शनिवार, 3 नवंबर 2018

सच्ची कथा का ‘मोरल’ !
-----------
1.- नाम मत पूछिएगा।नाम लिख कर बेकार किसी झंझट में 
पड़ने से क्या लाभ !
ऐसी घटना इस देश के किसी भी कोने में हो सकती है।
  एक धनपशु के बिगड़ैल पुत्र ने अपनी दनदनाती महंगी कार
से दो गरीबों को कुचल कर मार दिया।
पिता ने पैसे और पैरवी के बल पर उसे  बचा लिया।
  कुछ साल बाद उस पुत्र ने अपनी सनसनाती कार को दुर्घटनाग्रस्त करके खुद को ही मार लिया।
याद रहे कि दुर्घटना उसने जानबूझ कर नहीं की थी।बेचारा 
होश में नहीं था।
ऐसी स्थिति में भारी दुःख में पड़े उसके माता-पिता क्या सोच रहे होंगे ?
यही न कि यदि उसे पहली ही गलती के कारण हल्की सजा हो गयी होती तो शायद वह दूसरी गलती नहीं करता।
उसकी जान तो बची रहती।
खैर, धन के नशे में डूबे उस अभागे किन्तु अदूरदर्शी माता-पिता के समक्ष पछताने के सिवा कोई चारा नहीं रहा।पर ऐसे अन्य बिगड़ैल बेटों के माता-पिता तो ऐसी घटनाओं से सबक ले ही सकते हैं।होशियार व्यक्ति दूसरों की गलती से सीख लेता है।पर बेवकूफ लोग खुद कर के देखते हैं।
2.- अब कहानी एक अन्य हस्ती की।इनका भी नाम पूछने या कहने से कोई लाभ नहीं। इस देश ऐसे कई हो सकते हैं।
उन्होंने सत्ता के मद में चूर होकर जब सरकारी धन को लूटना शुरू किया तो अखबारों ने भी लूट की उनकी कहानी लिखनी शुरू कर दी।
नेता जी ने ऐसे पत्रकारों से  चुन-चुन कर बदला लिया। किसी को कोस कर , किसी को धमका कर तो किसी को नौकरी से निकलवा कर।
पर जब उनकी धनलोलुपता परवान चढ़ी तो वे मजबूत कानूनी फंदे में फंस गए।
शरीर थकने लगा।उससे निकलने का कोई चारा नहीं रहा।
जीवन के अंतिम दिनों में वे उस पत्रकार की तारीफ करने लगे जिस पर वे कभी सर्वाधिक नाराज रहा करते  थे।उसे नौकरी से निकलवाया भी था।
    शायद उन्हें मरने से पहले यह महसूस हुआ होगा कि काश ! उस पत्रकार की पहली ही तेजाबी खबर को  चेतावनी  के रूप में लिया होता तो जीवन की संध्या बेला में हमारी यह गत नहीं होती।
उस पत्रकार के बारे में उनका ‘मृत्यु पूर्व बयान’ था,‘फलां पत्रकार संत है।फकीर है। 24 कैरेट का सोना है।’
इन शब्दों में उनका अव्यक्त प्रायश्चित भी छिपा था।
 काश ! इस देश के अन्य धनलोलुप नेता, अफसर और दूसरे  पेशे के लालची लोग उस दिवंगत नेता के ‘अनुभव’ व प्रायश्चित  से सबक लेते तो वे भी परेशानी से बचते और सरकारी -गैरसरकारी खजाने भी  सुरक्षित रहते।  




1 टिप्पणी:

रवि रतलामी ने कहा…

जब तक अर्थ की निरर्थकता का आभास होता है, समय गुजर चुका होता है 😁