भाजपा नेता सरयू राय ने एक बार कहा था कि ‘मैं कई बार बहस हार जाता हूं,पर दोस्त नहीं।’
अभी देश में राजनीतिक तथा अन्य तरह का जो माहौल है,उसमें बहस में जीतने की कोशिश में दोस्त हार जाने या खो देने का खतरा बढ़ गया है।
सोशल मीडिया ने इसमें भारी इजाफा कर दिया है।
सरयू राय तो एक पार्टी के बड़े नेता हैं।फिर भी उन्हें दोस्त के खोने की आशंका रहती है। सही भी है ।
नाहक क्यों खोया जाए ! उससे हासिल क्या होना है !
पर, जिन्हें न तो किसी पार्टी से कोई संबंध है और न किसी ‘सरकारी परसादी’ की प्रत्याशा , उन्हें तो बहस में जीतने के चक्कर में दशकों पुराने दोस्त को नहीं ही खोना चाहिए !
अन्यथा, बाद में अधिक नहीं, तो थोड़ा पछतावा तो होगा ही।
अभी देश में राजनीतिक तथा अन्य तरह का जो माहौल है,उसमें बहस में जीतने की कोशिश में दोस्त हार जाने या खो देने का खतरा बढ़ गया है।
सोशल मीडिया ने इसमें भारी इजाफा कर दिया है।
सरयू राय तो एक पार्टी के बड़े नेता हैं।फिर भी उन्हें दोस्त के खोने की आशंका रहती है। सही भी है ।
नाहक क्यों खोया जाए ! उससे हासिल क्या होना है !
पर, जिन्हें न तो किसी पार्टी से कोई संबंध है और न किसी ‘सरकारी परसादी’ की प्रत्याशा , उन्हें तो बहस में जीतने के चक्कर में दशकों पुराने दोस्त को नहीं ही खोना चाहिए !
अन्यथा, बाद में अधिक नहीं, तो थोड़ा पछतावा तो होगा ही।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें