मामले में आपको बहुत अच्छे लगेंगे।
एक चीनी कहावत है-‘हर महा पुरूष एक सामाजिक संकट है।’
खुद माओ भी ऐसे ही थे जिन पर मैंने बी.बी.सी.की डाक्युमेंटरी देखी थी।पर माओ सिर्फ वही नहीं थे।वे चीन के मुक्तिदाता भी थे।
इस देश के अनेक बड़े नेताओं के विवादास्पद ‘निजी जीवन’ के बारे में मैं जानता हूं।आपने जिस बेटी -दामाद की चर्चा की है,उस पर इंडियन एक्सप्रेस पूरा एक पेज छाप चुका है।
दरअसल नेताओं को मैं इस कसौटी पर कसता हूं कि किस नेता ने इस देश का अपेक्षाकृत कम नुकसान किया।
अधिकतर जनता भी इसी बात को ध्यान में रख कर वोट देती है।इसीलिए तो आज भाजपा पावर में है।
कुछ लोग विचार धारा को मुख्य आधार मानते हैं चाहे उस विचारधारा का नेता कितना बड़ा लुटेरा और देशद्रोही क्यों न हो ।मैं इससे सहमत नहीं हूं।
किसी भी पार्टी का राजनीतिक कार्यकत्र्ता बन कर दसियों साल तक कष्ट झेलना कोई आसान काम नहीं है।
खुद मैं दस साल तक राजनीतिक कार्यकत्र्ता था।
पर, उसमें रह नहीं सका।मैं भाग चला।
सामान्यतः कोई पिता नहीं चाहता कि उसका बेटा राजनीतिक कार्यकत्र्ता बने।
ऐसे में राजनीति मंे तरह -तरह के लोग पहुंच जाते हैं।लोकतंत्र के जरिए ही इस देश को चलाना है तो उन्हीं में से किसी को प्रधान मंत्री और मुख्य मंत्री बनना है।उससे पहले चुनाव में भी कई अच्छे -बुरे तत्व काम करते हैं।
हालांकि बहुत सारी चीजों को देखने और अनुभव करने के बाद अधिकतर लोगों की यह राय बनती है कि राजनीति में जो अपेक्षाकृत बेहतर हैं,उन्हें स्वीकार कर लिया जाए ताकि देश के खजानों और सीमाओं की रक्षा हो सके।
हमारी भारतीय संस्कृति के अनुसार किसी के निधन के कुछ महीनों तक उसके बारे में अच्छी -अच्छी बातें ही कही जाती हैं।
बाद में तो चीर फाड़ होती रहती है।
आजादी की लड़ाई के अनेक शीर्ष
नेताओं के सेक्स संबंधों और अन्य तरह के भ्रष्टाचारों के बारे में अनेक किताबें छप चुकी हैं।पर उनका यह श्रेय तो है कि उन्होंने हमें आजादी दिलाई।
ऐसी बुराइयां सिर्फ किसी एक जाति व विचारधारा वाले नेताओं तक ही सीमित नहीं है।
अपवादों की बात अलग है।
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