शुक्रवार, 15 मार्च 2019

 26 मइर्, 1953 को बेगूसराय में एक रैली हो रही थी।
फाॅरवर्ड कम्युनिस्ट पार्टी के नेता केदार नाथ सिंह रैली को संबांधित कर रहे थे।
रैली में सरकार के खिलाफ अत्यंत कड़े शब्दों का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने कहा कि 
‘सी.आई.डी.के कुत्ते बरौनी में चक्कर काट रहे हैं।
कई सरकारी कुत्ते यहां इस सभा में भी हैं।जनता ने अंगे्रजों को यहां से भगा दिया।
कांग्रेसी कुत्तों को गद्दी पर बैठा दिया।
इन कांग्रेसी गुंडों को भी हम उखाड़ फकेंगे।’
   ऐसे उत्तेजक व अशालीन भाषण के लिए बिहार सरकार ने केदारनाथ सिंह के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा दायर किया।
केदारनाथ सिंह ने हाईकोर्ट की शरण ली।
हाईकोर्ट ने उस मुकदमे की सुनवाई पर रोक लगा दी।
बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई।
सुप्रीम कोर्ट ने आई.पी.सी.की राजद्रोह से संबंधित धारा  
को परिभाषित कर दिया।
  20 जनवरी, 1962 को मुख्य न्यायाधीश बी.पी.सिन्हा की अध्यक्षता वाले संविधान पीठ ने कहा कि ‘देशद्रोही भाषणों और अभिव्यक्ति को सिर्फ तभी दंडित किया जा सकता है,जब उसकी वजह से किसी तरह की हिंसा असंतोष या फिर सामाजिक असंतुष्टिकरण बढ़े।’
 चूंकि केदारनाथ सिंह के भाषण से ऐसा कुछ नहीं हुआ था,इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने केदारनाथ सिंह को राहत दे दी।
   अब इस जजमेंट को जेएनयू के केस से जोड़कर देखें।
 कुछ लोग वहां 9 फरवरी 2016 को अफजल गुरू का फांसी दिवस मना रहे थे।
 उसमें देशद्रोही नारे लग रहे थे,ऐसा आरोप लगाते हुए दिल्ली पुलिस ने कन्हैया कुमार तथा 9 अन्य लोगों के खिलाफ अदालत में आरोप पत्र दाखिल कर दिया है।पर अरविंद केजरीवाल सरकार अभियोजन चलाने की अनुमति नहीं दे रही है।
केजरीवाल सरकार का कहना है कि यह राजद्रोह का केस नहीं बनता।
  संभवतः यह मामला कभी सुप्रीम कोर्ट में जाए तो वह 1962 के जजमेंट की कसौटी पर कस कर इस मामले को देख सकता है।क्या अफजल जैसे राजद्रोही घर घर  पैदा करने की कामना करने वालों पर राजद्रोह का मुकदमा नहीं चलेगा ?
क्या अफजल जैसे देशद्रोही के साथ एकजुटता दिखाना राजद्रोह की श्रेणी में नहीं आता ?
इस बीच यह खबर आई है कि कांग्रेस के  चुनाव घोषणा पत्र के मसविदे में  कहा गया है कि हम सत्ता में आएंगे तो 
राजद्रोह के कानून को रद कर देंगे।यदि फाइनल घोषणा पत्र में यह बात आ गई तो उससे अफजल गुरू के भारतीय प्रशंसकों को अपार खुशी नहीं होगी।
भाजपा को भी खुशी होगी क्योंकि उसको चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ एक और संवेदनशील मुद्दा मिल जाएगा।
 याद रहे कि 11 सितंबर, 2001 को ओसामा बिन लादेन ने अमेरिका के विश्व व्यापार केंद्र पर विमान से हमला करवाया था।
उस घटना के बाद अमेरिका सहित कई देशों की सरकारों ने अपने यहां 
के आतंक विरोधी कानूनों को और कड़ा बनाया।
इस देश में 2002 में पोटा कानून बना था।
पर, मनमोहन सिंह की सरकार ने 2004 में सत्ता में आने के
तत्काल बाद पोटा कानून को समाप्त कर दिया।
पोटा के कारण अनेक राष्ट्रद्रोहियों को कोर्ट से सजा दिलवाने में सुविधा होती  थी।  
  अब कांग्रेस कह रही है कि सत्ता में आने के बाद हम राजद्रोह के कानून को ही खत्म करेंगे।
  यदि ऐसा हुआ था तो कुछ अन्य लोगों को विश्वविद्यालयों में घूम घूम कर यह नारा लगाने में सहूलियत हो जाएगी--
‘भारत तेरे टुकड़े होंगे,इंशा अल्ला, इंशा अल्ला !
कितने अफजल मारोगे,घर-घर से अफजल निकलेगा।’
2001 में लश्कर ए तोयबा और जैश ए मोहम्मद ने मिलकर भारतीय संसद पर हमला करवाया  था।
उसका एक लश्कर अफजल गुरू भी था।
जब कभी हर घर से अफजल निकलेगा,जैसे  नारे लगाने की छूट मिल जाएगी तो उससे प्रेरित होकर न जाने कितने अफजल तैयार हो जाएंगे और न जाने और कितनी बार संसद पर हमला करने वाले लश्कर तैयार होते रहेंगे।
मौजूदा समय में जो दूसरे देसी-विदेशी ‘अफजल’ इस देश को तोड़ने की कोशिश में हर पल लगे हुए हैं,उन्हें ऐसे नारों से प्रोत्साहन नहीं मिलेगा ? 

  


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