सोमवार, 19 नवंबर 2018

इंदिरा गांधी की वसीयत : वरुण के हितों की सुरक्षा राजीव-सोनिया की जिम्मेदारी थी

इंदिरा गांधी के जन्मदिन पर विशेष

सुरेंद्र किशोर 

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इंदिरा गांधी ने लिखा था कि ‘मैं यह देख कर खुश हूं कि राजीव और सोनिया फिरोज वरुण को उतना ही प्यार करते हैं जितना अपने खुद के बच्चों को। मुझे पक्का भरोसा है कि जहां तक संभव होगा, वे हर तरह से वरुण के हितों की रक्षा करेंगे।’

यह बात पूर्व प्रधानमंत्री ने अपनी वसीयत में दर्ज की है। वह वसीयत 4 मई, 1981 को लिखी गयी थी। उसके गवाह थे एम.वी. राजन और माखनलाल। इंदिरा गांधी ने यह भी लिखा है कि ‘संजय गांधी की जायदाद में मेरा जो शेयर है, मेरी इच्छा है कि वह फिरोज वरुण को मिले। इन बच्चों के बालिग होने तक यह संपत्ति ट्रस्ट के पास रहे जिसके प्रबंधक राजीव और सोनिया रहें।’


इंदिरा गांधी की वसीयत में अन्य परिजन की चर्चा मौजूद है सिवा मेनका गांधी के। फिरोज वरुण का तो उन्होंने पूरा ध्यान रखा, पर अपने छोटे पुत्र संजय की विधवा के लिए उनके पास देने को कुछ नहीं था। याद रहे कि संजय के निधन के बाद मेनका का संबंध इंदिरा जी से बहुत ही खराब हो गया था।


इंदिरा जी के जीवनकाल में मेनका ने अपना एक राजनीतिक संगठन भी बना लिया था-संजय विचार मंच।

ऐतिहासिक वसीयत में इंदिरा गांधी ने यह भी लिखा है कि 1947 में हमारे पास जितनी संपत्ति थी, आज उससे कम है। याद रहे कि इस बीच उन्होंने जवाहर लाल नेहरू स्मारक ट्रस्ट को इलाहाबाद का अपना ‘आनंद भवन’ दान कर दिया था।

वसीयत के अनुसार मेहरौली के पास के निजी फार्म हाउस राहुल और प्रियंका को मिले। वसीयत के अनुसार हिस्सेदारी दोनों बच्चों की बराबर -बराबर रहेगी। उन्होंने पुस्तकों की कॉपी राइट भी तीन हिस्सों में बांट दिए, तीनों बच्चों के नाम। यानी प्रियंका, राहुल और वरुण के नाम।


वसीयत के अनुसार जेवर इंदिरा जी ने प्रियंका को दिए। पर शेयर, सिक्युरिटी व यूनिट को तीनों बच्चों में बांटे। पुरातन सामग्री जो पुरातत्व विभाग में निबंधित हैं, वे प्रियंका को मिलेंगी।


इंदिरा जी ने अपनी वसीयत में लिखा कि मेरे सारे निजी पेपर्स राहुल को मिलेंगे। बहुमूल्य व दुर्लभ पुस्तकें राहुल और प्रियंका को मिलेंगी। कुछ अन्य सामग्री के बारे में भी वसीयत में जिक्र है।


प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लिखा कि तीनों बच्चों के नाम की गयी संपत्ति, ट्रस्ट के तहत रहेगी क्योंकि बच्चे अभी वयस्क नहीं हैं। ट्रस्ट के प्रबंधक राजीव होंगे। यदि किसी कारणवश राजीव प्रबंधक नहीं रहे तो सोनिया प्रबंधक बनेगी।


यह भी मान लिया गया कि इस वसीयत के जरिए भी इंदिरा जी ने अघोषित रूप में राजीव और उनके पुत्र राहुल को ही अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी भी नामजद कर दिया न कि वरुण को। वैसे भी 1980 में संजय गांधी के असामयिक निधन के थोड़े ही दिनों बाद मेनका गांधी इंदिरा गांधी के आवास से बाहर हो गयी थीं। या यूं कहिए कि कर दी गयी थीं। 


संजय गांधी की जायदाद जो भी रही हो, पर खुद इंदिरा गांधी की जायदाद ऐसी नहीं थी जिसपर अंगुली उठाई जा सके। इंदिरा जी का यह कहना भी महत्वपूर्ण है कि 1947 की अपेक्षा उनके परिवार की संपत्ति घटी जबकि वे लंबे समय तक सत्ता में रहे।


उनके जीवनकाल में भी किसी विरोधी नेता ने उनकी आय से अधिक संपत्ति का कोई मामला उठाया हो, यह हमें याद नहीं। हां, एक दूसरे प्रकार की शिकायत जरूर रही। अपने प्रधानमंत्रित्व काल में सरकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ उन्हें जितना कठोर होना चाहिए था, उतना नहीं हुर्इं। कई लोगों की ऐसी ही शिकायत जवाहरलाल नेहरू से भी रही।


फिर भी नेहरू - गांधी परिवार की 1981 तक की निजी संपत्ति को देखकर और आज के पक्ष-विपक्ष के अनेक नेताओं से उसकी तुलना करके देखने पर लगता है कि वे राजनीति के ‘संत’ थे। हालांकि इस शब्द का इस्तेमाल खुद इंदिरा गांधी ने अपने पिता के लिए किया था-‘मेरे पिता संत थे। पर मैं तो पॉलिटिशियन हूं।’


(मेरा यह लेख 19 नवंबर, 2018 को फस्र्टपोस्ट हिंदी में प्रकाशित)

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