गुरुवार, 8 नवंबर 2018

 3 नवंबर, 2018 को अपने फेसबुक वाॅल पर देश के वरीय पत्रकार शम्भू नाथ शुक्ल ने लिखा कि ‘
‘मेरे संपर्क में जितने भी हिंदी पत्रकार आए,उनमें से सबसे ज्यादा गंभीर,डेड आॅनेस्ट,विचारवान और विचार धारा के प्रति दृढ पत्रकार एक ही मिले।
वे हैं पटना के श्री सुरेंद्र किशोर।
कोई शंकालु सवाल उठा सकता है कि ‘आप क्या ईमानदार नहीं हो ?’
तो मेरा जवाब होगा-‘कत्तई नहीं,क्योंकि मुझे मौका ही नहीं मिला।इसलिए मैं ‘न जुरे तो महात्यागी’ का तमगा नहीं लेना चाहता।’
खैर, असली बात यह है कि 73 वर्षीय पटना के इस ‘सिंह’ ने लिखा था कि जाड़े भर नथुनों में नहाने के पूर्व सरसों का तेल डालने वाले को जुकाम नहीं होता।साथ ही नाभि पर भी यही तेल लगाना चाहिए।
आज से मैंने यही प्रयोग शुरू कर दिया है।सुरेंद्र जी का अनुभव काम का होगा।सुरेंद्र जी की ईमानदारी पर फिर लिखूंगा।’
सुरेंद्र किशोर का जवाब--
 शुक्ल जी, आपकी एक पंक्ति मेरे लिए ‘भारत रत्न’ के समान है।
मैंने पत्रकारीय जीवन में कई न्यूज ब्रेक किए।मेरी रपटों पर बारी-बारी से तीन बार संसद भी स्थगित हो चुकी है।
पर, मुझे पत्रकारिता का कोई पुरस्कार नहीं मिला।हालांकि नहीं मिला,कहना सही नहीं होगा ।दरअसल  मैंने  लिया नहीं ।
 मैंने कई बार प्रांतीय व राष्ट्रीय पुरस्कार के आॅफर को विनम्रतापूर्वक  अस्वीकार कर दिया।
मुझे उसी पुरस्कार की प्रतीक्षा थी जो आप जैसे बड़े पत्रकार ने एक लाइन में मुझे दे दिया।
मेरा हमेशा यह मानना रहा है कि किसी पत्रकार का सबसे बड़ा पुरस्कार यही है कि उसके बारे में आम पाठक क्या राय रखते हैं।‘खास पाठकों’ की मैं चिंता नहीं करता।खास पाठकों को हर पत्रकार  संतुष्ट नहीं कर सकता।दरअसल  मैं देश- संविधान-कानून-सदाचार को किसी भी विचारधारा की अपेक्षा अधिक तरजीह देता हूं।
  पर, आपसे मेरी एक विनती है।आपने अपने  पोस्ट की  अंतिम लाइन में जो अपनी योजना बताई है,उसे टाल दीजिए।किसी व्यक्ति के बारे में उसके निधन के बाद ही ऐसी बातंें लिखी जानी चाहिए जो आप मेरे बारे में लिखना चाहते हैं।अन्यथा, मुझे लेने के देने पड़ सकते हंै।
अधिक लिखने पर कुछ लोग मेरे बारे में ऐसी -ऐसी नकारात्मक बातों का आविष्कार  कर देंगे जिनका मुझे भी पता नहीं होगा।जीवन काल में समकालीनों में ईष्र्या-द्वेष-प्रतियोगिता अधिक रहती है।निधन के बाद भी रहती है,पर काफी कम।
निधन के बाद आप लिखेंगे तो कम से कम मेरे रिश्तेदार-मित्र-परिजन-बाल -बच्चे यह तो जान पाएंगे कि मैं किसी काम का आदमी तो था !
  अभी लिखेंगे तो कुछ लोग यह भी समझ सकते हैं कि ऐसे लेखन से मुझे कोई पद पाने में सुविधा होगी।हालांकि हकीकत यह है कि सिर्फ ईमानदारी का गुण पद पाने के लिए अब कोई अर्हता नहीं है। 
  



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