शर्मिष्ठा मुखर्जी का अर्ध सत्य
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प्रणव मुखर्जी की पुत्री शर्मिष्ठा मुखर्जी के अनुसार
‘‘वी.पी.सिंह ने राजीव गांधी की एस.पी.जी.सुरक्षा हटा ली थी।
उसके बाद की घटना इतिहास है।’’
शर्मिष्ठा ने अर्ध सत्य कहा है।
जानबूझ कर वह यह भूल गर्इं कि 1988 में जो एस.पी.जी.कानून बना,उससे सिर्फ मौजूदा प्रधान मंत्री को ही सुरक्षा मिलनी थी।
संभवतः राजीव गांधी व उनके सलाहकार यह मानते थे कि राजीव गांधी कभी प्रधान मंत्री पद से हटेंगे ही नहीं।
किन्तु जब वी.पी.सिंह ने सत्ता संभाली तो उन्होंने राजीव सरकार के बनाए कानून को लागू भर किया।
वैसे भी वी.पी.सिंह की सत्ता अवधि में राजीव गांधी सुरक्षित भी रहे।
पर, जब कांग्रेस की मदद से चंद्र शेखर की सरकार बनी तो राजीव गांधी की हत्या हो गई।
उससे पहले कई महीने चंद्रशेखर सत्ता में रहे थे।
पर राजीव गांधी या कांग्रेस ने चंद्रशेखर पर इस बात के लिए दबाव नहीं डाला कि
एस.पी.जी.कानून में बदलाव करिए और राजीव परिवार को उसके तहत लाइए।
भले राजीव प्रधान मंत्री रहें या नहीं।
चंद्र शेखर सरकार पर राजीव ने दबाव डाल कर उन्हें इस्त्ीफा देने पर मजबूर किया भी तो उसका कारण दूसरा था।वह कोई देशहित वाला कारण नहीं था।
वह बात आज यहां लिखने लायक भी नहीं है।
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प्रणव मुखर्जी की पुत्री शर्मिष्ठा मुखर्जी के अनुसार
‘‘वी.पी.सिंह ने राजीव गांधी की एस.पी.जी.सुरक्षा हटा ली थी।
उसके बाद की घटना इतिहास है।’’
शर्मिष्ठा ने अर्ध सत्य कहा है।
जानबूझ कर वह यह भूल गर्इं कि 1988 में जो एस.पी.जी.कानून बना,उससे सिर्फ मौजूदा प्रधान मंत्री को ही सुरक्षा मिलनी थी।
संभवतः राजीव गांधी व उनके सलाहकार यह मानते थे कि राजीव गांधी कभी प्रधान मंत्री पद से हटेंगे ही नहीं।
किन्तु जब वी.पी.सिंह ने सत्ता संभाली तो उन्होंने राजीव सरकार के बनाए कानून को लागू भर किया।
वैसे भी वी.पी.सिंह की सत्ता अवधि में राजीव गांधी सुरक्षित भी रहे।
पर, जब कांग्रेस की मदद से चंद्र शेखर की सरकार बनी तो राजीव गांधी की हत्या हो गई।
उससे पहले कई महीने चंद्रशेखर सत्ता में रहे थे।
पर राजीव गांधी या कांग्रेस ने चंद्रशेखर पर इस बात के लिए दबाव नहीं डाला कि
एस.पी.जी.कानून में बदलाव करिए और राजीव परिवार को उसके तहत लाइए।
भले राजीव प्रधान मंत्री रहें या नहीं।
चंद्र शेखर सरकार पर राजीव ने दबाव डाल कर उन्हें इस्त्ीफा देने पर मजबूर किया भी तो उसका कारण दूसरा था।वह कोई देशहित वाला कारण नहीं था।
वह बात आज यहां लिखने लायक भी नहीं है।
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