बोफर्स सौदा दलाली मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जे.डी.कपूर ने 4 फरवरी 2004 को राजीव गांधी को क्लीन चीट दे दी।अदालत ने हिन्दुजा बंधुओं के खिलाफ आरोपों को भी खारिज कर दिया।
जानकारों के अनुसार हाईकोर्ट ने ठोस सबूतों को अनदेखी करते हुए ऐसा जजमेंट दिया था।
इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की जानी चाहिए थी।
पर तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने अपील की अनुमति सी.बी.आई.को नहीं दी।या यूं कहिए कि अनुमति देने में देर कर दी।
याद रहे कि इस जजमेंट के बाद 22 मई 2004 तक अटल जी प्रधान मंत्री रहे थे।अपील की अनुमति क्यों नहीं दी ?
अपील नहीं करने के लिए और कौन-कौन जिम्मेदार थे ?
क्या अफसर जिम्मेदार थे ? या राजनीतिक कार्यपालिका ?
इसका जवाब जनता को मिलना चाहिए।
हाल में मोदी सरकार की सी.बी.आई.ने 14 साल विलंब के बाद इस मामले में अपील की तो सुप्रीम कार्ट ने उस अपील को खारिज कर दिया।हालांकि इसी मामले में एक अन्य याचिका सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है।सुप्रीम कोर्ट उस पर सुनवाई को राजी है।अदालत ने कहा है कि उसी की सुनवाई के समय सी.बी.आई.अपना पक्ष रखे।
यदि 2019 के चुनाव के बाद सुनवाई होगी और तब तक यदि कोई नयी सरकार आ जाएगी तो ‘तोते जी’ का स्वर बदल जाएगा।हांलाकि बेचारे तोते अभी खुद जाल में फंसे हंै !
अपने देश में भ्रष्टाचार के मामले इसी तरह चलते हैं,घिसटते हैं और लटकते हैं।घिसटते -लटकते चलते रहते हैं।सरकार बदलने के साथ ही तोते का स्वर बदलता रहता है।
इस बीच कई ‘अपराधी’ यानी आरोपित मर कर भूत बन चुके होते हैं।इधर यह देश भ्रष्टाचार के मामले में भूत बंगला बनता जा रहा है।
फिर भ्रष्टाचार दूर या कम होने की उम्मीद कोई क्यों करता है ?
सी.बी.आई.के शीर्ष के ताजा घृणित प्रकरण को छोड़ दें तो इन दिनों मोदी सरकार की सी.बी.आई.की शक्ति मुकदमे चलाने और उन्हें जारी रखने में लगी हुई है। यदि 2019 में दूसरी सरकार आ गयी तो वह सरकार इन मुकदमों की वापसी में अपना समय लगाएगी जो अभी चल रहे हैं।या फिर जो मुकदमा कोर्ट की निगरानी में चल रहा होगा,उसे कमजोर करने में समय लगाएगी।जिस तरह अटल सरकार ने बोफर्स केस में अपील नहीं की थी जबकि उसे 5 फरवरी से 21 मई 2004 तक का समय मिला था।
इस देश में ऐसा दशकों से हो रहा है।धन्य है यह देश और इसके पक्ष -विपक्ष के संबधित नेतागण !
जानकारों के अनुसार हाईकोर्ट ने ठोस सबूतों को अनदेखी करते हुए ऐसा जजमेंट दिया था।
इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की जानी चाहिए थी।
पर तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने अपील की अनुमति सी.बी.आई.को नहीं दी।या यूं कहिए कि अनुमति देने में देर कर दी।
याद रहे कि इस जजमेंट के बाद 22 मई 2004 तक अटल जी प्रधान मंत्री रहे थे।अपील की अनुमति क्यों नहीं दी ?
अपील नहीं करने के लिए और कौन-कौन जिम्मेदार थे ?
क्या अफसर जिम्मेदार थे ? या राजनीतिक कार्यपालिका ?
इसका जवाब जनता को मिलना चाहिए।
हाल में मोदी सरकार की सी.बी.आई.ने 14 साल विलंब के बाद इस मामले में अपील की तो सुप्रीम कार्ट ने उस अपील को खारिज कर दिया।हालांकि इसी मामले में एक अन्य याचिका सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है।सुप्रीम कोर्ट उस पर सुनवाई को राजी है।अदालत ने कहा है कि उसी की सुनवाई के समय सी.बी.आई.अपना पक्ष रखे।
यदि 2019 के चुनाव के बाद सुनवाई होगी और तब तक यदि कोई नयी सरकार आ जाएगी तो ‘तोते जी’ का स्वर बदल जाएगा।हांलाकि बेचारे तोते अभी खुद जाल में फंसे हंै !
अपने देश में भ्रष्टाचार के मामले इसी तरह चलते हैं,घिसटते हैं और लटकते हैं।घिसटते -लटकते चलते रहते हैं।सरकार बदलने के साथ ही तोते का स्वर बदलता रहता है।
इस बीच कई ‘अपराधी’ यानी आरोपित मर कर भूत बन चुके होते हैं।इधर यह देश भ्रष्टाचार के मामले में भूत बंगला बनता जा रहा है।
फिर भ्रष्टाचार दूर या कम होने की उम्मीद कोई क्यों करता है ?
सी.बी.आई.के शीर्ष के ताजा घृणित प्रकरण को छोड़ दें तो इन दिनों मोदी सरकार की सी.बी.आई.की शक्ति मुकदमे चलाने और उन्हें जारी रखने में लगी हुई है। यदि 2019 में दूसरी सरकार आ गयी तो वह सरकार इन मुकदमों की वापसी में अपना समय लगाएगी जो अभी चल रहे हैं।या फिर जो मुकदमा कोर्ट की निगरानी में चल रहा होगा,उसे कमजोर करने में समय लगाएगी।जिस तरह अटल सरकार ने बोफर्स केस में अपील नहीं की थी जबकि उसे 5 फरवरी से 21 मई 2004 तक का समय मिला था।
इस देश में ऐसा दशकों से हो रहा है।धन्य है यह देश और इसके पक्ष -विपक्ष के संबधित नेतागण !
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