साठ के दशक में अपने गांव में मैंने एक कहावत
सुनी थी।
‘‘लडि़का मालिक बूढ़ दीवान।
ममिला बिगड़े सांझ -बिहान।।’’
यह कहावत कुछ जमींदारों को ध्यान में रख कर परंपरागत विवेक वाले बुजुर्गों ने बनाई थी।
अब आज की राजनीति
पर भी यह लागू हो रही है।
वंशवाद को आगे बढ़ाने के लिए ‘लडि़का’ को दल का मालिक बनाने का खामियाजा कुछ दलों को तो भुगतना ही पड़ रहा है।
आगे-आगे देखिए होता है क्या !!!!!
सुनी थी।
‘‘लडि़का मालिक बूढ़ दीवान।
ममिला बिगड़े सांझ -बिहान।।’’
यह कहावत कुछ जमींदारों को ध्यान में रख कर परंपरागत विवेक वाले बुजुर्गों ने बनाई थी।
अब आज की राजनीति
पर भी यह लागू हो रही है।
वंशवाद को आगे बढ़ाने के लिए ‘लडि़का’ को दल का मालिक बनाने का खामियाजा कुछ दलों को तो भुगतना ही पड़ रहा है।
आगे-आगे देखिए होता है क्या !!!!!
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