1999 में मैंने एक छोटी कार खरीदने के लिए पटना में एक बैंक से लोन लिया।
बैंक ने मेरी जमीन का कागज गिरवी रख लिया।
मेरे गारंटर ने मेरे लिए एफ.डी.गिरवी रखी।
मैं हर महीने किस्त जमा कर ही रहा था कि एक दिन हमें वकील से नोटिस मिल गयी।आरोप था कि मैंने समय पर किस्त जमा नहीं की।
गारंटर को अधिक बुरा लगा।
मैंने बैंक मैनेजर को पत्र लिखा।कहा कि माफी मांगिए अन्यथा मैं आप पर केस करूंगा।उसने माफी मांगी।
आज जब मैं देख रहा हूं कि लाखों करोड़ रुपए लोन लेकर बड़े- बड़े लोग डिफाॅल्टर हो रहे हैं और बैंक उनके नाम तक जाहिर करने के लिए तैयार नहीं हैं।
वास्तव में इस देश में दो तरह के ‘कानून’ हैं।
बैंक ने मेरी जमीन का कागज गिरवी रख लिया।
मेरे गारंटर ने मेरे लिए एफ.डी.गिरवी रखी।
मैं हर महीने किस्त जमा कर ही रहा था कि एक दिन हमें वकील से नोटिस मिल गयी।आरोप था कि मैंने समय पर किस्त जमा नहीं की।
गारंटर को अधिक बुरा लगा।
मैंने बैंक मैनेजर को पत्र लिखा।कहा कि माफी मांगिए अन्यथा मैं आप पर केस करूंगा।उसने माफी मांगी।
आज जब मैं देख रहा हूं कि लाखों करोड़ रुपए लोन लेकर बड़े- बड़े लोग डिफाॅल्टर हो रहे हैं और बैंक उनके नाम तक जाहिर करने के लिए तैयार नहीं हैं।
वास्तव में इस देश में दो तरह के ‘कानून’ हैं।
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