बोफर्स चाय ! बोफर्स चाय !!
1989 के लोक सभा चुनाव कवर करने जब हम संवाददाता गांवों में जाते थे तो कई ग्रामीण बाजारों की चाय दुकानों पर हम चाय वालांे को यह आवाज लगाते सुनते थे।
जो लोग राफेल की तुलना आज बोफर्स से करते हैं,उन्हें उन बाजारों में ऐसी आवाज अभी नहीं सुनाई पड़ेगी।
उसका एक खास कारण है।
राफेल विवाद में अभी एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व की कमी है।
वह है स्विस बैंक या किसी अन्य विदेशी बैंक का कोई खाता
नंबर जिसमें मौजूदा प्रधान मंत्री या उनके किसी खास करीबी का पैसा जमा हो।
वह राफेल की दलाली का पैसा हो।
मैं यह नहीं कह रहा हूं कि राफेल सौदे में ऐसे किसी खाते का अस्तित्व ही नहीं होगा।
पर है भी तो वह तथ्य अभी तक बाहर नहीं आया है।
सब मिल कर जोर लगाएं और वैसे किसी खाते का पता लगा कर लोगों को बताएं जिस 1988 में पटना में वी.पी.सिंह ने बताया था।
फिर देखिए किस तरह आसमान में उड़ रही नरेंद्र मोदी की पतंग की डोर कट जाती है जिस तरह राजीव गांधी की कट गयी थी।
मेरी जानकारी के अनुसार सिर्फ इसी खाते तक पहुंच के अभाव में राफेल कथा अभी गांव -गांव की कहानी नहीं बन पा रही है।
1989 के लोक सभा चुनाव कवर करने जब हम संवाददाता गांवों में जाते थे तो कई ग्रामीण बाजारों की चाय दुकानों पर हम चाय वालांे को यह आवाज लगाते सुनते थे।
जो लोग राफेल की तुलना आज बोफर्स से करते हैं,उन्हें उन बाजारों में ऐसी आवाज अभी नहीं सुनाई पड़ेगी।
उसका एक खास कारण है।
राफेल विवाद में अभी एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व की कमी है।
वह है स्विस बैंक या किसी अन्य विदेशी बैंक का कोई खाता
नंबर जिसमें मौजूदा प्रधान मंत्री या उनके किसी खास करीबी का पैसा जमा हो।
वह राफेल की दलाली का पैसा हो।
मैं यह नहीं कह रहा हूं कि राफेल सौदे में ऐसे किसी खाते का अस्तित्व ही नहीं होगा।
पर है भी तो वह तथ्य अभी तक बाहर नहीं आया है।
सब मिल कर जोर लगाएं और वैसे किसी खाते का पता लगा कर लोगों को बताएं जिस 1988 में पटना में वी.पी.सिंह ने बताया था।
फिर देखिए किस तरह आसमान में उड़ रही नरेंद्र मोदी की पतंग की डोर कट जाती है जिस तरह राजीव गांधी की कट गयी थी।
मेरी जानकारी के अनुसार सिर्फ इसी खाते तक पहुंच के अभाव में राफेल कथा अभी गांव -गांव की कहानी नहीं बन पा रही है।
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