मंगलवार, 6 नवंबर 2018


रक्षा मंत्री मुलायम सिंह ने क्यों गायब करा दी थी बोफर्स सौदे की फाइल ?
         ----सुरेंद्र किशोर
संयुक्त मोर्चा सरकार के मंत्री मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि ‘मैं जब रक्षा मंत्री था तो बोफर्स मामले की फाइल गायब करा दी थी।’
  इसका कारण बताते हुए उन्होंने  कहा कि 
‘राजनीतिक लोगों पर बदले की भावना से कार्रवाई नहीं होनी चाहिए।सियासी लोग जेल जाएंगे तो राजनीति कैसे होगी ?’
  18 अगस्त, 2016 को श्री यादव लखनऊ में डा.राम मनोहर लोहिया नेशनल लाॅ विश्व विद्यालय के स्थापना समारोह में बोल रहे थे।
  अब सवाल है कि यदि वह फाइल गायब नहीं होती तो बोफर्स मामले में कुछ प्रभावशाली लोग जेल जाते ?कौन -कौन जाते ?
एक अन्य प्रसंग में मुलायम सिंह यादव ने यह भी कहा था कि अमर सिंह ने मुझे जेल जाने से बचा लिया था।
क्या अमर सिंह कोई अदालत हैं ?
क्या किसी रक्षा मंत्री को किसी संवदेनशील सरकारी फाइल को गायब करा देने की छूट मिलनी चाहिए ?
 अजय अग्रवाल की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट जब बोफर्स मामले की सुनवाई करेगा तो इन बिन्दुओं पर क्या विचार होगा ?
इस देश के प्रभावशाली नेता लोग एक दूसरे को जेल जाने से बचाते रहेंगे और सुप्रीम कोर्ट उस पर विचार नहीं करेगा ?
इस देश के असंख्य लोगों की उम्मीद के आखिरी केंद्र सुप्रीम कोर्ट से यह उम्मीद रखना लाजिमी ही है कि वह ऐसी स्थिति न आने दे जिसमें कानून का शासन गायब हो जाए।
 सुप्रीम कोर्ट ने बोफर्स मामले की जांच की मांग वाली सी.बी.आई.की याचिका  शुक्रवार को ठुकरा दी।
इससे अनेक लोगों को निराशा हुई है।पर साथ ही सुप्रीम कोर्ट 
ने यह  कह कर उम्मीद जगाई है कि  है कि बोफर्स मामले पर अधिवक्ता अजय अग्रवाल की याचिका लंबित है,उस पर सुनवाई के दौरान सी.बी.आई. सारे बिन्दु उठा सकता है।
याद रहे कि सी.बी.आई.की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद विध्वंस के बंद मुकदमे को फिर से खोलने का आदेश गत साल दिया था।
इससे यह उम्मीद जगी थी कि बोफर्स मामला भी फिर से खुल सकता है।
   16 जनवरी, 2018 को मुख्य न्यायाधीश  दीपक मिश्र की अध्यक्षता वाले पीठ ने कहा था कि ‘यदि किसी आपराधिक मामले में किसी असंबद्ध व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई होने लगे तो यह एक खतरनाक परंपरा कायम हो जाएगी।’
 अब देखना है कि अगली बार जब सुनवाई होगी तो सुप्रीम कोर्ट ‘असंबद्ध व्यक्ति’यानी अजय अग्रवाल  की याचिका पर क्या रुख अपनाता है।
 वैसे इस केस को लेकर कई सवाल व कुछ  उलझनें हंै जो अगली पीढि़यों को भी परेशान करते रहंेगे यदि इससे संबंधित कुछ सवालों का माकूल जवाब इस बीच नहीं आ गया।
 जवाब आने से इस बोफर्स तोप खरीद कांड से संबंधित कई सवाल सुलझ सकते हैं।वैसी स्थिति में नाहक कोई  राजनीतिक या गैर राजनीतिक हस्ती किसी तरह के शक के दायरे में नहीं रहेगी।
सवाल है कि जब फ्रांस की तोप सोफ्मा, बोफर्स तोप से भी अच्छी तोप थी तो फिर बोफर्स क्यों खरीदी गयी ?क्या इसलिए कि सोफ्मा वाले किसी को ‘कमीशन’ नहीं देते थे ?
भारत सरकार की घोषित नीति रही है कि रक्षा सौदे में दलाली या कमीशन का प्रावधान नहीं रहेगा।फिर बोफर्स तोप खरीद में दलाली क्यों दी गयी ?
क्या बिहार के पूर्व कांग्रेसी विधायक भरत प्रसाद सिंह का यह कहना सही है कि बोफर्स सौदे की दलाली के पैसे का इस्तेमाल हेवी वाटर और परिष्कृत यूरेनियम खरीदने में किया गया ताकि इस देश में परमाणु बम बन सके ?
यह बात व्यक्तिगत रूप से राजीव गांधी ने इस पूर्व विधायक को 1989 में बताई थी । यह बात श्री सिंह ने इस पर लिखी अपनी एक पुस्तिका में दर्ज की  है।क्या यह बात सही है कि लीगल चैनल से तब पर्याप्त हेवी वाटर आयात करना असंभव था ?
श्री सिंह ने 6 नवंबर 1999 को तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को लिखे पत्र में यह सवाल उठाया था,‘क्या यह सही नहीं है कि बोफर्स दलाली के नाम से प्रचारित पैसे से हेवी वाटर की खरीद की गयी ? इस चिट्ठी की काॅपी सोनिया गाधी को भी भेजी गयी थी।
क्या अजय अग्रवाल की याचिका पर विचार करते समय सुप्रीम कोर्ट इस सनसनीखेज जानकारी की सत्यता की भी जांच नहीं करवाएगा ?
अपनी स्वीडन यात्रा से ठीक पहले राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने 26 मई 2015 को क्यों कहा था कि चूंकि कोई अदालती निर्णय नहीं है, इसलिए आधिकारिक रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि बोफर्स में कोई घोटाला हुआ है ? क्या उनके पास कोई और खास जानकारी है ?
2013 में सी.बी.आई. के पूर्व निदेशक ए.पी.मुखर्जी की एक चर्चित किताब आई थी।पुस्तक में राजीव गांधी,ज्योति बसु और इंद्रजीत गुप्त के बारे में बातें लिखी हुई हैं।मुखर्जी ने उस पुस्तक में बोफर्स सौदे के बारे में भी एक रहस्योद्घाटन किया है।मुखर्जी लिखते हैं कि राजीव गांधी ने मुझे  बताया था कि रक्षा सौदे के कमीशन के पैसों का इस्तेमाल पार्टी फंड के लिए होना चाहिए।मुखर्जी का कथन सच है या नहीं ?ंक्या इस बात की जांच के बिना ही बोफर्स मामले को कालीन के नीचे दबा देना चाहिए ?
 1991 में नरसिंह राव सरकार के विदेश मंत्री माधव सिंह सोलंकी ने भारत सरकार की ओर से स्विस सरकार से गुप्त रूप से यह आग्रह किया था कि बोफर्स दलाली की जांच नहीं होनी चाहिए।यह खबर जब बाहर आ गयी तो सोलंकी को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा  था।क्या इस प्रकरण की जांच करने की जरूरत नहीं है कि जांच की मनाही क्यों की गयी थी ? 
 इसी देश के आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण ने 2010 में यह कहा था कि ‘क्वात्रोच्चि और बिन चड्ढा को बोफर्स की दलाली के 41 करोड़ रुपए मिले थे।ऐसी आय पर भारत में उन पर टैक्स की देनदारी बनती है।’
न्यायाधिकरण ने यह भी कहा था कि ‘बोफर्स कंपनी को कमीशन की राशि सौदे के मूल्य से कम करना चाहिए था।लेकिन भारत सरकार ने  41 करोड़ रुपए की अतिरिक्त राशि का भुगतान किया ।उसे करना पड़ा।’ 
ऐसा कहने के बावजूद भारत सरकार ने आयकर की वसूली क्यों नहीं की ? क्या इस सवाल का जवाब इस पीढ़ी को कभी नहीं मिल पाएगा ? यदि नहीं मिलेगा तो बोफर्स की दलाली को लेकर अनंत काल तक कई हस्तियां  शक के घेरे में बनी रहेंगी। 
राव सरकार ने अर्जेंटिना स्थित भारतीय मिशन को यह निदेश क्यों दिया था कि वह बोफर्स दलाल क्वात्रोचि के प्रत्यार्पण की कोशिश न करे ? जिस व्यक्ति पर भारत में केस चल रहा हो,उसके प्रति ऐसी नरमी क्यों ?सुप्रीम कोर्ट यह तथ्य नजरअंदाज कर देगा ?
कांग्रेसी और कांग्रेस समर्थित सरकारों ने समय -समय पर बोफर्स दलाली मामले की जांच मंंे कदम -कदम पर रोड़े अटकाए ? क्यों संबंधित मुकदमे को उसकी तार्किक परिणति नहीं पहुंचने दिया गया ? क्यों क्वात्रोचि को इस देश से भाग जाने दिया गया ? क्यों लंदन स्थित उस जब्त खाते को यहां से अफसर भेज कर खोलवा दिया गया ताकि क्वोत्रोचि उससे पैसे निकाल सके ?
याद रहे कि दलाली के पैसे स्विस बैंक की लंदन शाखा में जमा थे। 
क्या ये सवाल जन मानस में अनंत काल तक बने रहने चाहिए ? बोफर्स सौदे में दलाली को लेकर इस तरह के अन्य कई सवाल भी अनेक लोगों के दिल ओ दिमाग में हैं।उनके जवाब खोजने की कोशिश सुप्रीम कोर्ट नहीं करेगा तो आखिर कौन करेगा ?
@फस्र्टपोस्ट हिंदी मेंें 5 नवंबर 2018 को प्रकाशित@


   

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