बुधवार, 24 अक्टूबर 2018

 जहां तक बिहार का संबंध है,सी.बी.आई.की साख 
तो दो मामलों के कारण बहुत पहले ही धूल में मिल चुकी थी।
सत्तर के दशक के ललित नारायण मिश्र हत्याकांड और अस्सी के दशक के बाॅबी हत्या कांड में उच्चत्तम स्तर से आए दबाव के कारण केस को दूसरा ही  मोड़ दे दिया गया था।
  इसीलिए तब के प्रतिपक्षी नेता कर्पूरी ठाकुर किसी भी बड़े मामले की जांच के.बी.सक्सेना और डी.एन.गौतम से कराने की मांग किया करते थे न कि सी.बी.आई.से ।
  हां, चारा घोटाले की जांच को तार्किक परिणति तक इसीलिए पहुंचाया जा सका क्योंकि उसकी निगरानी अदालत कर रही थी।
 अब देखना है कि सी.बी.आई. में उठे नये विवाद के तार्किक परिणति तक पहुंचने के बाद अंततः सी.बी.आई.की साख बढ़ती है या घटती है।
  वैसे इस देश में अब भी के.बी.सक्सेना @आई.ए.एस.@और डी.एन.गौतम @आई.पी.एस.@जैसे अफसर जहां- तहां उपलब्ध हैं।कम हैं,पर हैं।
 ऐसे आई.ए.एस.और आई.पी.एस.अफसरों को चुन- चुन कर विभिन्न सरकारें निर्णायक जगहों पर तैनात करंे तो वह नौबत नहीं आएगी जैसी नौबत आज सी.बी.आई.मुख्यालय में आ गयी है।पूरा देश हैरत में है।
 जिस देश के लोकतंत्र के लगभग सभी स्तम्भों में कार्यरत हर दूसरा व्यक्ति  मौका मिलते ही देश को लूटने पर अमादा रहता है,उस स्थिति में सबसे बड़ी जांच एजेंसी की ऐसी हालत अत्यंत खतरनाक स्थिति पैदा करती है।

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