शनिवार, 23 मार्च 2019

 जब कभी मैं अपना एक मन पसंद चैनल लगाता हूं 
तो मेरी साढ़े पांच साल की पोती कहती है कि 
‘बाबा, इसे बंद कीजिए।यह बहुत चिल्लाता है।
मेरा कान दर्द करने लगता है।’
 मैं उसे क्या जवाब दूं ?
कुछ समझ में नहीं आता।
बच्चे के सामने हमपेशा की शिकायत भी तो कर नहीं सकते !
पर, किसी का चिल्लाना तो मुझे भी ठीक नहीं लगता।
पर, चिल्लाहटों के बीच जितनी कुछ बातें समझ में आ पाती हंै, उनसे लगता है कि वह चैनल बात तो पते की करता है।
वैसे पते की बात भी तो शालीनता से और बारी -बारी से बोल कर भी की ही जा सकती है।
पर, उन्हें कौन समझाए !
अधिकतर चैनल वाले तो आज खुद को ‘अर्ध देव’ से कम  समझते ही नहीं।
लगता है कि सरकार या प्रतिपक्ष को यानी कुल मिला कर देश को वही लोग चला रहे हैं।
अपने अतिथियों के साथ मिलकर हर शाम एक साथ कई -कई तेज आवाजों के साथ इतना अधिक शोरगुल @वैसे शोरगुल जैसा शालीन शब्द उस दृश्य को सही ढंग से चित्रित  नहीं करता।@ करते हैं कि शायद ही किसी श्रोता के पल्ले कुछ पड़ता है।
आखिर ऐसा कार्यक्रम ही क्यों जिसे ठीक से सुना तक न जा सके ! समझ में आने का तो सवाल ही नहीं है। 
क्या आपके पल्ले कुछ पड़ता है ?

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