बंगला देश युद्ध का कांग्रेस ने उठाया था चुनावी लाभ
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पाकिस्तान के साथ तनावपूर्ण माहौल पर कल कांग्रेस सहित 21 प्रतिपक्षी दलों ने कहा कि ‘इसमें राजनीतिक लक्ष्यों की पूत्र्ति का कोई स्थान नहीं हो सकता है।सरकार सैनिक शहादतों का राजनीतिकरण न करे।’
पर, सवाल है कि खुद कांग्रेस ने 1971-72 में क्या किया था ?
उन दिनांे तो लोगों ने देखा कि किस तरह कांग्रेस ने सैनिकों की शहादत को वोट में बदला था।
यहां तक कि उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्य मंत्री व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के विरोध के बावजूद वहां भी विधान सभा का समय से पहले चुनाव करवा दिया गया था।
ताकि, राष्ट्रभक्ति की भावना का चुनावी लाभ जल्द से जल्द उठाया जा सके।समय बीत न जाए और भावना कमजोर न हो जाए !
वैसे भी युद्ध में किसी दल की जब सरकार जीतती है तो उसका चुनावी लाभ तत्कालीन सत्ताधारी पार्टी को मिलता ही है।
द्वितीय विश्व युद्ध में विजय के बाद विंस्टन चर्चिल की सत्ताधारी पार्टी जरूर इसका अपवाद साबित हुई थी।
यदि तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने बंगला देश युद्ध मंे विजय का 1972 के विधान सभाओं के चुनाव में जान बूझकर योजनाबद्ध ढंग से इस्तेमाल नहीं भी किया होता तौभी उसका लाभ उन्हें मिलता।
क्योंकि तब यह आम धारणा थी कि उन्होंने उचित अवसर पर देश हित में समुचित साहस का परिचय दिया था।
पर,युद्ध में विजय का चुनावी लाभ सार्वजनिक रूप से उठाने की कोशिश का लोभ उन्होंने भी संवरण नहीं किया था। भारत-पाकिस्तान के बीच अभी जो द्वंद्व चल रहा है,उसका नतीजा यदि अंततः भारत के पक्ष में सकारात्मक हुआ और होगा ही ,तो उसका चुनावी लाभ भी नरेंद्र मोदी के राजग को मिलेगा ही,चाहे मोदी उसका लाभ उठाने की कोशिश करेंं या नहीं।
पर कांग्रेस चाहती है कि सारा श्रेय भारतीय सेना को मिले और नरेद्र मोदी को उसका कोई चुनावी लाभ न मिले।
जरा याद कर लें 1972
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इस पृष्ठभूमि में 1972 की घटना को याद कर लेना मौजूं होगा।
1971 में पूर्वी पाकिस्तान को लेकर भारत-पाक युद्ध हुआ था।
पाक सेना को 16 दिसंबर, 1971 को सरेंडर करना पड़ा।
उस पर देश-विदेश में इंदिरा सरकार की काफी वाहवाही हुई।
अटल बिहारी वाजपेयी ने सार्वजनिक रूप से इंदिरा गांधी को बधाई दी थी।
अटल जैसी उदारता आज के प्रतिपक्ष में नहीं है।
1972 के प्रारंभ में देश के कई राज्यों में एक साथ विधान सभाओं के चुनाव हुए थे।उस चुनाव से ठीक पहले प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने मतदाताओं के नाम अलग से एक चिट्ठी प्रसारित की थी।वह कई भाषाओं में अनुदित की गयी।
उस चिट्ठी में लिखा गया था कि ‘ देशवासियों की एकता और उच्च आदर्र्शों के प्रति निष्ठा ने हमें युद्ध में जिताया।अब उसी लगन से हमें गरीबी हटानी है।इसके लिए हमें विभिन्न प्रदेशों में ऐसी स्थायी सरकारों की जरूरत है जिनकी साझेदारी केंद्रीय सरकार के साथ हो सके।’
साप्ताहिक पत्रिका ‘दिनमान’@5 मार्च 1972 @ ने इस संबंध में लिखा था कि ‘ जहां तक कांग्रेस के चुनाव घोषणा पत्र का संबंध है,उसने यह बात छिपाने की कोशिश नहीं की है कि भारत -पाक युद्ध में भारत की विजय श्रीमती इंदिरा गांधी के सफल नेतृत्व का प्रतीक है और श्रीमती गांधी के हाथ मजबूत करने के लिए विभिन्न प्रदेशों में अब कांग्रेस की ही सरकार होनी चाहिए।’
@--कानोंकान-प्रभात खबर-बिहार-1 मार्च 2019@
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पाकिस्तान के साथ तनावपूर्ण माहौल पर कल कांग्रेस सहित 21 प्रतिपक्षी दलों ने कहा कि ‘इसमें राजनीतिक लक्ष्यों की पूत्र्ति का कोई स्थान नहीं हो सकता है।सरकार सैनिक शहादतों का राजनीतिकरण न करे।’
पर, सवाल है कि खुद कांग्रेस ने 1971-72 में क्या किया था ?
उन दिनांे तो लोगों ने देखा कि किस तरह कांग्रेस ने सैनिकों की शहादत को वोट में बदला था।
यहां तक कि उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्य मंत्री व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के विरोध के बावजूद वहां भी विधान सभा का समय से पहले चुनाव करवा दिया गया था।
ताकि, राष्ट्रभक्ति की भावना का चुनावी लाभ जल्द से जल्द उठाया जा सके।समय बीत न जाए और भावना कमजोर न हो जाए !
वैसे भी युद्ध में किसी दल की जब सरकार जीतती है तो उसका चुनावी लाभ तत्कालीन सत्ताधारी पार्टी को मिलता ही है।
द्वितीय विश्व युद्ध में विजय के बाद विंस्टन चर्चिल की सत्ताधारी पार्टी जरूर इसका अपवाद साबित हुई थी।
यदि तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने बंगला देश युद्ध मंे विजय का 1972 के विधान सभाओं के चुनाव में जान बूझकर योजनाबद्ध ढंग से इस्तेमाल नहीं भी किया होता तौभी उसका लाभ उन्हें मिलता।
क्योंकि तब यह आम धारणा थी कि उन्होंने उचित अवसर पर देश हित में समुचित साहस का परिचय दिया था।
पर,युद्ध में विजय का चुनावी लाभ सार्वजनिक रूप से उठाने की कोशिश का लोभ उन्होंने भी संवरण नहीं किया था। भारत-पाकिस्तान के बीच अभी जो द्वंद्व चल रहा है,उसका नतीजा यदि अंततः भारत के पक्ष में सकारात्मक हुआ और होगा ही ,तो उसका चुनावी लाभ भी नरेंद्र मोदी के राजग को मिलेगा ही,चाहे मोदी उसका लाभ उठाने की कोशिश करेंं या नहीं।
पर कांग्रेस चाहती है कि सारा श्रेय भारतीय सेना को मिले और नरेद्र मोदी को उसका कोई चुनावी लाभ न मिले।
जरा याद कर लें 1972
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इस पृष्ठभूमि में 1972 की घटना को याद कर लेना मौजूं होगा।
1971 में पूर्वी पाकिस्तान को लेकर भारत-पाक युद्ध हुआ था।
पाक सेना को 16 दिसंबर, 1971 को सरेंडर करना पड़ा।
उस पर देश-विदेश में इंदिरा सरकार की काफी वाहवाही हुई।
अटल बिहारी वाजपेयी ने सार्वजनिक रूप से इंदिरा गांधी को बधाई दी थी।
अटल जैसी उदारता आज के प्रतिपक्ष में नहीं है।
1972 के प्रारंभ में देश के कई राज्यों में एक साथ विधान सभाओं के चुनाव हुए थे।उस चुनाव से ठीक पहले प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने मतदाताओं के नाम अलग से एक चिट्ठी प्रसारित की थी।वह कई भाषाओं में अनुदित की गयी।
उस चिट्ठी में लिखा गया था कि ‘ देशवासियों की एकता और उच्च आदर्र्शों के प्रति निष्ठा ने हमें युद्ध में जिताया।अब उसी लगन से हमें गरीबी हटानी है।इसके लिए हमें विभिन्न प्रदेशों में ऐसी स्थायी सरकारों की जरूरत है जिनकी साझेदारी केंद्रीय सरकार के साथ हो सके।’
साप्ताहिक पत्रिका ‘दिनमान’@5 मार्च 1972 @ ने इस संबंध में लिखा था कि ‘ जहां तक कांग्रेस के चुनाव घोषणा पत्र का संबंध है,उसने यह बात छिपाने की कोशिश नहीं की है कि भारत -पाक युद्ध में भारत की विजय श्रीमती इंदिरा गांधी के सफल नेतृत्व का प्रतीक है और श्रीमती गांधी के हाथ मजबूत करने के लिए विभिन्न प्रदेशों में अब कांग्रेस की ही सरकार होनी चाहिए।’
@--कानोंकान-प्रभात खबर-बिहार-1 मार्च 2019@
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