भ्रष्टाचार के बड़े मामलों की सूचना देने पर इनाम का प्रबंध करे सरकार-सुरेंद्र किशोर
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खबर है कि बिहार के सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार पर निगाह रखने के लिए राज्य का निगरानी विभाग वालंटियर तैयार कर रहा है।
इससे बेहतर खबर कोई और नहीं हो सकती।
पर, यदि इसके साथ ही भ्रष्टाचार के बड़े मामलों की सूचना देने पर संबंधित वालंटियर को राज्य सरकार की ओर से अच्छा-खासा इनाम देने का प्रावधान हो जाए तो यह अभियान और भी सफल होगा।
साथ ही,वालंटियर्स को आधुनिक तकनीकी से भी लैस किया जाना चाहिए।जैसे, छिपे हुए कैमरों का प्रबंध हो।
जरुरत पड़े तो पुलिस का सहयोग भी उन्हें मिले।
क्योंकि इन दिनों भ्रष्टाचारी कुछ अािक ही सीनाजोर हो गए हैं।
यदि जन समितियांें के प्रयास से भ्रष्टाचार में कमी आए तो
आम लोगों को बड़ी राहत होगी।भ्रष्टाचार निरोधक अभियानों पर होने वाला कोई भी खर्च सार्थक ही होगा।
आज आम धारणा यह है कि सरकारी दफ्तरों में रिश्वत के बिना आम लोगों का कोई काम ही नहीं होता।
अधिकतर मामलों में यह सिर्फ धारणा नहीं बल्कि तथ्य भी है।
वैसे लगभग पूरे देश की भी यही हालत है।
इसीलिए तो केंद्र सरकार की विभिन्न एजेंसियां इन दिनों जितने बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार विरोधी अभियान चला रही हैं,वह एक रिकाॅर्ड है।
वैसे में बिहार सरकार का भी कुछ कत्र्तव्य बनता है।
लगता है कि उसने अपने कत्र्तव्य पालन की दिशा में ठोस कदम उठा लिया है।
बिहार में कई लोग यह सवाल पूछते हैं कि जब इस राज्य में राजनीतिक कार्यपालिका के शीर्ष पर बैठे दो प्रमुख नेताओं की निजी संपत्ति एकत्र करने में कोई रूचि नहीं है,तो फिर भी बिहार सरकार के दफ्तरों में रिश्वतखोरी कम क्यों नहीं हो रही है ?
इस सवाल का जवाब नहीं मिलता।इसका जो भी कारण हो,उसकी तलाश कर उसे दूर करना ही होगा।
--कैसे बढ़े अदालती सजाओं का प्रतिशत--
आई.पी.सी.और सीआर.पी.सी.में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव का प्रस्ताव है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल में यह संकेत दिया है।
सन 1860 में बने इन कानूनों में समय की जरुरतों के अनुसार बदलाव जरुरी भी है।
अन्य जो बदलाव होने हैं ,वे तो होंगे ही।
पर क्या एक खास संदर्भ
में इन कानूनों में बदलाव की सख्त जरुरत नहीं है ?
सामान्य अपराधों के तहत आरोपितों की सजा का प्रतिशत इस देश में सिर्फ 46 है।
इतना ही नहीं,सिर्फ 6 प्रतिशत आरोपित राजनीतिक नेताओं को ही अभियोजन पक्ष अदालतों से सजा दिलवा पाता है।
आखिर ऐसा क्यों होता है ?
क्या इसको ध्यान में रखते हुए इन कानूनों में संशोधन किया जा सकेगा ताकि सजा का प्रतिशत बढ़े ?
ऐसा क्यों है कि इसी देश के केरल राज्य में कुल आरोपितोें में
से 77 प्रतिशत को सजा मिल जाती है ?केंद्र केरल की इस उपलब्धि का अध्ययन करे।
यह माना जा सकता है कि हम जापान और अमेरिका नहीं बन सकते जहां सजा का प्रतिशत 90 से भी अधिक है।
पर केेरल से तो कुछ सीखा ही जा सकता है।
--भूली-बिसरी याद--
सन 1926 में लाल बहादुर शास्त्री अछूतोद्धार कार्यक्रम के सिलसिले में मेरठ प्रमंडल में रहते थे।
उस कार्यक्रम के सिलसिले में मुजफ्फर नगर जनपद के भैंसी गांव के जसवंत सिंह से शास्त्री जी की घनिष्ठता हो गई।
सन 1965 में जसवंत सिंह प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री से मिलने दिल्ली गए ।
मुलाकात नहीं हो सकी।निजी सचिव ने मिलने नहीं दिया।
लौटकर जसवंत सिंह ने शास्त्री जी को लिखा,
‘अब आपकी -हमारी मित्रता कैसी ?’
शास्त्री जी ने पत्र पढ़ा।
उन्हें बड़ा कष्ट हुआ।
दो -चार दिन बाद ही उन्होंने मुजफ्फर नगर क्षेत्र का कार्यक्रम बनाया।
हेलिकाॅप्टर से भैंसी गांव में उतरे।
सुरक्षाकर्मियों के तमाम बंधनों तथा प्रधान मंत्री पद की मर्यादाओं की चिंता किये बिना वे पुरानी पगडंडियों पर होते हुए सीधे जसवंत सिंह के घर जा पहुंचे।
उन्होंने पहंुचते ही अपने पुराने दोस्त से कहा,‘‘साग रोटी खाने का तो समय नहीं है।
एक गिलास मट्ठा पिलवाओ।
सुरक्षा अधिकारी के हिचकिचाने पर प्रधान मंत्री ने कहा कि ‘भाई, इस घर का मट्ठा हमेशा मेरे लिए अमृत के समान रहा है।
इस कमरे में बैठकर मैंने न जाने कितनी बार मट्ठे के साथ साग -रोटी खाई है।’
शास्त्री जी की सादगी देखकर जसवंत और उनके परिवार के सदस्यों की आंखों में आंसू आ गए।
--और अंत में--
भाजपा ने महाराष्ट्र में गैर मराठा और हरियाणा में गैर जाट समुदाय से मुख्य मंत्री बना कर एक राजनीतिक प्रयोग किया था।
भाजपा का यह प्रयोग महाराष्ट्र में तो सफल रहा,पर हरियाणा में विफल हो गया।
उम्मीद है कि आगे ऐसा प्रयोग करने से पहले भाजपा सावधानी बरतेगी।
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25 अक्तूबर, 2019 के ‘प्रभात खबर,’पटना में प्रकाशित मेरे काॅलम कानोंकान से ।
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