सोमवार, 18 मार्च 2019

काश ! 1971 के बाद इस देश के अब तक के आधे मुख्य मंत्री भी रुपए-पैसे के मामले में मनोहर परिकर और कर्पूरी ठाकुर जितने ईमानदार होते।
  मैंने 1971 इसलिए लिखा क्योंकि यह वही समय है जब भष्टाचार ने सरकारों में संस्थागत रूप लेना शुरू कर दिया था।

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