सन् 1978 में बिहार के तत्कालीन मुख्य मंत्री कर्पूरी ठाकुर ने डा.राम मनोहर लोहिया के घनिष्ठ मित्र की भी पैरवी नहीं सुनी
थी।
पैरवी चीनी मिल मालिकों की तरफ से की गयी थी।
ध्यान रहे कि कर्पूरी जी की पार्टी के सर्वोच्च नेता डा.लोहिया का 1967 में ही निधन हो चुका था।
उन दिनों की राजनीति ऐसी थी कि यदि डा.लोहिया के जीवन काल में उनके मित्र ने ऐसी पैरवी की होती तो मित्रता टूट गयी होती।
कर्पूरी सरकार ने 1978 के अक्तूबर में 16 निजी चीनी मिलों का सरकारीकरण कर दिया।
इससे देश के उद्योगपतियों में तहलका मच गया।उस निर्णय को उलटने के लिए बड़ी-बड़ी पैरवी आने लगी।
पर सबसे आश्चर्यजनक पैरवी उस लोहिया-मित्र की ओर से आई।उस पैरवी के लिए वे पटना में आकर जम गए।लोहिया के साथ काम कर चुके बिहार के समाजवादी चकित थे।
पर, वह भारी पैरवी भी अंततः काम नहीं आई।
थी।
पैरवी चीनी मिल मालिकों की तरफ से की गयी थी।
ध्यान रहे कि कर्पूरी जी की पार्टी के सर्वोच्च नेता डा.लोहिया का 1967 में ही निधन हो चुका था।
उन दिनों की राजनीति ऐसी थी कि यदि डा.लोहिया के जीवन काल में उनके मित्र ने ऐसी पैरवी की होती तो मित्रता टूट गयी होती।
कर्पूरी सरकार ने 1978 के अक्तूबर में 16 निजी चीनी मिलों का सरकारीकरण कर दिया।
इससे देश के उद्योगपतियों में तहलका मच गया।उस निर्णय को उलटने के लिए बड़ी-बड़ी पैरवी आने लगी।
पर सबसे आश्चर्यजनक पैरवी उस लोहिया-मित्र की ओर से आई।उस पैरवी के लिए वे पटना में आकर जम गए।लोहिया के साथ काम कर चुके बिहार के समाजवादी चकित थे।
पर, वह भारी पैरवी भी अंततः काम नहीं आई।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें