आज के ‘टेलिग्राफ’ में प्रकाशित एक खबर के अनुसार धुबरी
@असम@और फुलबाड़ी@मेघालय@ के बीच ब्रह्मपुत्र नद पर 20 किलोमीटर लंबा पुल बनने जा रहा है। धुबरी जिले के प्रशासन ने पहुंच पथ के लिए भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू भी कर दी है।
इतनी दूर की यह खबर मेरे लिए महत्वपूर्ण कैसे हो गयी ?
दरअसल मैं इमरजेंसी में फुलबाड़ी में कई महीनों तक अज्ञातवास में था।
इस खबर के साथ वहां की अनेक बातें व यादें एक साथ दिमाग में कौंध गयीं।
मैंने तब फकीरा ग्राम रेलवे स्टेशन पर ट्रेन से उतर कर
धुबरी के लिए बस पकड़ी थी।
धुबरी में स्टीमर पर सवार होकर फुलबाड़ी गया था।घंटों लगे थे।कई बार तो पता नहीं चल रहा था कि स्टीमर नद की लंबाई में चल रहा है या चैड़ाई में।
स्टीमर के मालिक सोन पुर @बिहार@के ही बाबू साहब थे।उनका स्टाफ भोजपुरी में बातें कर रहे थे।पर मैं अपना परिचय नहीं दे सकता था।
खैर, मैं फुलबाड़ी में महीनों रहा।हर सप्ताह मैं कठिन यात्रा तय करके फुलबाड़ी से धुबरी पहुंचता था-दिनमान और ब्लिट्ज खरीदने।
आश्चर्य है कि तब से अब तक यानी 42 साल में किसी शासक को यह नहीं सूझा कि धुबरी के पास पुल बनाना जरूरी है।
लगता तो नहीं कि मैं अब फिर कभी वहां जा पाऊंगा।पर जा पाता तो पुल बन जाने के बाद यह देखना दिलचस्प होता कि एक पिछड़े इलाके में पुल के पहले और पुल के बाद की स्थिति में कितना व क्या फर्क आता है।
@असम@और फुलबाड़ी@मेघालय@ के बीच ब्रह्मपुत्र नद पर 20 किलोमीटर लंबा पुल बनने जा रहा है। धुबरी जिले के प्रशासन ने पहुंच पथ के लिए भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू भी कर दी है।
इतनी दूर की यह खबर मेरे लिए महत्वपूर्ण कैसे हो गयी ?
दरअसल मैं इमरजेंसी में फुलबाड़ी में कई महीनों तक अज्ञातवास में था।
इस खबर के साथ वहां की अनेक बातें व यादें एक साथ दिमाग में कौंध गयीं।
मैंने तब फकीरा ग्राम रेलवे स्टेशन पर ट्रेन से उतर कर
धुबरी के लिए बस पकड़ी थी।
धुबरी में स्टीमर पर सवार होकर फुलबाड़ी गया था।घंटों लगे थे।कई बार तो पता नहीं चल रहा था कि स्टीमर नद की लंबाई में चल रहा है या चैड़ाई में।
स्टीमर के मालिक सोन पुर @बिहार@के ही बाबू साहब थे।उनका स्टाफ भोजपुरी में बातें कर रहे थे।पर मैं अपना परिचय नहीं दे सकता था।
खैर, मैं फुलबाड़ी में महीनों रहा।हर सप्ताह मैं कठिन यात्रा तय करके फुलबाड़ी से धुबरी पहुंचता था-दिनमान और ब्लिट्ज खरीदने।
आश्चर्य है कि तब से अब तक यानी 42 साल में किसी शासक को यह नहीं सूझा कि धुबरी के पास पुल बनाना जरूरी है।
लगता तो नहीं कि मैं अब फिर कभी वहां जा पाऊंगा।पर जा पाता तो पुल बन जाने के बाद यह देखना दिलचस्प होता कि एक पिछड़े इलाके में पुल के पहले और पुल के बाद की स्थिति में कितना व क्या फर्क आता है।
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