नफरतो ,भारत छोड़ो
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‘‘अयोध्या पर फैसले के ठीक एक दिन बाद ‘ईद मिलाद उन नबी’ पर देश के तमाम हिस्सों में निकले जुलूस ए मोहम्मदी में हर तरफ तिरंगे लहराते दिखे।
इनमंे शिरकत कर आपसी भााईचारे की मिसाल पेश करते सभी धर्मों के लोगों की तस्वीरें देख कर सीना गर्व से चैड़ा हो गया।
इसका संदेश यही है कि नफरतो भारत छोड़ो।’’
---समीर अब्बास
इस सकारात्मक माहौल को बिगाड़ने के काम में ओवैसी और हबीबुल्ला जैसे लोग लग गए हैं।
दूसरी ओर, आम लोगों की समझ यह रही है कि
बाबर ने 1526 में राम मंदिर को तोड़ कर अयोध्या में मस्जिद बनवाई थी।
उस अन्याय को सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में समाप्त करके देश मेें
बेहतर माहौल बनाने की कोशिश की है।
ऐसा अधिकार सुप्रीम कोर्ट को संविधान के -142 में हासिल भी है।
उस अनुच्छेद के अनुसार,
‘‘उच्चत्तम न्यायालय अपनी अधिकारिता का प्रयोग करते हुए ऐसी डिक्री पारित कर सकेगा या ऐसा आदेश दे सकेगा ,जो उसके समक्ष लंबित किसी वाद या विषय में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक हो..........।’’
वैसे तो अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय ‘एक बड़ी हद तक पुरातात्विक ऐतिहासिक साक्ष्यों पर आधारित है’, फिर भी
जो उन्हें सबूत नहीं मानते कि अयोध्या में मंदिर ध्वस्त करके बाबरी मस्जिद बनाई गई तो उन्हें वाराणसी के ज्ञानव्यापी मस्जिद की तस्वीर गुगल पर देख लेनी चाहिए।
वहां अब भी भवन के निचले हिस्से में मंदिर का ढांचा और ऊपरी हिस्से में मस्जिद देखने को मिल जाएंगे।
यदि पांच सौ साल पहले की किसी घटना का सबूत आज उपलब्ध नहीं है तो यह नहीं कहा जा सकता कि वह घटना हुई ही नहीं।
अयोध्या की उसी बाबरी मस्जिद के नीचे दबे और उत्खनन से निकले सबूतों के साथ वामपंथी इतिहासकारों ने किस तरह छेड़छाड़ की,वह जानना हो तो 12 नवंबर 2019 के दैनिक जागरण में प्रो.मक्खन लाल का लेख पढ़ लें।
---सुरेंद्र किशोर
12 नवंबर 2019
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