शनिवार, 10 नवंबर 2018

--राजनीति में वंशवाद की कमजोरियों में उलझ गया है चैटाला परिवार--



 किसी भी राजनीतिक परिवार में उत्तराधिकार की लड़ाई कठिन व दिलचस्प होती है।पर, यदि वह ‘युद्ध’ किसी हरियाणवी परिवार में हो तो उसमें महाभारत का पुट होना स्वाभाविक है।
इंडियन नेशनल लोक दल के सुप्रीमो  व पूर्व मुख्य मंत्री ओम प्रकाश चैटाला इन दिनों  इसी परेशानी से जूझ रहे हैं।
 उन्होंने अपने पुत्र अभय चैटाला को अपना उत्तराधिकारी बनाने का निर्णय  कर लिया।पर अजय चैटाला के पुत्र द्वय अपने दादा का आदेश नहीं मान रहे हैं।याद रहे कि ओम प्रकाश जी के एक  पुत्र अजय चैटाला अपने पिता ओम प्रकाश चाटाला के साथ सजा काट रहे हैं।
पर अजय का कहना है कि ‘इंडियन नेशनल लोक दल न तो मेरे बाप की पार्टी है और न ही किसी और के बाप की।’
 अजय ने महाभारत शैली में यह भी कहा है कि ‘अब याचना नहीं,रण होगा,जीवन या मरण होगा।’ 
यह कार्यकत्र्ताओं की पार्टी है,वही निर्णय  करंेगे।अजय गुट के कार्यकत्र्ताओं की बैठक होने वाली है।जेल से पेरोल पर निकल कर अजय चैटाला अपने पुत्र की मदद में जुट गए हैं।
  इस बीच अजय के पुत्र ने भाजपा नेता व केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत से भी संपर्क साधा है।
 यानी हरियाणा के राजनीतिक समीकरण के बदलने के भी संकेत मिल रहे हैं।
  याद रहे कि  अभय सिंह चैटाला हरियाणा विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता है।अजय चैटाला के पुत्र दुष्यंत चैटाला सांसद हैं।
दुष्यंत के छोटे भाई दिग्विजय चैटाला पार्टी के छात्र संगठन के प्रमुख थे।अब नहीं हैं।
दुष्यंत के साथ -साथ दिग्विजय को भी  ओम प्रकाश चैटाला के दल ने इसी माह अपनी पार्टी से निकाल दिया । 
दुष्यंत कहते हैं कि मेरे पिता ने 40 साल तक पार्टी की सेवा की है।
गत 7 अक्तूबर को दुष्यंत चैटाला के समर्थकों ने पार्टी रैली में अभय के भाषण के दौरान उपद्रव किया था।उस कारण उन्हें निलंबित किया गया था।उनके भाई दिग्विजय के खिलाफ भी पार्टी ने कार्रवाई की थी।
  इस बीच एक बार फिर मेल जोल की कोशिश भी हो रही है।पर समझौता कठिन माना जा रहा है।
देवीलाल द्वारा खड़ी की गयी इस पार्टी का हरियाणा में अच्छा- खासा जनाधार रहा है।पर लगता है कि पारिवारिक झगड़े का लाभ अगले चुनाव में भाजपा या कांग्रेस को मिल सकता है।
राजनीति में वंशवाद की कई बुराइयां हैं।पर उत्तराधिकार की समस्या को हल कर पाना किसी भी सुप्रीमो के लिए सबसे कठिन काम होता है।
ऐसे झगड़े में कई बार कुछ दल अपने मूल उद्देश्य से भटक जाते हैं। सर्वाधिक नुकसान उन आम लोगों को होता है जो लोग ऐसे दलों से अपने भले की बड़ी उम्मीद लगाए बैठे होते हैं।
वंशवाद जो न कराए ! 
   ---स्ट्रीट फूड बेहतर--
लोक स्वास्थ्य विशेषज्ञ के अनुसार सड़क और गलियों में ठेले
पर  बिक रहे आहार अपेक्षाकृत बेहतर हैं।
उनका तर्क है कि ऐसे आहार बासी नहीं होते।रोज बनते हैं,रोज बिक जाते हैं।इसके विपरीत कई बड़ेे होटलों के फ्रिज में एक -दो दिनों से रखे आहार दुबारा गर्म करके खिलाए जाते हैं।वे स्वास्थ्य के लिए हानिकर होते हैं।
   विशेषज्ञ की यह राय तो स्ट्रीट वेंडर को खुश कर देने वाली  है।
पर उन ठेले वालों की भी कुछ जिम्मेदारियां बनती हैं।वे आम तौर से साफ-सफाई पर ध्यान नहीं देते।अपवादों की बात और है।
उन्हें चाहिए कि वे आहार बनाने और बत्र्तन धोने में गंदे पानी का इस्तेमाल न करें।
यदि वे सड़े आलू समोसे में न डालें,तो उनका बड़ा नाम होगा।आदि.... आदि....।
   --राष्ट्र कवि दिनकर के लिए--
राष्ट्रकवि राम धारी सिंह दिनकर की स्मृति में सिमरिया में 
अगले माह एक सप्ताह का कार्यक्रम प्रस्तावित है।
 उस अवसर पर बेगूसराय जिले
के उस गांव में राष्ट्रपति और प्रधान मंत्री के कार्यक्रमों की स्वीकृति लेने की कोशिश भी की जा रही है।
यहां मिल रही खबर के अनुसार उस कोशिश में
केंद्रीय राज्य मंत्री गिरिराज सिंह के अलावा कुछ अन्य दलों के  कुछ नेता भी लगे हुए हैं। 
देखना है कि वे नेता सफल हो पाते हैं या नहीं।वैसे दिनकर के महत्व को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी भी स्वीकार करते  हैं।
 -- आठ साल पहले की वह खुली चिट्ठी-- 
जनवरी, 2011 में विप्रो के अजीम प्रेम जी और महेंद्रा ग्रूप के के. महेंद्र सहित इस देश की 14 प्रमुख हस्तियों ने एक खुली चिट्ठी लिखी थी।
चिट्ठी इस देश के नेताओं के नाम थी।
चिट्ठी में कहा गया था कि वे भ्रष्टाचार पर काबू पाएं और 
जांच एजेंसियों को स्वायत्त बनाएं।
वह चिट्ठी जिन चर्चित हस्तियों की ओर से लिखी गई थी,उनमें जमशेद गोदरेज,अनु आगा,दीपक पारीख,अशोक गांगुली,विमल जालान और बी.एन.श्रीकृष्णा शामिल थे।
  अब सवाल यह है कि इन हस्तियों  की नजर में  भ्रष्टाचार के मामले में देश की आज हालत कैसी है ?
क्या ये हस्तियां ताजा हालात पर भी कोई टिप्पणी करेंगी  ?
हालांकि यह महत्वपूर्ण है कि इस बीच उन लोगों ने तो कोई अगली चिट््ठी लिखी और न कोई बैठक की।कम से कम ऐसी कोई खबर सार्वजनिक नहीं हुई है।  
     -भूली बिसरी याद-
अयोध्या और श्रीराम की चर्चा के बीच कामिल बुल्के को याद करना भी अप्रासंगिक नहीं होगा।
  बेल्जियम में सन 1909 में जन्मे फादर कामिल बुल्के ने इलाहाबाद विश्व विद्यालय से ‘राम कथा उत्पत्ति व विकास’ विषय पर पीएच.डी.किया था।
खास बात यह है कि उनका शोध पत्र हिंदी में था।ऐसा पहली बार हुआ।इसके लिए इलाहाबाद विश्व विद्यालय के तत्कालीन वी.सी.डा.अमरनाथ झा ने नियम बदल दिया था।
‘बाबा बुल्के’की जिद थी कि ‘मैं अपनी थिसिस हिंदी में ही तैयार करूंगा।’ उससे पहले यह नियम था कि सारे शोध पत्र अंग्रेजी में ही देने होंगे। 
तब किसी ने कहा था कि बुल्के साहब राम कथा संबंधित समस्त सामग्री के विश्व कोष हैं।
इसाई धर्म का प्रचार करने भारत आने के बाद उन्हंे यह देख कर दुःख हुआ कि यहां के पढ़े -लिखे लोग भी अपनी सांस्कृतिक परंपराओं से अनजान थे।
 खुद फादर कामिल बुल्के सन 1950 में भारत के नागरिक बन गए और यहां के समाज में रच -बस गए।
 वे अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, लैटिन, ग्रीक भाषाओं में सहज थे। उनका संस्कृत पर पूरा अधिकार था।
उनका तैयार किया हुआ अंग्रेजी -हिंदी कोश प्रामणिक है जो मेरे टेबल पर भी रहता है।
उन्होंने कई अन्य पुस्तकें भी लिखीं।
सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुके कामिल बुल्के ने सन 1930 में जेसुइट मिशन में दीक्षा ली थी।
वे रांची के सेंट जेवियर काॅलेज में संस्कृत और हिंदी पढ़ाते थे। उन्हें 1974 में पद्म भूषण सम्मान भी मिला था।
उनका सन 1982 में निधन हो गया।
राम कथा के एक विदेशी शोध कत्र्ता को  याद करना अपने आप में एक खास अनुभव है। 
बुल्के साहब इलाहाबाद के चर्चित साहित्यिक समूह ‘परिमल’ के सदस्य थे और धर्मवीर भारती को वे गुरु भाई कहते थे ।भारती जी  बाद में धर्मयुग के संपादक बने थे। 
    -और अंत में-
कौन सी विद्या कहां काम आ जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। एक भारतीय की ज्योतिष विद्या पाकिस्तानी जेलों में काम आ गई।
पाकिस्तानी जेल में 27 साल बिता कर स्वदेश लौटे रूप लाल का संस्मरण मैं पढ़ रहा था।पाकिस्तानी सुरक्षा कर्मियों ने जासूसी के आरोप में सन 1974
में उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। 
 रूप लाल के  अनुसार, ‘ मैं वहां जेल में कैदियों की हस्त रेखाएं पढ़कर उनका भविष्य बताता था।उसके बदले वे मुझे कुछ पैसे देते थे।उन पैसों के जरिए  मैं जेल के बाहर से धार्मिक पुस्तकें मंगाता था।इसके लिए जेल कर्मियों को रिश्वत देनी पड़ती थी।चलिए,इस मामले में भारत और पाकिस्तान का एक ही हाल है।यहां भी जेल कर्मियों को रिश्वत देकर आप कुछ भी बाहर से मंगवा सकते हैं, ऐसी
 खबरें अक्सर छपती रहती हैं।  
@9 नवंबर 2018 को प्रभात खबर-बिहार में प्रकाशित मेरे काॅलम कानोंकान से@
    

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