बुधवार, 13 मार्च 2019

  कांग्रेस ने पहले दिल्ली और बाद में पंजाब में आम आदमी पार्टी  से चुनावी तालमेल करने से इनकार कर दिया है।
पंजाब से 2014 में ‘आप’ के चार सांसद चुने गए थे।
यानी ‘आप’ कांग्रेस को वहां लाभ पहुंचाने की स्थिति में है। 
फिर भी तालमेल न करने का आखिर क्या कारण है ?
2016 में जेएनयू परिसर में  अफजल गुरू के ‘फांसी दिवस’ पर राष्ट्र विरोधी नारे लगाए गए थे।
नारे लगे थे --
 भारत तेेरे टुकड़े होंगे।
कितने अफजल मारोगे,
घर -घर से अफजल निकलेगा।
और भी उत्तेजक नारे।
इस  ‘टुकडे -टुकड़े गिरोह’ के खिलाफ मुकदमा शुरू हुआ।
कोर्ट में मामला गया।पर मुकदमा चलाने की अनुमति ‘आप’ की दिल्ली सरकार ने अब तक नहीं दी है।
‘आप’ विरोधियों का आरोप है कि आप की सहानुभूति राष्ट्रद्रोहियों के साथ है।
‘आप’ का तर्क  है कि राष्ट्रद्रोह का कोई केस ही नहीं बनता।
  क्या ‘आप’ से कांग्रेस का चुनावी तालमेल न करने का यही अघोषित कारण है ?
  दिल्ली में तालमेल न होने का सीधा फायदा भाजपा को मिल सकता है।
 पर दूसरी ओर अफजल गिरोह के समर्थकों -प्रशंसकों से एकजुटता दिखाने का नुकसान किसी दल को  पूरे देश में हो सकता है।वह अधिक नुकसानदेह साबित हो सकता है।
क्योंकि वैसे तालमेल से भाजपा के पास कांग्रेस के खिलाफ एक और बड़ा नारा मिल जाएगा।वैसे भी अभी देश में अघोषित युद्ध का माहौल है।
लगता है कि कांग्रेस ने कम से कम इस मामले में होशियारी दिखाई है।ऊपर से देखने से तो यही लग रहा है।पर, पता नहीं भीतरी बात क्या है !

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