मंगलवार, 20 नवंबर 2018

 1967 के दिसंबर की बात है।गया में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का राष्ट्रीय सम्मेलन हो रहा था।
एक नेता मंच से जोरदार भाषण कर रहे थे।मैंने एक पुराने कार्यकत्र्ता से  पूछा कि ‘ये कौन हैं ?’
उस नेता ने मुस्कराते हुए कहा कि ‘नहीं जानते ?
ये पानी से सीधे बिजली निकाल लेते हैं।’
कैसे भाई ?
कार्यकत्र्ता ने कहा कि इनके चुनाव क्षेत्र में तो सिंचाई का भरपूर इंतजाम कांग्रेसी सरकार ने कर रखा है।फिर किस आधार पर आलोचना करते ? 1962 में लोक सभा का चुनाव लड़ रहे थे।
इन्होंने अपनी सभाओं में यह कहना शुरू किया कि ‘ अरे भाई आपके खेतांे में भरपूर उपज इसलिए नहीं हो पा रही है क्योंकि इस पानी की तो सारी ऊर्जा  सरकार ने पहले ही निकाल ली है।अब इस पानी में ताकत तो रही नहीं।’
 नेता जी चुनाव जीत  गए थे।
वे हालांकि मझोले कद के नेता थे,फिर भी मैंने ‘पानी से बिजली निकालने’ के गुण के कारण तब उनका भी आॅटोग्राफ  ले लिया था।वह अब भी मेरे पास है। 

   राजस्थान के पूर्व मुख्य मंत्री अशोक गहलोत ने हाल में उस बिजली-पानी प्रकरण की चर्चा कर दी।पर हां,लगता है कि  गहलोत जी ने पात्र बदल दिया।
गहलोत जी ने कह दिया कि ‘जनसंघ के नेता कहा करते थे कि ‘जब पानी से बिजली ही निकाल ली जाएगी तो वह सिंचाई के लिए उपयोगी नहीं रहेगी।‘
संभव है कि  जनसंघ के किसी नेता ने भी यही बात कही हो ।पर दरअसल साठ -सत्तर के दशक में उस सोशलिस्ट नेता को ही ऐसी टिप्पणी करने का श्रेय मिला था।उसकी चर्चा देश भर में हुई थी।
 कुछ महीने पहले भी मैंने फेसबुक पर उसकी चर्चा उस नेता का नाम लिए बिना की थी।
 उस पर दिल्ली के एक पुराने व्यक्ति व मेरे फेसबुक मित्र ने उनका नाम भी लिख दिया था।मैं जान बूझकर इस बार भी नाम नहीं लिख रहा हूं।
 यदि गहलोत जी ने ताजा चुनाव को देखते हुए सोशलिस्ट के बदले जनसंघी कह  दिया हो तो भी कोई बात नहीं।ऐसा होता रहता है।चुनाव के दौरान तो और भी अधिक।
प्रधान मंत्री ने भी तो हाल में सीतराम केसरी को  दलित बता दिया था। 
@नवंबर 2018@  

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