शुक्रवार, 30 नवंबर 2018

--आम्बेडकर ट्रस्ट ने राम जन्म भूमि पर बौद्धों के हक के पक्ष में 1991 में किया था मुकदमा--सुरेंद्र किशोर


डा.बाबा साहब आम्बेडकर की विधवा सविता आम्बेडकर ने
राम जन्म भूमि पर बौद्धों के हक के पक्ष में नब्बे के दशक में 
अभियान चलाया था।
  जन्म भूमि स्थान को बौद्धों को सौंपने की मांग करते हुए डा.बाबा साहब आम्बेडकर फाउंडेशन चैरिटेबल ट्रस्ट ने 1991 में फैजाबाद कोर्ट में याचिका दायर की थी।
पर उस याचिका को कोई प्रचार नहीं मिला।
सन 1992 में बाबरी ढांचे के ध्वस्त होने के बाद सविता आम्बेडकर ने रामजन्म भूमि वाली उस जमीन को हासिल करने के लिए अभियान चलाया था।
  इस साल अयोध्या निवासी विनीत कुमार मौर्या ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।मौर्य ने अपनी याचिका में यह मांग की है कि राम जन्म भूमि स्थल को बुद्ध विहार घोषित किया जाए।
  उन्होंने दावा किया है कि चार खुदाइयों में मिले अवशेषों से यह साबित होता है कि वह स्थल बौद्धों का रहा  है।
  सुप्रीम कोर्ट ने 13 अन्य अपीलों के साथ मौर्या  की याचिका को भी सुनवाई के लिए मंजूर कर लिया है।
 याद रहे कि दूसरी ओर राम जन्म भूमि आंदोलनकारियों का दावा है कि खुदाइयों से प्राचीन राम मंदिर के अवशेष मिले हैं। 
  जन्म भूमि विवाद को लेकर सन 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट का निर्णय आया था।
उसी निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील विचाराधीन है।
इलाहाबाद हाई कोर्र्ट के पीठ ने अपने फैसले में कहा है कि उस जमीन को तीन हिस्सों में बांटा जाए।एक हिस्सा निर्मोही अखाड़ा,दूसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड और तीसरा हिस्सा श्रीराम लल्ला विराजमान को मिले।
 याद रहे कि अभी श्रीराम लल्ला टेंट में हैं।
  उधर नब्बे के दशक में सविता आम्बेडकर ने कहा था कि 
हमारे पास इसके ऐतिहासिक और पुरातात्विक प्रमाण हैं।
याद रहे कि सविता आम्बेडकर का सन 2003 में निधन हो गया।
सविता आम्बेडकर ने जिन्हें ‘माई’ या ‘माइसाहब’ के नाम से पुकारा जाता था,अपने दावे के पक्ष में प्राचीन चीनी पर्यटकांे और समकालीन इतिहासकारों को उधृत किया था।
 उनके अनुसार यह जगह शुरू में बौद्धों की थी।ं महात्मा बुद्ध ने अपने जीवन के 16 वर्ष अयोध्या और उसके आसपास गुजारे थे।
 सविता ने पाली साहित्य का जिक्र करते हुए कहा था कि पाली साहित्य में यह बात कई बार आई है।पाली साहित्य में अयोध्या की जगह साकेत का जिक्र है। 
तब लंदन स्थित आम्बेडकर शताब्दी ट्रस्ट के निदेशक कृष्णा गामरे ने कहा था  कि अगर इसका नतीजा नहीं निकला तो हम सुप्रीम कोर्ट जाएंगे।
फैजाबाद कोर्ट में दाखिल याचिका का क्या हश्र हुआ,यह तो पता नहीं चला,पर विनीत कुमार मौर्या की सुप्रीम कोर्ट में दायर ताजा याचिका पर संभवतः बौद्धों के इस दावे पर भी सुप्रीम कोर्ट देर- सवेर कुछ कहे।याद रहे कि इस सवाल पर आम्बेडकर के कुछ समर्थकों ने नब्बे के दशक में अपने समुदाय में एकजुटता लाने की कोशिश भी की थी।पर समर्थक एकजुट नहीं हो सके थे।   
@ फस्र्टपोस्टहिंदी में 26 नवंबर 2018 को प्रकाशित@

कोई टिप्पणी नहीं: