रविवार, 17 मार्च 2019

एक ऐसी चिट्ठी जो अब नहीं लिखी जाती !
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 इंदिरा गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने के निर्णय के खिलाफ कांग्रेस एम.पी. महावीर त्यागी ने 1959 में जवाहर लाल नेहरू को कड़ा पत्र लिखा था।
याद रहे कि 1957 में कुछ लोगों ने बिहार के मुख्य मंत्री डा.श्रीकृष्ण सिंह से आग्रह किया था कि वे अपने पुत्र शिव शंकर सिंह को विधान सभा का उम्मीदवार बनने की अनुमति दें।
डा.सिंह ने कहा कि तो फिर मैं चुनाव नहीं लड़ूंगा।क्योंकि एक परिवार से एक ही व्यक्ति को चुनाव लड़ना चाहिए।
  1980 में कर्पूरी ठाकुर से उनके दल के एक बड़े नेता ने कहा था कि आप @अपने पुत्र@ राम नाथ ठाकुर को विधान सभा का चुनाव लड़ने से मत रोकिए।कर्पूरी जी ने भी वही कहा था कि जो श्रीबाबू ने कभी कहा था।
बिहार के ये दोनों नेता जानते थे कि वंशवाद की तथा उससे जुड़ी हुई और क्या-क्या  बुराइयां हैं।उन्हें यह आशंका थी कि बुराई एक दिन देश को रसातल में ले जा सकती है।
आज उनकी आशंका सही साबित हो रही है।
   जवाहर लाल नेहरू की सहमति से इंदिरा गांधी 1959 में कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्षा बना दी गईं।
आजाद भारत में वंशवाद की वह ठोस व मजबूत शुरूआत थी। 
 कालक्रम में देश के  अन्य अनेक नेताओं  को उससे प्रेरणा मिली।
आचार्य व्यास ने पुराण में लिखा है कि 
‘महाजनो येन गतः स पन्थाः।’
क्या उम्मीद करते थे  ? नेता लोग नेहरू के सिर्फ ‘वैज्ञानिक सोच’ व ‘आइडिया आॅफ इंडिया’ वाले विचार को ही फाॅलो करेंगे ? वंशवाद को नहीं ?
वंशवाद व उसी से जुड़े  जातिवाद के साथ कई अन्य बुराइयां भी अब सामने आई हैं।आज देश का कौन वंशवादी नेता है जो भ्रष्ट व जातिवादी भी नहीं है ?
 हो सकता है कोई हो ! पर मुझे नहीं मालूम।आपको मालूम हो तो जरूर बताइएगा।
हालांकि यहां यह नहीं कहा जा रहा है कि जो वंशवादी नहीं है,वह भ्रष्ट नहीं है।
आज तो स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि देश के अनेक वंशवादियों और परिवारवादियों के अयोग्य, अपात्र  व बकलोल संतान व परिजन  अगले चुनाव के जरिए ंइस देश की सत्ता पर कब्जा कर इस देश का बंटाढार करने पर अमादा हैं।
 यह और बात है कि नेताओं के सारे उत्तराधिकारी अपात्र ही नहीं हैं।
कुछ योग्य भी हैं।
पर, अपवाद स्वरूप ही।क्या अपवादों से देश चल सकेगा  ?
      नेहरू के नाम महावीर त्यागी की वह अभूतपूर्व चिट्ठी 
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  1959 में तो महावीर त्यागी जैसे पूर्व सैनिक व स्वतंत्रता सेनानी मौजूद थे जो वंशवाद के खिलाफ जवाहर लाल नेहरू जैसी हस्ती को भी देशहित में अत्यंत  कड़ी चिट्ठी लिख सकते थे।आज त्यागी जैसा कोई बहादुर नजर ही नहीं आ रहा है।यह देश का अधिक बड़ा दुर्भाग्य है। 
  कोई पत्रकार या लेखक इस बुराई की ओर इंगित भी करता है तो कुछ लोग उसे मोदी का सेवादार तक बताने लगते हैं।वे नहीं जानते कि देश के इतिहास के इस नाजुक दौर में वे क्या कर रहे हैं !
ईश्वर उन्हें माफ करें !
 अब पूर्व केंद्रीय मंत्री दिवंगत त्यागी जी का पत्र 
पढि़ए--
 प्रिय जवाहरलाल जी,
 मैं जानता हूं कि इस चिट्ठी के बाद मेरा कांग्रेस में रहना कठिन हो जाएगा।पर अपने स्वभाव@स्पष्टवादिता@को बेच कर कांग्रेस में रहा भी तो क्या ?
मेरी हैयित उन जैसी हो जाएगा जो मैत्री का व्यवसाय करते हैं।गोस्वामी तुलसी दास आपके लिए एक दोहा कह गए हैं--
‘सचिव, वैद्य, गुरु तीनि जौं, प्रिय बोलहिं भय आस,
राज , धर्म तन तीनि का, होइ बेगिही नास।’
    चारों ओर खुशामद ही खुशामद !
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 जब किसी के चारों ओर खुशामद ही खुशामद होने लगती है तो उस बेचारे को अपनी सूझबूझ और बुद्धि पर अटूट अंध विश्वास हो जाता है,यही कारण है कि आजकल आपके भाषणों में अधिकाधिक तीखापन झलक रहा है।विरोधी गलत भी हों तो क्या ?
प्रजातंत्र में उनका भी स्थान है।क्योंकि विरोधी मत द्वारा हम अपने विचारों की उचित जांच और छानबीन कर सकते हैं।
  यदि बुरा न मानो तो मैं आपको यह तहरीर देना चाहता हूं कि आपके दरबारियों ने केवल निजी स्वार्थवश आपके चारों ओर खुशामद के इतने घनघोर बादल घेर दिए हैं कि आपकी दृष्टि धुंधला गई है।
और अब समय आ गया है कि आप अपने इन चरण -चुम्बकों से सचेत हो जाओ।
वर्ना आपकी मान, मर्यादा ,सरकार और पार्टी सबका ह्ास होने जा रहा है।
  त्यागी जी ने लिखा कि ‘जैसे कि मुगलों के जमाने में मंत्रिगण नवाबों के बच्चों को खिलाया करते थे,उसी तरह आपकी आरती उतारी जा रही है और आपके इन भक्तों ने 
@शायद ‘मोदी भक्त’ मुहावरे का स्त्रोत यहीं है।@इसी प्रकार आपकी भोली -भाली इंदु का नाम कांग्रेस प्रधान पद के लिए पेश किया है और शायद आपने आंख मींच कर इसे स्वीकार भी कर लिया है।
  इंदु मेरी बेटी समान है।उसका नाम बढ़े ,मान बढ़े इसकी मुझे खुशी है।पर उसके कारण आप पर किसी प्रकार का कोई हर्फ आवे सो मुझे स्वीकार नहीं है।
मैं नाग पुर ,हैदराबाद,मद्रास,मैसूर और केरल का भ्रमण करके अभी लौटा हूं।वहां के कांग्रेस वाले क्या  टिप्पणी करते हैं आपको उसकी इत्तला नहीं है।
 इस खयाल में मत रहना कि इंदु के प्रस्तावकों और समर्थकों में जो होड़ हो रही है@कि उनका नाम भी छप जाए@यह केवल इंदु के व्यक्तित्व के असर से है।
 सौ फीसदी यह आपको खुश करने के लिए किया जा रहा है।
 इतनी छोटी-सी  बात को यदि आप नहीं समझ सकते तो मैं कहूंगा कि आपकी आंखों पर परदे पड़ गए हैं,परदे ।
मैं यह पत्र इतना कटु इसलिए लिख रहा हूं कि आंख के परदे केवल फिटकरी से कटते हैं।फिटकरी तो बेचारी घिस कर गल घुल जाती है।यह समझ लो कि अब कांग्रेस में पदलोलुपता और व्यक्तिवाद का ऐसा वातावरण छा गया है कि मुझे दो ऐसे व्यक्ति बता दें कि जो मित्र हों और आपस में दिल खोल कर बातें कर सकते हों।
  सपना टूट कर छिन्न -भिन्न
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इस बात को मान लो कि अब वह पुराना मुश्तरका सपना कि जिसमें हर रंग भरने वाले को हम हृदय से लगाते थे,टूटकर छिन्न भिन्न हो चुका है।अब हमारी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के सपने अलग- अलग हैं, और उन्हीं के पीछे हम दौड़ रहे हैं।
इसी को व्यक्तिवाद कहते हैं।
  कांग्रेस यानी सरकार- पुत्री पार्टी !
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ऐसे वातावरण में भय, स्वार्थ और संदेह की मनोवृत्ति होना अनिवार्य है।
    आज जबकि शासन का ढांचा ढीला पड़ चुका है,रिश्वत और चोरबाजारी का बोलबाला है,साथियों में ‘वह काटा,’ ‘वह मारा’ वाले पतंगबाजी के नारे लग रहे हैं,जबकि अधिकांश नेतागण मिनिस्ट्री, लोक सभा और विधान सभाओं की मेम्बरी कर रहे हों ,और केवल चार आने वाले साधारण सदस्य मंडलों में रह गए हों,ऐसे में जर्जरित ढांचे को इंदु बेचारी कैसे संभाल सकेगी ?
अभी तक लोग आपको यह कह कर क्षमा कर देते थे कि बेचारा जवाहर लाल क्या करे,उसे सरकारी कामों से फुर्सत नहीं है।
 कांग्रेस ठीक करने की जिम्मेदारी ढेबर भाई की है।
इंदु के चुने जाने  से वह सुरक्षा युक्ति यानी सेफ्टी वाॅल्व भी हाथ से निकल जाएगी।लोग कांग्रेस संस्था को सरकार-पुत्री कहने लगेंगे।
  इसलिए मेरी राय है कि इंदु को प्रधान चुने जाने से रोको।
या फिर आप प्रधान मंत्री पद से अलग होकर इंदु की मार्फत कांग्रेस का संगठन मजबूत कर लो।
आपके बाहर आने से केंद्रीय सरकार वैसे तो कमजोर हो जाएगी,पर आपके द्वारा जनमत इतनी शक्ति प्राप्त कर लेगा कि प्रांतीय सरकारें भी आपके डर से ठीक-ठीक कार्य कर सकेंगी और कांग्रेस के साधारण कार्यकत्र्ताओं को आपसे बहुत बल मिलेगा।
  स्वतंत्र बहस के प्रति असहिष्णुता ! 
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केंद्रीय शासन भी अधिक सचेत होगा।पार्लियामेंट्री कांग्रेस पार्टी भी ,जो आज आपके बोझ से इतनी दब गई है कि बावजूद कोशिशों के लोग स्वतंत्रतापूर्वक किसी भी विषय पर बहस करने को तैयार नहीं होते,आपके बाहर चले जाने से उसमें जान आएगी।और शायद यही एक ढंग हो सके ,जिससे बिना अधिक पैसा खर्च किए और बिना पूंजीपतियों से सहायता मांगे ,कांग्रेस फिर से बहुमत से चुनी जाकर प्रांतीय और केंद्रीय शासन को संभाल ले।
  अंत में, त्यागी ने लिखा कि नाग पुर कांग्रेस ने जो समाजवाद की ओर कदम बढ़ाया है, उससे कांग्रेस को बड़े -बड़े प्रभावशाली तबकों से मोर्चा लेना पड़ेगा।
इसके लिए भी अभी से तैयारियां करनी चाहिए।
मेरी आपसे अपील है कि आप कोई ढंग ऐसा निकालिए कि जिससे इस विलासिता और अकर्मण्यता के वातावरण से देश को निकाल कर फिर से त्याग और जन सेवा की भावना जागृत कर सकें।
  गांधी जी के बनाए हुए उस पुराने वातावरण को बिगाड़ने की जिम्मेदारी भी हमारी ही है।इसलिए हमीं को उसे फिर से फैलाना होगा।
यह काम कोरी दिल्ली की दलीलों से नहीं हो सकता।इसके लिए दिल की प्रेरणा चाहिए।माफ करना,मैंने अटरम शटरम जो कलम से आया, लिख दिया है।पर बिना यह लिखे मुझे 15 दिन से नींद नहीं आ रही थी।अब इस पत्र को तकिए के नीचे रख कर दो चार दिन सोऊंगा।ईश्वर आपको दीर्घायु दे।बंदा तो इस वातावरण में ज्यादा  दिन टिक न सकेगा।
        आपका,  महावीर त्यागी--1 फरवरी 1959
@ अपने जमाने की त्यागी जी की चर्चित
पुस्तक ‘आजादी का आन्दोलन हंसते हुए आंसू ’ से @     
  

    

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