शुक्रवार, 29 मार्च 2019

 चुनाव के बीच चाणक्य
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न दुर्जनः साधुदशामुपैति बहु 
प्रकारैरपि  शिक्ष्यमाणः।
आमूलसिक्तं पयसा घृतेन 
न निम्बवृक्षोः मधुरत्वमेति।।
             ..........चाणक्य

यानी,‘दुष्ट को सज्जन नहीं बनाया जा सकता।
दूध और घी से नीम को जड़ से चोटी तक सींचे 
जाने पर भी नीम का वृक्ष मीठा नहीं बनता।’

मौजूदा संदर्भ-दुष्ट लोगों को अपना बहुमूल्य वोट 
देकर उन्हें और अधिक दुष्ट बनने का अवसर न दें।
यदि दो दुष्टों में ही चुनना पड़े तो जो उम्मीदवार या 
दल अपेक्षाकृत बेहतर है,उसे वोट दे सकते हैं।



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