मंगलवार, 2 अक्तूबर 2018

1.- 2015 के आंकडे़ के अनुसार इस देश में निजी सुरक्षा एजेंसियों ने 70 लाख लोगों को रोजगार दे रखा था।
यह संख्या अब तक तो काफी बढ़ चुकी होगी।
इस देश के पुलिस तंत्र पर इससे बड़ी टिप्पणी और क्या हो सकती है ?
2.-आज के नवभारत टाइम्स के लखनऊ संस्करण में प्रकाशित सुधीर मिश्र की त्वरित टिप्पणी का एक अंश-
‘उत्तर प्रदेश पुलिस के एक दरोगा ने बड़ी बेबसी से बताया कि पहले गरीब लोगों से दस, बीस, पचास के नोट वसूलो।
फिर बैंक में जाकर उसके पांच सौ और दो हजार के नोट करवाओ।बड़े साहब लोगों को भारी नहीं, हल्के लिफाफे पसंद हैं ।छोटे नोट नहीं लेते।
 3.-पटना के दीघा थाना इलाके में बालू माफियाओं ने सैप जवान से कल लोडेड राइफल लूट ली।
यह और बात है कि उसे बाद में बरामद कर लिया गया।पर माफियाओं की हिम्मत तो देखिए।यह हिम्मत कहां से आती है ? क्या जिस ओर इशारा सुधीर मिश्र ने किया है, वहांं से ?
पता नहीं।
 अब उसी दीघा थाने की ही एक कहानी साठ के दशक की।
तब के एक बाहुबली मंत्री ने अपने एक पड़ोसी व्यापारी की जमीन हथिया ली।जब कब्जा हटाने के लिए वह दुबला-पतला व्यापारी  मोटे तगड़े  मंत्री से विनती करने गया तो जान से मारने की धमकी मिली।
व्यापारी देश के एक बड़े उद्योगपति का रिश्तेदार भी था।
उसने अपनी जान की सरुक्षा के लिए दीघा थाने से गुहार की। थानेदार ने मंत्री की परवाह किए बिना व्यापारी के आवास के सामने एक लाठी-पगड़़ीधारी सिपाही तैनात कर दिया।
उस पगड़ीधारी की भी हनक देखिए।
 मंत्री जी ने समझा कि शायद अब व्यापारी को हम धमका नहीं पाएंगे।मंत्री ने उस दरोगा का न सिर्फ तबादला करवा दिया बल्कि उसकी पदावनति भी करवा दी।
बाद में एक आयोग ने मंत्री के उस काम को भी गलत माना था।
खैर यहां साठ के दशक के एक लाठीधारी की हैवत की चर्चा कर रहा था।अब तो लोडेड राइफल की भी कोई धाक नहीं भले ही वह पुलिस जवान के पास हो।क्या हो रहा है अपने देश में  ?
कौन ठीक करेगा इन सब चीजों को  ? वह भी किसी को पता नहीं।

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