नदी घाट के लिए तरसती बड़ी आबादी
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घाट पर तीखी ढलान के कारण इस साल भी मेरे गांव में
छठव्रतियों को भारी असुविधा हुई।
बिहार के सारण जिले के दरिया पुर अंचल के भरहा पुर गांव के निकट एक छोटी नदी बहती है।
कुछ साल पहले उस नदी के किनारे सुरक्षा बांध बना दिया गया।बांध ऊंचा है।
बांध में तीखी ढलान है।
बांध बनने से पहले छठ करने में कोई खास दिक्कत नहीं थी।
क्योंकि तब ढलान तीखी नहीं थी।
इस बिगाड़ दिए गए घाट को सुधार देने का कत्र्तव्य भी शासन का ही बनता है।
पर, आज कितने शासक अपने कत्र्तव्यों के प्रति जागरूक हैं ?
बचपन से ही उस घाट को देखता रहा हूं।
आसपास के गांवों के लोग भी वहां छठ करने आते रहे हंै।
इस बीच ग्रामीणों ने कुछ जन प्रतिनिधियों से संपर्क करके उनसे उनके फंड से घाट बनवाने का आग्रह किया।
पर यह काम नहीं हुआ।
दरअसल हमारा वह इलाका मिलीजुली आबादी वाला है।
अपवादों को छोड़ कर आम तौर पर जन प्रतिनिधि
किसी खास जाति -समुदाय की बड़ी आबादी वाले गांवों में ही अपने फंड के जरिए विकास कामों को प्राथमिकता देते हैं ताकि थोड़ी लागत में ही थोक वोट संग्रह की गुंजाइश बन जाए।
पता नहीं, आम लोगों की खास जरुरतों पर कब ध्यान दिया जाएगा ?
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घाट पर तीखी ढलान के कारण इस साल भी मेरे गांव में
छठव्रतियों को भारी असुविधा हुई।
बिहार के सारण जिले के दरिया पुर अंचल के भरहा पुर गांव के निकट एक छोटी नदी बहती है।
कुछ साल पहले उस नदी के किनारे सुरक्षा बांध बना दिया गया।बांध ऊंचा है।
बांध में तीखी ढलान है।
बांध बनने से पहले छठ करने में कोई खास दिक्कत नहीं थी।
क्योंकि तब ढलान तीखी नहीं थी।
इस बिगाड़ दिए गए घाट को सुधार देने का कत्र्तव्य भी शासन का ही बनता है।
पर, आज कितने शासक अपने कत्र्तव्यों के प्रति जागरूक हैं ?
बचपन से ही उस घाट को देखता रहा हूं।
आसपास के गांवों के लोग भी वहां छठ करने आते रहे हंै।
इस बीच ग्रामीणों ने कुछ जन प्रतिनिधियों से संपर्क करके उनसे उनके फंड से घाट बनवाने का आग्रह किया।
पर यह काम नहीं हुआ।
दरअसल हमारा वह इलाका मिलीजुली आबादी वाला है।
अपवादों को छोड़ कर आम तौर पर जन प्रतिनिधि
किसी खास जाति -समुदाय की बड़ी आबादी वाले गांवों में ही अपने फंड के जरिए विकास कामों को प्राथमिकता देते हैं ताकि थोड़ी लागत में ही थोक वोट संग्रह की गुंजाइश बन जाए।
पता नहीं, आम लोगों की खास जरुरतों पर कब ध्यान दिया जाएगा ?
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