रविवार, 24 नवंबर 2019

दलों को क्यांें नहीं सम्मानित किया जाए अच्छे संसदीय आचरण के लिए-सुरेंद्र किशोर



प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को राज्य सभा में दो राजनीतिक दलों की सराहना की।
उन्होंने कहा कि बीजू जनता दल और एन.सी.पी.ने लगातार संसदीय मर्यादा का पालन किया । उनके सदस्य कभी सदन के ‘वेल’ में नहीं गए।
बिहार विधान मंडल का संक्षिप्त सत्र शुरू हो रहा है।
क्या कोई दल यहां भी ऐसी मर्यादा का पालन करेगा ?
लगता तो नहीं है।
पर उम्मीद रखने में क्या हर्ज है ?
यदि कोई दल यह संकल्प करे कि उसके सदस्य कभी सदन के वेल में जाकर हंगामा नहीं करेंगे तो उस दल का सकारात्मक प्रचार होगा।
हंगामा करने वालों को भी प्रचार मिलता है,पर वह नकारात्मक होता है।
  साठ-सत्तर के दशकों में संसद में अनेक प्रतिपक्षी नेता
गण  प्रभावकारी भूमिका निभाते थे।हालांकि वे कभी वेल में नहीं जाते थे।
इन दिनों  अच्छी भूमिका  वाले सदस्यों को सम्मानित किया जाता है।
क्या बीजेडी और एनसीपी को अच्छे संसदीय आचरण के लिए दल के रूप में कभी सम्मानित किया जाएगा ?
     --एन.सी.सक्सेना की किताब-- 
केंद्र में ग्रामीण विकास सचिव रहे एन.सी.सक्सेना की भारतीय प्रशासनिक सेवा की स्थिति पर एक किताब आई है।
 बिहार के आई.ए.एस.अफसरों पर भी उन्होंने 1998 में बहुत ही कड़ा नोट लिखा था।
सक्सेना के अनुसार इस सेवा में भी भ्रष्टाचार प्रवेश कर रहा है।पर स्थिति उतनी खराब नहीं है जितनी कल्पना की जाती है।
वे लिखते हैं कि अब भी 75 प्रतिशत आई.ए.एस.अफसर ईमानदारी से अपना काम कर रहे हैं।
  बिहार के मुख्य सचिव रहे पी.एस.अप्पू ने भी इस राज्य में हुए अपने कटु अनुभवों को लिपिबद्ध किया है।
 यदि वरीय आई.ए.एस.अफसर अपनी सेवा के सदस्यों के बारे में कोई किताब लिखते हैं तो उससे लोगों को इस बात का पता चलता है कि कभी ‘स्टील फ्रेम’ के नाम से चर्चित इस सेवा में कितना जंग या मोरचा लग चुका है।
बिहार के अफसरों के बारे में सक्सेना ने तब लिखा था कि 
‘‘अफसरों में कोई कार्य संस्कृति नहीं है।
जन कल्याण की कोई चिंता नहीं हैे।राष्ट्र के निर्माण की कोई भावना नहीं है।’’..आदि..आदि..।
ऐसे में अनुमान लगा लीजिए  कि सक्सेना की ताजा पुस्तक में कैसी -कैसी बातें होंगी।
   --घुसपैठ की समस्या--
पश्चिम बंगाल की मुख्य मंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि ‘मैं पश्चिम बंगाल में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर तैयार करने की इजाजत नहीं दूंगी।’
 याद रहे कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि अवैध लोगों की पहचान के लिए पूरे देश में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर लागू होगा।
 ममता जी की इस मनाही का कारण अधिकतर लोग जानते -समते हैं।
माना जा रहा है कि ममता जी बंगला देशी घसपैठियों के बीच के अपने वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए  ही  एन.आर.सी.के खिलाफ हैं।
  अब देखिए पश्चिम बंगाल में घुसपैठियों की क्या स्थिति रही है।
  1987 में पश्चिम बंगाल सरकार के पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार उस राज्य में घुसपैठियों की संख्या 44 लाख थी।
1992 में केंद्र सरकार के पास जो
आधार पत्र था,उसके अनुसार पश्चिम बगाल में बंगलादेशियों की संख्या 50 लाख थी।
  आज की संख्या का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है।
   यदि इस संबंध में अदालत का कोई निर्णय होगा,या फिर पश्चिम बंगाल में सरकार अगले चुनाव में बदलेगी तो क्या होगा ? 
    --एक भूली बिसरी याद--
पूर्व प्रधान मंत्री वी.पी.सिंह अपनी एस.पी.जी.सुरक्षा को  वापस
कर देने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक गए थे।
पर वे सफल नहीं हो सके।
क्योंकि तब की केंद्र सरकार उनकी सुरक्षा को वापस लेने के लिए राजी नहीं थी।
 अदालत ने कहा कि इस संबंध में कोई निर्णय सरकार ही करे।
  वी.पी.सिंह समझते थे कि ‘मेरी जान पर कोई खतरा नहीं है।’
  उल्टे उसका उन्हें नुकसान हो रहा था।यह बदनामी हो रही थी  कि उनकी  सुरक्षा पर सरकार बहुत  अधिक खर्च
 कर रही है।
  जीवन के आखिरी वर्षों में वी.पी.सिंह गंभीर रूप से बीमार हो गए थे। इलाज के लिए उन्हें विदेश जाना पड़ता था।
उनके साथ एस.पी.जी.के करीब एक दर्जन सुरक्षाकर्मी विदेश जाते थे।
   एक बार मीडिया में जब यह खबर आई कि वी.पी.सिंह के विदेश में इलाज पर 15 करोड़ रुपए खर्च हुए तो उन्होंने इसका प्रतिवाद करते हुए पत्र लिखा।वी.पी.सिंह ने लिखा कि ‘‘मेरे इलाज पर खर्च को बढ़ा चढ़ा कर बताया जा रहा है।
 1997 में मेरे इलाज पर तथा रहने और विदेश यात्रा पर हुआ कुल खर्च एस.पी.जी.के ग्यारह सदस्यीय दल पर हुए खर्च का सिर्फ दसवां हिस्सा था।
मैंने सरकार से बार -बार एस..पी.जी.सुरक्षा वापस लेने को कहा था। इस मुद्दे पर मैं सुप्रीम कोर्ट भी गया था।पर तत्कालीन सरकार ने मेरी बात नहीं मानी।’ 
       --और अंत में-
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले महीने कहा था कि जल्द ही पुलिस के काम के घंटे तय कर दिए जाएंगे।
उम्मीद है कि गृह मंत्री अपने इस निर्णय को जल्द ही अमली जामा पहनाएंगे।
 यदि काम के घंटे तय हो जाएं और पुलिसकर्मियों के लिए अन्य सरकारी कर्मियों की तरह निर्धारित छुट्टियां भी मिलने लगें तो वे तनावमुक्त होंगे।उससे उनकी कार्य कुशलता भी बढ़ सकती है। 
--22 नवंबर, 2019 को ‘प्रभात खबर’-पटना- में प्रकाशित मेरे काॅलम कानोंकान से।

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