अमेरिकी अर्थशास्त्री और गणितज्ञ जाॅन फोब्र्स नैश @1928-2015@करीब एक दशक तक सिजोफ्रेनिया से पीडि़त रहे।उचित इलाज के बाद ठीक भी हो गए।
बाद में उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला।
यहां कुछ लोग यह सवाल पूछते हैं कि यदि नैश ठीक हो सकते हैं तो फिर बिहार के गौरव डा.वशिष्ठ नारायण सिंह क्यों नहीं ?
इसका जवाब तो विशेषज्ञ ही दे सकते हैं।
पर इस बीच दैनिक ‘जागरण’ के श्रवण कुमार ने वशिष्ठ बाबू के बारे में यह ताजा खबर दी है,‘धीरे धीरे सामान्य हो रही महान गणितज्ञ वशिष्ठ बाबू की जिंदगी।’
नेतरहाट ओल्ड ब्वाॅयज एसोसिएशन को धन्यवाद कि वह दवा व उनके अन्य खर्चे के लिए वशिष्ठ बाबू को हर माह 20 हजार रुपए दे रहा है।
वशिष्ठ बाबू ने पांचवी तक की पढ़ाई शाहाबाद जिले के अपने गांव में पूरी की।बाद में वे नेतरहाट आवासीय स्कूल में पढ़े।
उन्होंने 1962 में हायर सेकेंड्री की परीक्षा में पूरे बिहार में टाॅप किया।पटना विश्वविद्यालय के साइंस काॅलेज में दाखिला कराया।
वे इतना कुछ जानते थे कि विश्व विद्यालय ने अपना नियम बदल उनके लिए समय से पहले उनकी परीक्षा आयोजित की।
क्योंकि वर्षों तक उनको कक्षाओं में बैठाकर अकारण उनका समय बर्बाद करना विश्व विद्यालय को भी ठीक नहीं लगा।
अमेरिका में पढ़ाई पूरी करने के बाद वे स्वदेश लौटे ।शादी की।नौकरी की।
पर 1976 में वे सिजोफ्रेनिक हो गए।यानी गणित के सवाल सुलझाते- सुलझाते उनके खुद के दिमाग के तंतु उलझ गए।
तब से उनका इलाज चल रहा है।
बीच में वे 1989 में अचानक गायब हो गए थे।पर 1993 में सारण जिला स्थित अपनी ससुराल के गांव के पास ही मिले।
कभी विलक्षण प्रतिभा के धनी और छात्र जीवन में मेरे जैसे लोगों के आदर्श रहे वशिष्ठ बाबू के स्वास्थ्य में सुधार की खबर उत्साहवर्धक हैं
जागरण ने लिखा है कि ‘वशिष्ठ बाबू का डंका नासा तक बजता था।लाखों प्रशंसक थे।मगर आज दुनिया भूल चुकी है उन्हें।वशिष्ठ बाबू पूरी तरह स्वस्थ तो नहीं,पर रिस्पांस कर रहे हैं।
यह सब संभव हो सका है ‘नोबा’ के आर्थिक सहयोग व परिवारवालों की अनवरत सेवा से।
छोटे भाई अयोध्या प्र्रसाद,भतीजे मुकेश और राकेश की देखरेख में वशिष्ठ नारायण सामान्य जीवन की ओर लौट रहे हैं।मेरी भी शुभकामना । उनके सामान्य होने के लिए ईश्वर से प्रार्थना।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें