क्या कोई पूर्व मंत्री यह कह सकता है कि ‘तब मैं मनुष्य नहीं
था - मिनिस्टर था ? ’
हां,यदि उसका नाम बाल कवि बैरागी हो। ऐसा निश्छल संस्मरण लोगों को पढ़ने को मिल ही सकता है।
अस्सी के दशक में मध्य प्रदेश में अर्जुन सिंह मंत्रिमंडल के राज्य मंत्री रहे बैरागी ने सन 2006 में यह बेबाक संस्मरण लिखा था।
सन 1931 में जन्मे नन्द राम दास बैरागी का 2018 में निधन हो गया।
वे बारी -बारी से लोक सभा और राज्य सभा के भी चर्चित सदस्य रहे।
वे मध्य प्रदेश में पहले सूचना राज्य मंत्री और बाद में खाद्य व सार्वजनिक वितरण विभाग के राज्य मंत्री थे।प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की सहमति और इच्छा से उन्हें मंत्री बनाया गया था।
एक मशहूर कवि -लेखक को ऐसा विभाग मिलने पर उनके मित्र उनसे कहा करते थे ,‘कालीदास के वंशज किरोसिन बेच रहे हैं !’
बैरागी जी जब चैथी कक्षा में थे तो उन्होंेने एक कविता लिखी थी।
‘भाई सभी करो व्यायाम,
कसरत ऐसा अनुपम गुण है,
कहता है नन्दराम,
भाई करो सभी व्यायाम।’
इस कविता पर तब उन्हें पुरस्कार भी मिला था।
हालांकि कहते हैं कि जनसंघ नेता सुन्दर लाल पटवा ने सन 1968 में उनकी कविता सुनकर उनका नाम बालकवि बैरागी रख दिया जो नाम चल गया।
बैरागी जी का ‘अहा जिंदगी’ में प्रकाशित यह संस्मरण अनोखा है,
वे लिखते हैं , ‘यह संस्मरण उन दिनों का है जब मैं मनुष्य नहीं था।
जी हां,तब मैं मंत्री था।मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्य का राज्य मंत्री।लाल बत्ती,चपरासी और पी.ए.से लैस।
भोपाल के मेरे एक मित्र व उसके परिजनों ने चाहा कि मैं अपनी लाल बत्ती वाली गाड़ी में बैठकर शाम को 6 -7 बजे के बीच उनके दरवाजे पर जा धमकूं।
उनके घर के सदस्यों के साथ बैठूं, चाय -नाश्ता लूं।
मित्र का अभीष्ट था अपने पड़ोसियों पर लालबत्ती और मंत्री जी की निकटता का ठप्पा लगाना। जग की होती आई रीत थी।
मैंने हां कर दी।मित्र ने छिपाया कुछ भी नहीं।मैंने भी उस परिवार को टाला नहीं।
निश्चित समय पर मैं उनके यहां गया।उनके दरवाजे पर जैसी उन्होंने चाही थी,वैसी ही चहल पहल हो गयी।
मुहल्ले में पुलिस थी।सादी वर्दी में कर्मचारियों की तैनाती थी।
एक तो मंत्री दूसरे कवि जिनकी कविताएं पढ़ -पढ़कर बच्चे बड़े हुए थे।
देखने की ललक तो थी ही।
फूल,हार और गुलदस्तों से स्वागत हुआ।
घर के भीतर विशेष तौर पर बैठक सजी थी।मंत्री जी विराजमान हो गए।
प्रारंभिक गहमागहमी के कुछ देर बाद माहौल में सहजता छा गयी।
मित्र के परिवार से बैरागी जी का परिचय कराया गया।गृह लक्ष्मी ने मध्यवर्गीय परिवार की सुरूचिपूर्ण शिष्टाचार निभाना शुरू किया।मुझे अच्छा लगा।
यह बात मई 1980 की है।
अंततः इस संस्मरण का नायक मैं नहीं,पांच साल का एक बच्चा बना।
बैरागी जी ने लिखा कि ‘मैं उसका परिचय बता कर लेखकीय मर्यादा का हनन नहीं करूंगा।
वह परिवार आज भी मेरा मित्र है।
ठीक मेरे सामने वाले सोफे पर संस्मरण का पांच वर्षीय अबोध नायक मेरे मित्र का बेटा निश्छल आंखों से चकित विस्मित सारी आवभगत देख रहा था।
उसकी मां ने मेरे सामने वाली छोटी टेबुल पर खाने के लिए ताजा हलवा, बिस्किट, मिठाई, नमकीन, कटा पपीता आदि सजा कर रख दिया।
वह चाय व चम्मच वगैरह लेने के लिए भीतर जाने लगी।
उसने रसोई घर की ओर मुंह किया ही था कि बच्चे ने आवाज देकर उसे रोका, ‘मम्मी ! मम्मी !! यह सारा सामान उठा ले।’
उसकी मां ने पूछा क्यों उठा लूं ?
यह कहना भर था कि बच्चे ने भारत की समूची प्रशासनिक राजनीति की एक ही वाक्य में लोक प्रचलित व्याख्या कर दी-‘उठा ले मम्मी ! ये मिनिस्टिर है,सब खा जाएगा।’
बाल कवि लिखते हैं,आप स्वयं सोच लें।उसके बाद वातावरण में कैसा क्या हुआ होगा ?
मेरे मित्र,उनकी पत्नी,उनके परिजन ,मेरा स्टाफ दो तीन पड़ोसी तीन चार महिलाएं खुद मैं और दरवाजे बाहर खड़े दस पांच सरकारी कारिंदे व चपरासी तथा भीतर रसोई में काम कर रही दो कामकाजी नौकरानियां।सब लोग हक्के बक्के ठगे से कभी मुझे और कभी उस बच्चे को देख रहे थे।
सारी चुप्पी को मैंने ही अपने ठहाकों से तोड़ा।खानपान सब हुआ।होना ही था।
मंत्री नहीं रहने के बाद भी बैरागी जी अपने मित्र से मिलते -जुलते रहे।पर,जब भी सामना होता था उस परिवार के सदस्य अपराध बोध से ग्रस्त हो जाते थे।क्षमा याचना करते मिलते थे।नन्हा नायक जो अब बड़ा हो गया था,उससे बैरागी जी कहते थे,‘बेटा तुमने ठीक ही कहा था।’
इन दिनों मध्य प्रदेश में एक बार फिर चुनाव हो रहा है।यह भोली उम्मीद तो की ही जानी चाहिए कि अगली सरकार के किसी मंत्री को वह कुछ न देखना सुनना पड़े जिसका सामना बैरागी जी को करना पड़ा था।पर यह तो एक भोली आशा ही है !
@फस्र्टपोस्टहिन्दी में मेरे साप्ताहिक काॅलम ‘दास्तान ए सियासत’ के तहत 29 अक्तूबर, 2018 को प्रकाशित मेरा लेख@
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