मंगलवार, 12 मार्च 2019

इन दिनों इस देश के बैंक सर्विस चार्ज के नाम पर 
उपभोक्ताओं का खूब दोहन कर रहे हैं।
 सीमित आय वाला  एक नौजवान इसको लेकर भारी गुस्से में रहता है।शायद इसी कारण वह गैर राजनीतिक युवक नरंेद्र मोदी के खिलाफ हो गया है।
  पता नहीं, दोहन की ऐसी खबरें प्रधानमंत्री तक पहुंचती भी है या नहीं ! मुझे भी सर्विस चार्ज कुछ ज्यादा ही लगता है।
  वैसे वह तो नौजवान है।गुस्सा जायज है।
एक अति बुजुर्ग को एक अत्यंत मामूली बात को लेकर मुख्य मंत्री का विरोधी होते देखा।पहले वे भारी समर्थक थे।
वे रोज बिहार विधान परिषद के स्मोकिंग रूम में बैठते थे।
अब दिवंगत हो चुके हैं।
 कई साल पहले की बात है।एक दिन वे रिक्शे से सिंचाई भवन की ओर से सचिवालय में प्रवेश करने लगे।संतरी ने उन्हें रोक दिया।
  फिर क्या था ! वे आग बबूला हो गए।स्मोकिंग रूम  लौट आए।
उसके बाद लगातार मुख्य मंत्री की बात -बात में आलोचना करने लगे।
बैंकों के अतिशय सर्विस चार्ज के लिए भले आप प्रधान मंत्री को परोक्ष रूप से जिम्मेदार मान लेंं, पर क्या कोई मुख्य मंत्री ने  संतरी को ऐसा आदेश दे सकता है कि फलां नेता जी का रिक्शा भीतर जाने नहीं देना ?
 इस बहाने एक अंतिम किन्तु  महत्वपूर्ण जानकारी।
    आजादी हुई ही थी।उन दिनों गांधी जी पटना में ही थे।
जमशेद पुर के एक बहुत बड़े नेता उनसे मिलने सड़क मार्ग से 
पटना आ रहे थे।
गांधी जी समय के बड़े पाबंद थे।यह बात उस नेता को मालूम थी।
  पर दुर्भाग्य यह हुआ कि फतुहा के पास रेलवे क्रासिंग का फाटक बंद था।
टे्रन आने ही वाली थी।जहां तहां सांप्रदायिक दंगे हो रहे थे।गोरखा सिपाहियों का जहां  पहरा था।
   नेता जी ने फाटक खोल देने के लिए कहा।गोरखा  तैयार नहीं हुआ।
नेता जी अत्यंत गुस्सेल थे।उन्होंने गोरखा को एक थप्पड़ कस कर मार दिया।उसने उन्हें गोली मार दी।
नेता जी का निधन हो गया।
बाद में यह खूब प्रचार हुआ कि इसमें राज्य के एक बहुत बड़े सत्ताधारी नेता का हाथ था।
 उस नेता जी के निजी सचिव रहे एक बंगाली बाबू  बहुत बाद में कहीं मिले थे।उन्होंने ही मुझसे कहा कि वे बड़े गुस्सेल थे।  
    

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