इंदिरा गांधी पर रोक, पर कर वंचक धर्मतेजा
को 1977 में मिल गयी थी विदेश यात्रा की छूट
जनता पार्टी की सरकार के शासन काल में कुछ मुकदमों को लेकर पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी पर तो विदेश यात्रा पर रोक थी,पर तत्कालीन प्रधान मंत्री आॅफिस ने कर वंचक धर्म तेजा को इसकी अनुमति दे दी थी।यह अनुमति नियम को शिथिल करके दी गयी थी।
चंर्चित जयंती शिपिंग कंपनी के मालिक धर्मतेजा ग्रीक व्यापारी ओनासिस बनना चाहता था,पर वह लगातार विवादों मंे ही रहा।
आंध्र प्रदेश के एक स्वतंत्रता सेनानी के पुत्र सुशिक्षित धर्म तेजा सरकारी धन से व्यापार का जुआ खेल कर
ओनासिस बनना चाहा था।
याद रहे कि जहाजों के धनाढ्य व्यापारी ओनासिस ने अमरीकी राष्ट्रपति कैनेडी के निधन के बाद उनकी विधवा जैकलिन से शादी करके चर्चा में आया था।
धर्म तेजा की भी दूसरी पत्नी भी साठ के दशक में दिल्ली के राजनीतिक-सामाजिक सर्किल में चर्चित थी।उसने तो एक पार्टी में एक शीर्ष सत्ताधारी नेता को खुलेआम चूम लिया था।
सरकारी पैसों के घोटाले के आरोप में भारतीय अदालत ने धर्म तेजा को 19 अक्तूबर 1972 को तीन साल की सजा दी थी।उस पर 14 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया गया था।
जुर्माना नहीं भरने पर उसे तीन साल की और सजा काटनी थी।
पर, उसने न तो 14 लाख अदा किया न ही तीन साल की अतिरिक्त सजा काटी।वह येन केन प्रकारेण 1975 में जेल से बाहर आ गया।
सत्ता के गलियारे में उसकी ताकत का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता था कि नियम को नजरअंदाज करके उसे
पासपोर्ट भी से दिया गया।
नियम है कि दो साल या उससे अधिक की सजा होने पर सजा पूरी होने के बाद अगले पांच साल तक उसे पासपोर्ट नहीं मिलेगा।
पर 1975 में सजा पूरी करने के बाद 1977 में ही वह विदेश चला गया।
उसके सवाल पर मोरारजी सरकार में मतभेद था।
तत्कालीन प्रधान मंत्री ने कहा था कि उसने सरकार से जितना लिया है,उससे अधिक दिया है।इसलिए वह कहीं भी आने जाने को स्वतंत्र है।
राज्य सभा में कांग्रेस के एन.के.पी साल्वे ने आरोप लगाया था कि प्रधान मंत्री के प्रधान सचिव वी.शंकर से धर्म तेजा की साठगांठ है।
धर्म तेजा की कहानी जान कर ऐसा लगता है कि आज के ‘विजय माल्याओं’ का वही ‘आदि पुरूष’ था।
1981 में लोक सभा में सरकार ने बताया था कि धर्म तेजा पर आयकर का 7 करोड़ 17 लाख रुपए और संपत्ति कर का एक करोड़ 76 लाख रुपए बकाया है।
उससे पहले जब चरण सिंह प्रधान मंत्री बने तो उनकी सरकार ने उस अमरीकी विमान सेवा पर केस किया था जिससे उड़ कर धर्म तेजा 1977 में देश से बाहर चला गया था।
इस पर अमरीकी विमान सेवा ने कहा कि ऐसा उसने एयर इंडिया के कहने पर किया था।
सन 1961 में केंद्र सरकार से 20 करोड़ 22 लाख रुपए कर्ज लेकर धर्म तेजा ने अपनी जयंती शिपिंग कंपनी के लिए जापान से पानी जहाज खरीदना शुरू किया।
उसने सेवा निवृत लेफ्टिनेंट जनरल बी.एम.कौल को जापान में
अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया।
जहाज की कीमत की पहली किश्त देकर वह जहाज खरीद लेता था और उसी जहाज को गिरवी रख कर फिर दूसरा जहाज खरीदता था।इस तरह उसने कई जहाज खरीदे।
जहाज की खरीद में जो दलाली मिलती थी,उसे जयंती शिपिंग कंपनी के निदेशक मंडल के सदस्य आपस में बांट लेते थे जबकि तब की सरकार चाहती थी कि वह पैसा सरकार के खाते में जमा हो जाए।
इस तरह उसने 22 पानी जहाज खरीदे।
उधर धर्म तेजा अपनी ही कंपनी को खोखला करते हुए कई देशों में अपनी संपत्ति खरीदने लगा।
संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के नेता डा.राम मनोहर लोहिया ने लोक सभा में धर्म तेजा का मामला जोरदार ढंग से उठाया।
इधर भारत सरकार ने कहा कि उस पर 4 करोड़ रुपए से अधिक का आयकर टैक्स बाकी है।तेजा पर 1966 में वारंट निकला।वह अमेरिका में गिरफ्तार हुआ।बेल पर छूटा।
पर बेल की शत्र्त तोड़कर वह कोस्टारिका चला गया।
कोस्टारिका ने उसे अपने नागरिक के रूप में स्वीकार किया।नागरिकता के लिए कोस्टारिका को कुछ पैसे देने होते हैं।
धर्मतेजा के पास कोस्टारिका की ओर से जारी डिप्लोमेटिक पासपोर्ट था।
भारतीय कानून तोड़ने के आरोप में 1972 में लंदन मंे धर्म तेजा गिरफ्तार हुआ।
वहां कोस्टारिका की सरकार ने अदालत में भारत सरकार के खिलाफ दलील दी।
पर भारत सरकार उसे स्वदेश लाने में सफल हो गयी।
जयंती शिपिंग कंपनी का इंदिरा गांधी सराकर ने सरकारीकरण कर लिया।
उधर अदालत ने तेजा को सजा दी।
लगता है कि इस देश के कुछ भगोड़े कर्जदार व कानून तोड़कों ने भी समय -समय पर कुछ सत्ताधारी नेताओं की मदद से शायद धर्मतेजा से ही यह सब करने के लिए सीखा है।
@मेरा यह लेख 1 अक्तूबर, 2018 को फस्र्टपोस्ट हिन्दी में प्रकाशित मेरे साप्ताहिक काॅलम ‘दास्तान ए सियासत’ से लिया गया है।@
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